Tuesday, May 19, 2020

सत्तर साल से अब तक

पर्पटी जम गई ज़मीन बड़ी प्यासी है।
नमी रुकती नही ज़मीर में उदासी है।

वात, पित्त,कफ़ तीनों बढ़े हुए दिखते!
जाँच हुई तो हर तीसरे को खाँसी है।

बच्चे क्या बूढ़े और ये नौजवान भी!
चूल से सभी ने ऐनक लगा राखी है।

चिकित्सा और विज्ञान के हवाले से!
कागज़ी औसत उम्र बढ़ा दिखाती है।

यहाँ अस्पतालों की भीड़ बताती है!
सत्तर साल से बड़ी मारा-मारी है।

भुखमरी,बेरोज़गारी, मुफ़लिसी है!
कैसी विकसित होने की तैयारी है?

लूट,चोरी,डकैती,हत्या मक्कारी है!
बे-शर्म कोने कोने में बलात्कारी है।

ये कैसा शोर हर तऱफ मच रहा है?
मानवता का ह्रास कबसे जारी है।

एक बात हो तो ध्यान जाता उस पर!
जुमलों, बातों की ख़ूब भरमारी है।

सरकार तो बस आँकड़ों से चलती है!
सच्चाई तो फाइलों में दफ़्न सारी है।

"पाठक" तू तो मीठा बोल काम चला!
दुनिया में अब दिखावे की खुद्दारी है।

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