हम भावों की मुट्ठी केवल
अनुभावों के हित खोलेंगे।
अपनी चौखट के अंदर से
आँखों आँखों में बोलेंगे।
ना लांघे प्रेम देहरी को!
बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे।
हम एहसासों के कांटे पे
विश्वास आपका तोलेंगे।
कोई अनुबन्ध नहीं होगा
कोई प्रतिबंध न जोड़ेंगे।
हम मर्यादित अनुसंगी हैं।
बेशक़ परिपाठी तोड़ेंगे।
©दिव्यांशु पाठक
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