Wednesday, May 12, 2021

मन्नतों की कोई जैसे बारात है।

मन्नतों की कोई जैसे बारात है।
हर-तरफ़ देखो खुशियों की बरसात है।

ईद के चाँद की चांदनी में सनम।
भीग कर आज चन्दन हुआ मेरा तन।
तर बतर हो गया खुश्बुओं से जहाँ..
मेरा रंगने  लगा  तेरी  चाहत में मन।
घिर गया बादलों से भी दिल का गगन.
हर-तरफ़ देखो खुशियों की बरसात है।

मन्नतों की कोई जैसे बारात है।

इश्क़ की रागिनी गा रही है हवा।
मोहब्बत के सुर भी मिलाए फ़िजा।
तुम मिले तो महकती हैं तनहाइयाँ
झूमती गाती फिरती हैं परछाइयाँ।

अब न रखना कोई फ़ासला दरमियाँ!
मेरी चाहता का देना मुझे तुम सिला।
रोशनी से यूँ जीवन भी भर जाएगा!
मोहब्बत का बन जाएगा काफ़िला।

ये ख़ुदा की कोई मुझको सौग़ात है।
हर-तरफ़ देखो खुशियों की बरसात है।
:
©दिव्यांशु  पाठक

सैरे-अदम ( संसार का तमाशा )

सैरे-अदम = संसार का तमाशा

वह जाने से पहले ख़बर भी नहीं देते ।
जो कहते हैं कि  अलविदा  न  कहना।

तुम हो तो ये साँसें हैं ख़ुश्बू है प्यार है!
तुम नहीं तो  जहाँ में  मुझे नहीं रहना।

ये तन्हाई की वफ़ा क़ाबिले तारीफ़ है!
बस इसे कभी मुझसे ज़ुदा नहीं होना।

'पंछी' ये सब तो महज़ सैरे-अदम है!
यहाँ कभी कोई किसी का नहीं होना।

माँ की मोहब्बत।

माँ की मोहब्बत लफ़्ज़ों में आ नहीं सकती!
ये रूह उनकी सीखों को भुला नहीं सकती।

जिसके आँचल में हमको जीना आया है।
मेरी भूल आदर्शों को हिला नहीं सकती।

किसी ने सच ही कहा है कि 'माँ' ख़ुदा है।
और कोई ताक़त इंसां बना नहीं सकती।

इन आँखों में तेरी ममता तैरती रहती है।
इसलिए यूँ पलकें आँसू ला नहीं सकती।

जिसके सर पे उसकी माँ का आशीर्वाद हो।
कोई मुश्किल उसको यूँ सता नहीं सकती।

क़द्र करो उसकी 'माँ' ही सृष्टि का वरदान है।
'पंछी' हर कोई उसकी जगह पा नहीं सकती।
©दिव्यांशु पाठक

तुम ही मेरा संसार हो।


बरसों से जो मैंने किया
तुम वो मेरा इंतज़ार हो।
टूटा नहीं तोड़े से जो  
तुम वो  मेरा  इक़रार हो।

न जाने कितने ग्रीष्म गुज़रे 
और सावन भी जले?
झुलसे हुए स्वप्नों को लेकर 
पतझड़ों में हम चले।

उम्मीद थी बरसेंगे बादल 
भीग जाएगी धरा यह।
खिल उठेंगे  पुष्प फिर से  
सुप्त से जो हो गए । 

अँगड़ाई लेकर यह समां 
एहसास तेरा दे रहा ।
शोर धड़कनें कर रहीं 
मन मुग्ध मेरा हो रहा।

फिर से फ़िज़ाओं में मुझे 
तेरा ही आभास हो।
है जतन मिलने का यह 
या कोई अभ्यास हो।

तुमसे ही जीवन है मेरा 
और तुम ही मेरा प्यार हो।
हर ख़ुशी तुमसे ही तो 
तुम ही मेरा संसार हो॥
:
©दिव्यांशु पाठक

भावों की मुट्ठी।

 हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...