1. भारत की कृषि आधारित जीवनशैली दुनिया की प्राचीनतम व्यवस्थाओं में से एक है।विश्व के अधिकांश कृषि विद्वान अन्न उत्पादन एवं पशुपालन का प्रारंभ 8000 ई.पूर्व मानते हैं।रूसी विद्वान वेविलोव ने 1951 में कृषि उद्भव के आठ स्थल चिन्हित किए जिनमें से एक भारत भी है।आज भी लगभग 58 प्रतिशत आबादी अपना जीवन यापन करने के लिए इसी पर निर्भर है।बढ़िया फ़सल के लिए किसान बदलते मौसम पर निर्भर रहते हैं।उनकी आशावादिता इस बदलाव को उत्सव के रूप में सहेज लेती है।झुलसाने वाले ग्रीष्मकाल में लगने वाले मेले हों या चौमासे (बर्षा ऋतु) में तीज त्योहार हम शरद महोत्सव मनाकर कंपाने वाली सर्दियों का स्वागत भी बड़े धूमधाम से करते हैं।इन उत्सवों के साथ किसान की बोई गई मेहनत जब फूल बनकर हवाओं को सुगन्धित करने के साथ फलने लगती है तो बसन्त आ जाता है।बसन्त अपने साथ लाता है बेतहाशा उम्मीदें।बस इन उम्मीदों के पूरा होने के उपलक्ष्य में बसन्त मनाया जाता है। जब किसान की बोई गई मेहनत फूल बनकर हवा को सुगन्धित करती है तो पौधे फलने लगते हैं।ऐसा लगता है वे प्रकृति के सम्मान में झुक गए हों।
बेरियों के कच्चे बेर ( ग़रीब का सेव ) मीठा होने लगता है।छाया में सुखाए गए सिंघाड़े का आटा बनाकर रख लिया जाता है।ताजा और मिठास से भरा दही बनाने लगते हैं।नर्म और रस भरे गन्ने का अलग ही स्वाद इन दिनों आता है।गाजर मूली मटर की नई आवक से पोषण बेहतर हो जाता है।आपको लगेगा ये सारी चीजें तो चाहे जब उपलब्ध हो जाती हैं तो सुनो भले ही हम जेनेटिक मोडिफाइड सब्जियाँ या फल कभी भी प्राप्त कर लें लेकिन जो ऋत्विक' स्वाद होता है वह केवल तभी आता है जब उनका मौसम हो।
2. भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि वे ऋतुओं में बसन्त हैं।वे इन दिनों राधा जी और उनकी सखियों संग रास रचाते हैं।इन्हीं दिनों में उन्हें मोहन' के नाम से पुकारा जाता है।वे प्रेम और पराक्रम दोनो के देवता हैं।कवियों ने भी इसे ऋतुराज कहा है।प्राकृतिक सौंदर्य इन दिनों चरम पर होता है।फूल पूरी तरह खिल कर फल में बदल जाते हैं।मन हर्षित रहता है।ज्ञान की देवी के रूप में हम सृष्टि का साक्षात्कार करते हैं।शिक्षा कौशल कला साहित्य जगत से जुड़े लोग ही नहीं किसान और संत भी माता सरस्वती की वंदना करते हैं।बसन्त को प्रेम और आकर्षण के देवता कामदेव और रति के पुत्र के रूप में भी जाना जाता है।बिगड़े हुए कार्य को बनाने के लिए किया गया उपक्रम 'बसन्त बांधना' कहलाता है।हम सब कामना करते हैं कि जीवन में बसन्त बना रहे। बसन्त भगवान शिव से भी जुड़ा है।एक ऐसा योगी जो जीवन के भौतिक स्वरूप से परे है।अकेला रहता है।वैरागी शिव के जीवन में जब बसन्त आता है तो वे विवाह बंधन में बंधते है।इसलिए महाशिवरात्रि भी बसन्त ऋतु में ही मनाई जाती है।शिव को शक्ति मिलने का यह समय कितना महत्वपूर्ण होगा?विचार कीजिए।
3. बसन्त जीवन के हर आयाम को नई दिशा देने का समय है।
विद्या,भक्ति और शक्ति की प्राप्ति में पहली सीढ़ी है।
इन दिनों में आसमान साफ़ रहता है।
कभी पुरवाई तो कभी पछुआ पवन चलती है।
कोयल गाती है और वृक्ष झूमते नज़र आते हैं।
दृष्टि की गहराई तक फूल ही फूल और
साँसों की सहराई तक उनकी महक़
मादकता का अद्भुद आनंद प्रदान करती है।
पीले रंग की अधिकता मन को शान्त
और चित्त को एकाग्रता प्रदान करती है।
हृदय में धार्मिकता बढ़ती है।
जीवन को गति सूर्य से मिलती है।
उनके उदय होने के साथ ही
हमें एक दिन और मिल जाता है।
जब वे डूब जाते हैं तो अपना दिया हुआ
एक दिन ले भी जाते हैं।
जीवन के इस लेन देन में
कुछ अगर पास रह जाता है तो
वह हमारा किया धरा।
किए धरे में संतुलन लाने के लिए
हर साल बसन्त बांधा जाता है।
आओ हम भी 'बसन्त बांधें' बसन्त बांधना
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भले ही हमने जीवन जीने के आधुनिक तौर तरीकों को इज़ाद कर लिया है।समाज में बड़े बदलाव हुए हैं।बदलाव को विकास के रूप में देख कर हम ख़ुश होते हैं।लेकिन वास्तविकता में यह बदलाव बंटवारा है।फ़िलहाल हम अपनी जातियों को ही समाज का दर्जा देते हैं।संस्कृति के नाम पर हर एक समुदाय के पास अपने अपने तरीक़े हैं।पहनावे से लेकर खानपान और रहन-सहन सब कुछ संस्कृति से जोड़ कर चलते हैं।हम पश्चिम से ग्रहण करते हैं।बाहरी जीवनशैली को अपनाने में हिचक महसूस नहीं करते।ग्रहण करना अच्छी बात है लेकिन ग्रहण कर अपनी जीवनशैली और संस्कृति को ग्रहण लगाना भी ठीक नहीं।हमारी जड़ें चार आश्रमों से जुड़ी हुई हैं।जीवन के दो महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं 1. भौतिक 2. आध्यात्मिक दोनों का विकास और बीच का संतुलन बनाना ही 'बसन्त बांधना' कहलाता है।प्रेम भक्ति और शक्ति के अर्जन से जुड़ा हुआ ऋतुराज नव सृजन का मुहूर्त है। एक बहुत ही प्यारा क़िस्सा है--- हिमालय की बर्फ़ पिघली और जल के रूप में प्रवाहित होने लगी।भगवान शिव जो कि वहाँ के स्वामी है और ज़्यादातर समाधिस्थ रहते हैं उनकी समाधि खुल गई।जब उनकी दृष्टि घाटियों पर गई तो देखा कि बहुत सुंदर सुंदर फूल खिले हैं।उनकी महक़ से हिमालय झूम रहा है।बादलों की धुंध के छंट जाने से वहाँ की ज़मीन गौर वर्ण की दिख रही थी।एक हवा का झोंका आया जो उनको छू गया हवाओं का आलिंगन करके शिव अचानक से बोले 'गौरी' ये तुम हो!
4. गौरी' के ज़हन में आते ही डमरू स्वतः ही बजने लगा।हवा गाने लगी और शिव मुग्ध होकर नाचने लगे।वे सब कुछ भूल गए उन्हें याद रहा तो केवल गौरी' उनकी तल्लीनता से शब्द रूप रस गन्ध और स्पर्श की अनुभूति जाती रही वे कौन हैं भूल गए।जगत पिता सब भूल रहे हों तो प्रकृति का विकास क्रम बाधित होने लगा।तीनों लोक स्थिर होने लगे समय चक्र थमने लगा।इंद्र जो कि जगत संचालन का कार्यभार लिए हैं चिंता ग्रस्त होकर ब्रह्मा जी के पास दौड़े।प्रभु ये क्या हो रहा है सबकुछ स्थिर और थम रहा है बचाओ!ब्रह्मा जी स्वयं कुछ नहीं समझ पा रहे थे।वे शिव को नृत्य करने से रोक भी नहीं सकते थे तो देवताओं के साथ विष्णु लोक पहुँचे और श्री हरि विष्णु जी को योगनिद्रा से जगाया और बोले कुछ उपाय कीजिए प्रभु शिव नृत्य में मग्न हो सम्पूर्ण जगत को तृप्त कर रहे हैं।समय की गति रुक रही है।श्री विष्णु वोले प्रभु वे शिव हैं उन्हें कैसे रोका जा सकता है?ब्रह्मा जी बोले कुछ उपाय कीजिए श्री हरि। भगवान विष्णु सभी देवगणों को साथ लेकर कैलाश पर्वत पर जा पहुँचे वहाँ हवाओं में गुंजित गौरी' का घोष सुनकर आश्चर्य में पड़ गए।'गौरी' के नाम की अनुभूति इतनी मनोरम है तो साथ कैसा होगा?'' विष्णु दीर्घ स्वर में बोले गौरी' के नाम की अनुभूति इतनी मनोरम है तो साथ कैसा होगा! सभी देवगणों ने इसे बार बार दोहराया।अचानक शिव नृत्य करना बन्द कर दिए और शान्त हो कर अपने आसन पर बैठ गए। देवगणों ने उनकी जय जयकार की। सभी एक साथ बोले गौरी' के नाम की अनुभूति इतनी मनोरम है तो साथ कैसा होगा!
शिव शान्त बैठे मुस्कुरा रहे थे।ब्रह्मा जी बोले "गौरी के नाम की अनुभूति इतनी मनोरम है तो साथ कैसा होगा! " शिव बोले प्रजापति और प्रजापालक समस्त देवगणों के साथ कहना क्या चाहते हो स्पष्ट करें? मुस्कुराकर विष्णु बोले प्रभु समय आ गया है अब आप अपना विवाह करें और गौरी को गृहस्वामिनी बनालें। शिव मुस्कुरा उठे चारो ओर हर्ष और आनंद बहने लगा सभी देवताओं ने उनकी खुली जटाओं को बांधा और एक स्वर में बोले बसन्त बंध गया और प्रसन्न होकर अपने अपने लोक चले गए।
आगे आपको मालूम है शिव का विवाह हुआ और वे महादेव बन गए।जिस तिथि को विवाह हुआ वह महाशिवरात्रि के रूप में हम आजतक मना रहे हैं।
5. पार्वती भगवान शिव को विवाह के लिए मना रहीं थी।वे इस प्रयास ( तपस्या ) में इतना लीन हुईं कि स्वास्थ्य बिगड़ गया और वे काली पड़ गईं।नारद जी ने कैलाश पर्वत पर जाकर सूचना दी तो शिव दौड़े गए और उन्हें औषधि देकर ठीक किया।शिव जो कि सृष्टि के सबसे पुराने वैद्य हैं।पार्वती के गौरी' बनने का श्रेय उन्होंने 'माघी-पूर्णिमा' को दिया और विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।आने वाले पन्द्रह दिनों को वैवाहिक परम्पराओं और रीति नीति के लिए चुने गए।
©दिव्यांशु पाठक
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