Wednesday, May 12, 2021

तुम ही मेरा संसार हो।


बरसों से जो मैंने किया
तुम वो मेरा इंतज़ार हो।
टूटा नहीं तोड़े से जो  
तुम वो  मेरा  इक़रार हो।

न जाने कितने ग्रीष्म गुज़रे 
और सावन भी जले?
झुलसे हुए स्वप्नों को लेकर 
पतझड़ों में हम चले।

उम्मीद थी बरसेंगे बादल 
भीग जाएगी धरा यह।
खिल उठेंगे  पुष्प फिर से  
सुप्त से जो हो गए । 

अँगड़ाई लेकर यह समां 
एहसास तेरा दे रहा ।
शोर धड़कनें कर रहीं 
मन मुग्ध मेरा हो रहा।

फिर से फ़िज़ाओं में मुझे 
तेरा ही आभास हो।
है जतन मिलने का यह 
या कोई अभ्यास हो।

तुमसे ही जीवन है मेरा 
और तुम ही मेरा प्यार हो।
हर ख़ुशी तुमसे ही तो 
तुम ही मेरा संसार हो॥
:
©दिव्यांशु पाठक

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