Thursday, May 21, 2020

आदर्श पत्रकार

आदर्श पत्रकार।

सत्य का संधान करने जो निकलता।
नित्य अपने मार्ग में मिथ्या कुचलता।
राष्ट्रहित में हर क़दम निर्भीक होकर!
न्याय की जो तर्कसंगत बात करता।

वर्जनाओं से न डर डर मुह छिपाता।
सर्जनाओं की क़लम रखता हमेशा।
लोकहित में जो बनाता क्रान्ति पथ!
घृष्ट से लड़ता उजागर भ्रष्ट करता।

ये सिपाही तो क़लम हाथों में लेकर।
चौकसी करता है जो प्रतिक्षण हमारी।
भूकम्प,आँधी,बाढ़,बारिश में भी बाहर!
जो युद्ध के मैदान में पल पल उतरता।

हर घटी घटना को लाकर हमको देता।
जो है जरूरी हित हमारे हमसे कहता।
नव स्वरों की रागिनी सबको सुनाकर!
जो हृदय के घाव को सिलता ही रहता।

Tuesday, May 19, 2020

सत्तर साल से अब तक

पर्पटी जम गई ज़मीन बड़ी प्यासी है।
नमी रुकती नही ज़मीर में उदासी है।

वात, पित्त,कफ़ तीनों बढ़े हुए दिखते!
जाँच हुई तो हर तीसरे को खाँसी है।

बच्चे क्या बूढ़े और ये नौजवान भी!
चूल से सभी ने ऐनक लगा राखी है।

चिकित्सा और विज्ञान के हवाले से!
कागज़ी औसत उम्र बढ़ा दिखाती है।

यहाँ अस्पतालों की भीड़ बताती है!
सत्तर साल से बड़ी मारा-मारी है।

भुखमरी,बेरोज़गारी, मुफ़लिसी है!
कैसी विकसित होने की तैयारी है?

लूट,चोरी,डकैती,हत्या मक्कारी है!
बे-शर्म कोने कोने में बलात्कारी है।

ये कैसा शोर हर तऱफ मच रहा है?
मानवता का ह्रास कबसे जारी है।

एक बात हो तो ध्यान जाता उस पर!
जुमलों, बातों की ख़ूब भरमारी है।

सरकार तो बस आँकड़ों से चलती है!
सच्चाई तो फाइलों में दफ़्न सारी है।

"पाठक" तू तो मीठा बोल काम चला!
दुनिया में अब दिखावे की खुद्दारी है।

मैं ( मंथन)

मैं तो शब्दों को तीर बनाता गया।
अपनों के दिल में ही चुभाता गया।

इंसान हूँ सभी बेजुबां की नज़र में!
मैं उन्हें बस जानवर बताता गया।

बाँधकर परिंदे ख़ूब ली वाह वाही!
भूख लगी तो उनको चबाता गया।

जीव जीवस्य भोजनम् पढ़ लिया!
बिन समझे इसे ही भुनाता गया।

देता रहा क़ानून की दुहाई अक़्सर!
संविधान का मख़ौल उड़ाता गया।

मैं ज़र ज़ोरू ज़मीन की लड़ाई में!
मुद्दतों से अब तक रक्त बहाता गया।

आधुनिकता का फ़ितूर पाल कर!
विरासतों को क़हर दिलाता गया।

विज्ञान के विमान में बैठ भरी उड़ान!
गाड़ी ज़मीन की शौक़ में छुड़ाता गया।

भाजी,तरकारी, दूध-दही ख़ूब खाए!
पैकेट में बंद कर ज़हर मिलाता गया।

जिम,कोचिंग, ट्यूशन भी ख़ूब लिए!
ज्ञान की मौलिकता को भुलाता गया।

दौलत शौहरत के लिए भटकता है पंछी!
जब भी मोड़ मिला शॉर्टकट बनाता गया।

जान पर बन आई ख़ुद के तो रोता है "पाठक"!
पहले क्यों तू निर्दोषों को रुलाता गया।
🙏

Monday, May 18, 2020

मेरी माँ और लॉक डाउन

मेरी माँ और लॉक डाउन।

रोज़ सुबह के तीन बजे ही उठ जाती है मेरी माँ।
घर को स्वर्ग बनाने की मशक्कत में मेरी माँ।

मवेशियों के लिए चारा,सानी,पानी करते!
पाँच बजे सबके लिए चाय बना लेती है मेरी माँ।

लेकर चार चुस्कियाँ रसोई आँगन को करती पवित्र!
फिर कमरे बिस्तर पखारकर साँस लेती मेरी माँ।

देश भर के गाँव में आठ बजे नहाती कपड़े धोती!
और फिर मंदिर में पूजा करने जाती मेरी माँ।

भगवान भी तो उसी के हिस्से में आते हैं सारे।
उनकी सेवा कर भोग लगाते ग्यारह बजा लेती मेरी माँ।

तब तक कोई सूचित करता चूहे दौड़ रहे हैं पेट में!
सुनते ही अन्नपूर्णा बन सबको खाना खिलाती मेरी माँ।

खुद को खाने का वक़्त तीन बजे मिलता है!
कभी किसी से कोई शिक़ायत नही करती मेरी माँ।

पलभर आराम फिर पाँच बजते ही फिर से वही!
सुबह से शाम तक घड़ी की सुई सी घूमती मेरी माँ।

सासु माँ के ताने देवर जी के उलाहनों के बीच!
पति की नोंक-झोंक से तमतमा जाती मेरी माँ।

मन को ठेस लगे तो छुपके अकेले में रोती है!
हाथ से छूटे आईने सी बिखरी बिखरी मेरी माँ।

बिखरी हुई हर किंच को चुन चुन कर बीनती,
गाँव या शहर की प्रत्येक ममत्व भरी मेरी माँ।

घर की लक्ष्मी प्रकृति तो कोई इसे माया कहता है!
सातों दिन बारह माह तक लॉक डाउन में रहती मेरी माँ।

Sunday, May 3, 2020

क्या यह जरूरी है?

Divyansu pathak (पंछी) on May 3, 2020 at 7:00
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लॉक डाउन के साथ शुरू हुई कोरोना के साथ जंग
हमको पहले एक माह के अंत में ही बीस साल पीछे धकेल कर ले गई।
देश के गाँव की आबादी मंहगाई के साथ अपने उत्पाद
(अनाज,दूध,सब्जियाँ, दालें,)
सस्ती क़ीमत पर बेचने को मजबूर हुए।
मुझे आश्चर्य तो दूध की क़ीमत को लेकर हुआ जो
25 रुपये प्रति लीटर के भाव स्थानीय दूधियों द्वारा ख़रीदा जा रहा था।
गेहूँ,सरसों,बगैरह भी और चक्की या मिल वाले स्टॉक करने में व्यस्त थे।
किराने से लेकर फलवाले तक 6 गुनी क़ीमत वसूल रहे थे।
जर्दा तंबाकू सिगरेट बगैरह के 15 से 20 गुना। हद है।
समाज में नए वर्ग भी देखे जो, स्वयं के लाभ से आगे कुछ नही सोचते।तो वहीं नशे की गिरफ़्त में बच्चों से लेकर युवा और हर उम्र के लोगों को तड़पते देखा।हद तो ये थी कि शराब की माँग को लेकर मोदी जी तक के लिए अनुरोध वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा किए गए।
देश किधर जा रहा है किसी को नहीं पता बस सब अपने फायदे की बात को ध्यान में रख कर निर्णय ले रहे हैं। जब मादक पदार्थों पर महीनेभर से रोक लगा रखी है तो अब क्या जरूरत है बैन हटाने की। शराब के ठेके खुलने से मुझे लगता है अपराधों में बढ़ोतरी होगी।
इसलिए शीर्ष को सोच समझकर ही फैसले लेने चाहिए। इस संकटकालीन स्थिति में तो बहुत ही सतर्कता के साथ।
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🙏😊🙏

भावों की मुट्ठी।

 हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...