मिहिर भोज (836- 889 ई.)
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रामभद्र जो कि कन्नौज के राजा नागभट्ट द्वितीय का उत्तराधिकारी था के पुत्र भोज' ने 836 ई. में वहाँ का सिंहासन लिया और गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य को पुनः संगठित किया।चंदेल राजाओं को पराजित कर बुंदेलखंड जीता।दौलतपुर लेख से पता चला कि 843 ई. में भोज ने पुनः मण्डोर पर अपना अधिकार किया।राजपूताने के चौहान और गुहिल सामन्तों के रूप में कार्य करने लगे।हरियाणा,पंजाब, काठियावाड़ तथा मध्य भारत के बड़े भू भाग पर उसका शासन रहा। अवंती प्रदेश को लेकर राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वितीय से भोज की लड़ाइयों में दोनो पक्षो की जय पराजय होती रही।निसंदेह भोज अपने वंश के साथ भरतीय इतिहास के प्रतापी शासकों में से एक थे।उनके पराक्रम से आतंकित हो मुसलमानों ने दक्षिण अथवा पूर्व में अपना राज्य विस्तार करने की हिम्मत नहीं दिखाई।उन्होंने बड़े साम्राज्य की स्थापना की और वे 'मिहिर-भोज' कहलाये। भारतीय राजाओं की विशेषता रही है कि वे जाति व्यवस्था से सदैव मुक्त रहे हैं वे अपने कुल और वंश परम्पराओं के साथ राष्ट्र रक्षक के रूप में स्वयं को पाते हैं।उन्हें क्षत्रिय कहलाना पसंद है।वे क्षात्र धर्म का पालन करने वाले हैं।इसलिये हमें उनको क्षत्रिय ही रहने देना चाहिए जो कि उनके सम्मान के लिए बहुत ही जरूरी है।यदि हम उनको 250 साल पुरानी जातिगत व्यवस्था में ढालने का काम करेंगे तो यह उनके सम्मान को धूमिल करने जैसा है।कट्टरता और जातिवाद को बढ़ावा देना अच्छी बात नहीं।हाल ही में 'मिहिर-भोज' को लेकर विवाद हुआ उन्हें जातिगत समीकरण में सेट करने के प्रयास किए जा रहे हैं।वे गुर्जर हैं या राजपूत सबने अपनी अपनी दलीलें दीं जो कि राजा भोज के कार्यो और ख्याति को संकुचित करने के अलावा कुछ और तो नहीं कर पाएँगी।
©दिव्यांशु पाठक
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