Tuesday, September 8, 2020

त्योहारों का देश हमारा ( भादों माह विशेष )

#हुलस_रहा_माँटी_का_कण_कण_उमड़_रही_रसधार_है_त्योहारों_का_देश_हमारा_हमको_इससे_प्यार_है_।
भादों माह लगते ही हर दिन व्रत, पर्व, और उत्सव के रूप में हम मनाते हैं।कल #ऋषिपँचमी के बारे में बताया और आज आपको बतायेंगे #देवछठ के बारे में।
भादों माह के शुक्ल पक्ष की छठमीं तिथि को हम "कालियावन" वध की ख़ुशी के रूप में मनाते हैं।इससे जुड़ी एक कथा विष्णु पुराण के पंचम अंश के तेईस वें अध्याय में मिलती है और उसे विस्तार से श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कन्द के अध्याय इक्यावन में दिया गया है।
:
कथा इस प्रकार है कि- जब भगवान श्रीकृष्ण  कंस का वध कर अपने राज्य का विस्तार कर रहे थे तो यवन का एक अति महत्वकांक्षी "कालयवन" नाम का आक्रमणकारी मथुरा पर चढ़ाई कर बैठा । श्री कृष्ण ने उसका युद्ध में डट कर सामना किया और उसे भगा दिया। चोट खाया कालयवन अब उपाय ढूंढने लगा कि कृष्ण को कैसे हराये उसने अपने मंत्रियों से सलाह-मशविरा किया तो पता चला कि भारतीय राजा ब्राह्मणों का वध नहीं करते न उन पर शस्त्र उठाते हैं।इसलिए उसने ब्राह्मणों का अपहरण करना प्रारम्भ कर दिया और उन्हें आपनी ढाल बनाकर पुनः मथुरा पर चढ़ाई कर दी। जब इस बात की भनक कृष्ण को लगी तो वो निहत्थे और अकेले ही रण-क्षेत्र में पहुँच गए।कृष्ण को अकेला देख कालयवन दंग रह गया।कृष्ण मुस्कुराकर बोले मुझे तो लगा तुम बहुत बड़े योद्धा हो तुम तो निपट कायर और डरपोक निकले।द्विज श्रेष्ठों के पीछे खड़े होकर लड़ोगे मुझसे असली योद्धा हो तो आओ सामने और उन्हें मुक्त कर दो, देखो आज में अकेला हूँ और वचन भी देता हूँ सुदर्शन चक्र का प्रयोग नहीं करूँगा।इतना सुनते ही वह कृष्ण की ओर लपका तो कृष्ण मुस्कुराए और रण छोड़ कर भाग खड़े हुए---😊 कालयवन चीख़ता हुआ बोला "रणछोड़" कर कहाँ भागते हो तो कृष्ण ने मुस्कुराते हुए बोला पकड़ कर दिखाओ तो तुम विजयी घोषित कर दिए जाओगे और यवन के सैनिकों को विपरीत दिशा में भागने का इशारा कर फिर दौड़ लगादी।कृष्ण आगे आगे कालयवन पीछे पीछे दौड़ते दौड़ते कृष्ण भगवान सीधे हमारे धौलपुर की धौलागिरी पर्वतीय गुफाओं में उसे ले आये। धौलागिरी पर्वत की एक गुफ़ा में कृष्ण ने मचकुण्ड महाराज को सोते देखा तो उनके ऊपर अपना पीताम्बर उढ़ाकर वहीं छुप गए। जब कालयवन हांफते हांफते वहाँ पहुँचा तो सोते हुए मचकुण्ड महाराज को कृष्ण समझ कर लात देदी और कहा कि यहाँ आ सोया है उठ "रणछोड़" अचानक से नींद में भंग पड़ते ही मचकुण्ड महाराज उठे और उसको पकड़ कर जिन्दा जला दिया। इस प्रकार दुष्ट कालयवन का अंत हुआ और भगवान कृष्ण मचकुण्ड महाराज को सारा वृतांत बताकर उनसे क्षमा याचना कर वापस मथुरा आ गए।
:
मचकुण्ड महाराज के बारे में किवदंती है कि वह मांधाता के पुत्र देवासुर संग्राम के शानदार योद्धा थे युद्ध विजय करने के बाद धौलपुर में विश्राम करने के लिए आये थे। चार धाम की यात्रा करने के पश्चात इनका आशीर्वाद लेने के लिए आना अनिवार्य है ये तीर्थों का भान्जे के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
:
वर्तमान में मचकुण्ड महाराज के तीर्थ स्थल का जो सुंदर स्वरूप है उसे 1856 में राजा भगवन्त सिंह जी ने निर्माण कराया था।
#पाठकपुराण की ओर से आप सभी का स्वागत है आपको ये जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बतायें।
जय श्री कृष्ण।😊🙏
#yqhindi 

भादों माह ( व्रत पर्व उत्सव के दिन )

#भादोंमाह_शुक्लपक्ष_की_दशमी का दिन राजस्थान के इतिहास में विशेष स्थान रखता है। नर-नारी के शौर्य और बलिदानों के लिए जाने वाली इस पावन भूमि की महानता को सारा विश्व जानता है। आओ आपको ऐसे ही कुछ किस्सों से रुबरु कराते हैं-----
सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण” और अमृता देवी गुरू जांभोजी महाराज की जय बोलते हुए सबसे पहले पेड़ से लिपट गयी, क्षण भर में उनकी गर्दन काटकर सिर धड़ से अलग कर दिया। फिर तीनों पुत्रियों पेड़ से लिपटी तो उनकी भी गर्दनें काटकर सिर धड़ से अलग कर दी गई।
1. #खेजड़ली

सन् 1730 में जोधपुर के राजा अभयसिंह को युद्ध से थोड़ा अवकाश मिला तो उन्होंने महल बनवाने का निश्चय किया।नया महल बनाने के कार्य में सबसे पहले चूने का भट्टा जलाने के लिए इंर्धन की आवश्यकता बतायी गयी।राजा ने मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी को लकड़ियों की व्यवस्था करने का आदेश दिया।
:
खेजड़ली में राजा के कर्मचारी सबसे पहले अमृता देवी के घर के पास में लगे खेजड़ी के पेड़ को काटने आये तो अमृता देवी ने उन्हें रोका और कहा कि “यह खेजड़ी का पेड़ हमारे घर का सदस्य है। यह मेरा भाई है इसे मैंने राखी बांधी है, इसे मैं नहीं काटने दूंगी” इस पर राजा के कर्मचारियों ने प्रश्न किया कि “इस पेड़ से तुम्हारा धर्म का रिश्ता है,तो इसकी रक्षा के लिये तुम लोगों की क्या तैयारी है”? इस पर अमृता देवी और गांव के लोगों ने अपना संकल्प घोषित किया- “सिर साटे रूख रहे तो भी सस्तो जाण” अर्थात् हमारा सिर देने के बदले यह पेड़ जिंदा रहता है तो हम इसके लिये तैयार है।उस दिन तो पेड़ कटाई का काम स्थगित कर राजा के कर्मचारी चले गये, लेकिन इस घटना की खबर खेजड़ली और आसपास के गांवों में शीघ्रता से फैल गयी।
:
कुछ दिन बाद मंगलवार 21 सितम्बर 1730 ई. (भाद्रपद शुक्ल दशमी, विक्रम संवत 1787) को मंत्री गिरधारी दास भण्डारी लावलश्कर के साथ पूरी तैयारी से सूर्योदय होने से पहले आये,जब पूरा गाँव सो रहा था।सबसे पहले अमृता देवी के घर के पास में लगे खेजड़ी के हरे पेड़ो की कटाई करना शुरु किया तो,आवाजें सुनकर अमृता देवी अपनी तीनों पुत्रियों के साथ घर से बाहर निकली।
:
हरे भरे पेड़ों को कटते देख उनसे नहीं रहा गया और वे ....
“सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण” और अमृता देवी गुरू जांभोजी महाराज की जय बोलते हुए सबसे पहले पेड़ से लिपट गयी,क्षण भर में उनकी गर्दन काटकर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर तीनों पुत्रियों पेड़ से लिपटी तो उनकी भी गर्दनें काटकर सिर धड़ से अलग कर दिये।
:
चीत्कार सुनकर आस-पास 84 गांवों के लोग आ गये।उन्होनें एक मत से तय कर लिया कि एक पेड़ के एक विश्नोई लिपटकर अपने प्राणों की आहुति देगा। सबसे पहले बुजुर्गों ने प्राणों की आहुति दी।तब मंत्री गिरधारी दास भण्डारी ने बिश्नोईयों को ताना मारा कि ये अवांच्छित बूढ़े लोगों की बलि दे रहे हो। उसके बाद तो ऐसा जलजला उठा कि बड़े,बूढ़े, जवान, बच्चे स्त्री-पुरुष सबमें प्राणों की बलि देने की होड़ मच गयी।
:
बिश्नोई जन पेड़ो से लिपटते गये और प्राणों की आहुति देते गये।आखिर मंत्री गिरधारी दास भण्डारी को पेड़ो की कटाई रोकनी पड़ी।ये तूफ़ान थमा तब तक कुल 363  बिश्नोईयों (71 महिलायें और 292 पुरूष) ने पेड़ की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दे दी।खेजड़ली की धरती बिश्नोईयों के बलिदानी रक्त से लाल हो गयी।यह मंगलवार 21 सितम्बर 1730 (भाद्रपद शुक्ल दशमी, विक्रम संवत 1787) का ऐतिहासिक दिन विश्व इतिहास में इस अनूठी घटना के लिये हमेशा #चिपकोआन्दोलन के रूप में याद किया जाता है। खेजड़ली गाँव में प्रतिवर्ष आज के दिन विशाल मेले का आयोजन होता है। मैं इन शहीदों को सत सत नमन करता हूँ। पर्यावरण के महत्व को विश्व अब समझा है पर हमें गर्व है कि हमारे पूर्वजों ने इसे 231 साल पहले ही जान लिया था।
🙏💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
शूर न पूछे  टिप्पणो,   शुगन न पूछे शूर।
मरणा नूं मंगल गिणै समर चढ़े मुख नूर।।
2. #वीर_तेजाजी
मारवाड़ के खरनाल गाँव जो राजस्थान नागौर जिले में 29 जनवरी 1074 में हुआ उनके पिता गाँव के मुखिया थे।
:
पत्नी पेमल को लेने ससुराल गए तो उनकी साली मतलब पेमल की सखी लाछा गूजरी ने बताया कि उसकी गायों को मीणा गिरोह के डाकुओं ने चुरा लिया है। फिर क्या था सुनकर वीर तेजाजी निकल लिए और लुटेरों से लड़ाई लड़कर गायों को बापस ले आए।
:
इन्हें शिव के रूप में पूजा जाता है और नाग या सांप के काटने पर इनके नाम या भभूति से इलाज किया जाता है। इनके साथ ही इनकी पत्नी पेमल सती हो गईं और बहिन राजल यह सुनकर धरती में समा गई।
इन्हें सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। आज के दिन इनका भी मेला लगता है।
:
मोती सम ना ऊजला ,

चन्दन सम ना काठ ,

तेजा सम ना देवता ,

पल में करदे ठाठ ।।
💐💐💐 💐💐💐💐💐
आपको यह जानकारी कैसी लगी मुझे जरूर बताइये बहुत बहुत स्वागत है आपका......
शुभरात्रि
#पाठकपुराण के साथ #लोकदेवता राजस्थान।

    

श्राद्ध ( पितृ तर्पण )

कुछ लोगों को ब्राह्मणों से तो विशेष समस्या है ही।उनका यह प्रश्न भी है कि श्राद्ध में कौए की खाई हुई खीर हमारे पूर्वजों के पेट मे कैसे पहुँच जाएगी। तो सबसे पहले तो मैं आपको याद दिला दूँ की ब्राह्मण कभी बिना बुलाए आपके घर नहीं आते हैं। मेरा आपसे निवेदन है कि आपके घर मे बच्चे का जन्म होने पर कृपया आप कुंडली बनवाने, प्रसूति स्नान का महूर्त पूछने या नामकरण के लिए ब्राह्मण के पास ना जाएं।आप डॉक्टर के पास जाते हैं कंसल्टिंग फीस देनी ही पड़ती है। ब्राह्मण से महूर्त पूछने जाएंगे तो दक्षिणा भी देनी होगी। विवाह के लिए आप कोर्ट की शरण मे जाएं ।ना ब्राह्मण को दक्षिणा देनी होगी ना ही भोजन कराना पड़ेगा।आपके घर मे किसी की मृत्यु होने पर आप अपने हिसाब से उसे अग्नि में भस्म करने के लिए स्वतंत्र हैं।ब्राह्मण आपसे नहीं कहेंगे कि आप विधिवत दाह संस्कार कीजिये या पिंड दान दीजिये। और इसके बाद श्राध्द आदि का तो प्रश्न ही नहीं उठता। इसी तरह आप ब्राह्मणों के अत्याचार और लूटपाट से पूरी तरह बच जाएंगे।यह मेरा दावा है कि जब तक आप स्वयं चल कर ब्राह्मण को बुलाने नहीं जाएंगे, ब्राह्मण आपके घर नहीं आएगा! 
अब बात करते हैं श्राध्द की।तो बिल्कुल सरल और कम शब्दों में कहने का प्रयास करती हूँ। श्राध्द में दिए जाने वाले भोजन का आयुर्वेदिक महत्व तो पहले बता ही चुकी हूँ। तो स्वाभाविक है कि वह भोजन केवल हमारे पेट मे जाता है ना कि पितरों के। शास्त्रों के अनुसार जब हम पितरों के निमित्त भोजन देते हैं तो वे यदि सूक्ष्म रुप उपस्थित है तब वे भोजन की गन्ध को ग्रहण करके तृप्त होते हैं। यदि वे किसी पशु की योनि में है तो वह भोजन उन्हें चारे या भोजन के रूप में वहाँ प्राप्त होता है। यदि इंसान के रूप में है तब भी दिया गया दान उन्हें किसी न किसी रूप में प्राप्त होता है।आपने कई बार अनुभव किया होगा अचानक ही आपको कोई ऐसा लाभ हो जाता है जिसकी आशा नहीं थी।कई लोगों को सड़क पर पड़े हुए नोट मिल जाते हैं।कोई आपको बेवजह उपहार या कोई पकवान दे जाता है! ब्राह्मण आपसे कभी नहीं कहते कि आप स्वयं भूखे रह कर उन्हें भोजन कराएं। श्राद्ध अपनी क्षमता के अनुसार किया जाता है। आप चाहें तो पकवान खिला सकते हैं, सीधा दे सकते हैं। अगर उतनी हैसियत नहीं है तो गाय को चारा डाल सकते हैं।अगर उतना भी सम्भव न हो तो जौ और तिल की आहुति देने से भी काम चल जाएगा। अगर वह भी सम्भव ना हो तो सूर्य नारायण को जल चढ़ा कर कहें- "मैं(अपना नाम), (पिता का नाम),(जिनके निम्मित श्राध्द है) का पूर्ण श्रध्दा भाव से श्राद्ध करता हूँ। हे सूर्यनारायण मेरे (पित्र) को संतुष्ट करने की कृपा करें।" 
अरहर: स्वधाकुर्यादोदपात्रात्तथैतं पितृयज्ञं समाप्नोति ।
         श्रीशुक्लयजुर्वेद शतपथब्राह्मणम् ११/३/८/२
'नित्य-नित्य अन्न व फल मूलादि के अभाव में जलमात्र से भी (पितृभ्य: स्वधानमः) बोलकर पितरों के लिये जल छोड़ने मात्र से भी पितृयज्ञ पूर्ण हो जाता है ।'
उदाहरणार्थ सीताजी का रेत के लड्डू पिंड दान में देने का प्रसंग है।
एक छोटी सी बात और.. अपने केस के बारे में सबकुछ जानते हुए भी अपनी बात प्रभावशाली ढंग से न्यायाधीश तक पहुँचाने के लिए आप पैसे देकर वकील का सहारा लेते हैं।कोई कारण होगा! अब इस बात को आप ब्राह्मण से जोड़ कर देखेगे तो शायद समझ आजाए की हर व्यक्ति  ब्राह्मण को ही भोजन क्यों कराना चाहता है।
पित्र पक्ष में कौए को खीर या घी शक्कर वाली रोटी देने का वैज्ञानिक कारण है।भादो मास में कौए के अंडे से नए बच्चों का जन्म होता है।इसलिये माँ-बच्चों को पौष्टिक भोजन की आवश्यक्ता होती है।अब प्रश्न यह कि इससे हमें क्या लाभ! दुनिया जानती है पीपल और बरगद दो ऐसे पेड़ हैं जिनका वैज्ञानिक महत्व बहुत ही अधिक है।इनका धरती पर होना हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं। लेकिन ये पेड़ उगते कैसे हैं?कौआ इन पेड़ों के फल खाता है फिर कौए के पेट मे इस बीज की प्रोसेसिंग होती है।इसके बाद कौआ जब बीट करता है तो यह प्रोसेस्ड बीज बाहर आता है और उस स्थान पर ये पेड़ उगते हैं!यानी कि कौए की सहायता के बिना ये जीवनदायी पेड़ उगाना सम्भव नहीं है। इसीलिए हम इनकी नई पीढ़ी की रक्षा के लिए श्राद्ध में 16 दिन इन्हें भोजन देते हैं।वैसे इस भेद को जानकर यह व्यवस्था बनाने वाले हमारे ऋषि मुनि भी ब्राह्मण ही थे।
अंत मे एक बार फिर आपको याद दिला दूँ जब तक आप स्वयं चलकर ब्राह्मण को बुलाने नहीं जाएंगे वे आपके घर नहीं आएंगे। आत्मनिर्भर बनें! निश्चिंत रहे!!
जय परशुराम🙏🚩⛏️
✍️रेणुका व्यास #YourQuoteAndMine
Collaborating with Renuka Vyasजी की लेखनी शानदार है इसी कड़ी में मैं आपके साथ कुछ बातें साझा करूँ .....😊💐 सभी पाठक गणों को नमन।
😊🙏
:
भारतीय संस्कृति जो कि वैदिक जीवनशैली पर आधारित है।हमारे शास्त्र और धार्मिक ग्रंथ - प्रकृति,परमात्मा और जीवात्मा के मिश्रित स्वरूप को सृष्टि के रूप में व्यक्त करते हैं।
जीवात्मा ईश्वर का अंश और अमर माना गया है जो प्रकृति के माध्यम से पृथ्वी पर आता है। स्वतंत्र जीवन का आनंद लेने।यहाँ आकर कर्मों का संचय करता है।अपनी इच्छा और उद्देश्य  निर्धारित करता है। उन्हें पूरा करने के लिए पूरा जीवन लगा देता है।लेकिन कुछ अधूरी इच्छाओं को वह अपनी नई पीढ़ी के लिए छोड़ जाता है। जिसे उसकी सन्तति पूरा करती है।यह क्रम चल पड़ता है जिसे "पुनर्जन्म" की अवधारणा या सिद्धांत के रूप में हमारे मनीषियों ने प्रस्तुत किया।
:
मृत्यु के पश्चात अधूरी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए "पितृ-प्राण" के रूप में जीवात्मा का एक अंश अपनी नई पीढ़ी के पास ही रह जाता है। उस पितृ प्राण की इच्छाओं को और उसके पुनर्जन्म की उम्मीद को पूरा करने के लिए श्राद्ध- या तर्पण का विधान पितृ पक्ष में अपनी स्थिति के अनुसार किया जाता है।
:
हम अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देकर उनके द्वारा दी गई सीख और उनके द्वारा बनाये गए रास्तों पर चल रहे हैं की भावना स्वरूप आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
:
ब्राह्मणों से इसका क्या लेना देना है---?
😊
यह प्रश्न आजकल बहुत लोग करते हैं तो सुनो..... साधारण सी बात है।
:
प्रकृति- परमात्मा और जीवात्मा का सिद्धांत ब्राह्मणों ने दिया।
:
पुनर्जन्म का सिद्धांत भी ब्राह्मणों ने दिया आज विश्वभर में इसे स्वीकार भी किया जाता है।
:
इन विशिष्ट सिद्धान्तों के प्रणेता ब्राह्मणों के ऋण को चुकाने के लिए पुरातन काल से ही सुसंस्कृत लोग कृतज्ञता प्रकट करने के लिए उन्हें निमंत्रण देकर भोजन और दक्षिणा स्वेच्छा से करते आये हैं।
:
😊💐
कहने को और भी बहुत से कारण हैं किंतु बात को लंबी न खींचते हुए यही कहूँगा कि समझदार के लिए इशारा ही काफ़ी होता है।
😊🙏जय श्री कृष्ण। जाते जाते एक बात और--- 😁🙏
आज कोई नए सिद्धांत और शोध कर कुछ बनाकर राष्ट्र या समाज को देता है तो उसे रॉयल्टी मिलती है ना ये दक्षिणा और सम्मान उन हमारे पूर्वजों की रॉयलिटी है जिसे रॉयल लोग आज तक देते आ रहे हैं और आगे भी देते रहेंगे।😁
#पाठकपुराण की एक बात और 

शब्दों के उस पार

अपनी अपनी धुन पर नाचने वालों को छोड़,
जहाँ सुन सकूँ प्रकृति की साश्वत ध्वनियों को।
:
#पाठकपुराण की ओर से शुभरात्रि साथियो.....😊💐💐💐💐💐
#yqdidi #yqbaba #yqhindi
    

समय के उस पार देखने की दृष्टि गुरु ही दे सकते हैं।

संस्कृति और संस्कार का ज्ञान वक़्त के माध्यम से आ सकता है क्या?
एक बेहतर शिक्षक अपने द्वारा दिये गए शानदार प्रशिक्षण से ही साधारण प्रतिभा को निखार सकता है।
सोचिये-- चंद्रगुप्त मौर्य को चाणक्य वक़्त के हाथों सीखने छोड़ देते तो क्या आज हम एक महान सम्राट के बारे में पढ़ रहे होते!
:
वक़्त और ज़िन्दगी हमें स्वाभाविक ज्ञान और पिछले किये गए अपने कर्मों के अर्जित प्रतिफलों को अनुभव के आधार पर भविष्य के लिए बेहतर करना सिखा सकता है लेकिन जीवन भर हमें अपने शिक्षकों के द्वारा प्राप्त ज्ञान ही मार्ग दिखायेगा।
:
शास्त्रों में समय के महत्व को समझने पर जोर दिया है।
और गुरुजनों ने समय के उस पार देखने की क्षमता।
:
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूँ पाँय।
बलिहारी गुरु आपणी गोविंद दियो मिलाय।
:
गुरूर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वराय।
गुरुरसाक्षतः परम् ब्रह्म तस्मई श्री गुरुवे नमः।
😊🙏
वक़्त और ज़िन्दगी उनके शानदार होते हैं जिनके पास सुयोग्य शिक्षकों का सानिध्य प्राप्त होता है।
:
चॉकलेट खिलाओ मत खिलाओ लेकिन अपने शिक्षकों के प्रति आस्था और श्रद्धावनत जरूर रहो।जो अपने गुरुजनों का सम्मान करते हैं वही लोग समाज के विकास में सहायक होते हैं। ऐसे लोग कभी किसी का अहित भी नहीं करते।
:
जय श्री कृष्ण.....😊😊🙏
#पाठकपुराण 
#teacher's day
#yqdidi #yqbaba #yqhindi  

शिक्षा का अधिकार एक मनुस्मृति का विचार।

शिक्षा के अधिकारों को लेकर देश में सबसे पहले 18 मार्च 1910 में ब्रिटिश विधान परिषद के समक्ष निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रस्ताव गोपाल कृष्ण गोखले जी ने रखा था जो उस समय ख़ारिज कर दिया गया था।
:
इसके  बाद आज़ाद भारत के संविधान में इसके लिए कई प्रावधान और संशोधन हुए जो -आगे चल कर निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के रूप में पारित हुआ और 1 अप्रैल 2010 से लागू हो गया। इसे हम आज (RTE) 06- 14 बर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य रूप से विद्यालय से जोड़ कर पढ़ाया जा रहा है।
:
मैं तो बस यह बताना चाहता हूँ कि यह शिक्षा के अधिकार का मूल विचार मनुस्मृति के एक श्लोक के सूत्र में निहित है--
😊

कन्यानां सम्प्रदानं च कुमाराणां च रक्षणाम।।
:
5 वर्ष के बाद कन्याओं और कुमारों अर्थात लड़कीयों और लड़कों को घर में न रख कर उन्हें विद्याध्यन के लिए अनिवार्य रूप से भेज देना चाहिए। इसके लिए राजनियम (सरकार) की व्यवस्था जातिनियम के अनुरुप होनी चाहिए।
:
😀
जातिनियम- मतलब कन्याओं के लिए अलग और कुमारों के लिए अलग पाठशाला की व्यवस्था हो।
:
अब इसमें गलत क्या है ?
:
"जातिनियम"- मनुस्मृति के दौर में समाज जातिगत आधार पर विभाजित न होकर वर्ण व्यवस्था के अनुरूप चलता था। उसी अनुरूप शिक्षा का विधान था। शिल्पकार, स्वर्णकार, कृषक, सैनिक,व्यापारीयों, पशुपालकों आदि को उनकी रुचि अनुरूप शिक्षित किया जाता था। लेकिन आज़ादी के बाद जब बचे कुचे ग्रंथों और स्मृतियों को टटोला गया तो उनमें सदियों की गुलामी और अज्ञान के बढ़ जाने से अर्थ का अनर्थ कर दिए। फलस्वरूप हम शास्त्रों से दूर होकर श्वेच्छाचार के शिकार हो गए। समय ने भी पलटी ली और तकनीकी विकास हुआ। जंगल खेत मिटते गए पेड़ कटते गए कंक्रीट बिछती गई और आज हम विकास के चरम पर इतराने में लगे थे कि- समय ने फिर करवट बदल ली।
इस बार बहुत कुछ सीखने को मिला आयुर्वेद और अपनी पुरातन परंपराओं को पहचाना। नमस्ते का प्रचलन बढ़ा। छुआ छूत का महत्व समझ आया।और प्रकृति के सानिध्य की उपयोगिता को स्थान मिला। भविष्य के लिए बेहतर संकेत हो सकते हैं क्योंकि हमारे देश की आपदा को अवसर में बदलने की क्षमता अद्भुद है।
😊🙏
बात को यहीं विराम देता हूँ जय श्री कृष्ण-----
:
#पाठकपुराण  #yqdidi #yqhindi #सार्वजनिक_अनुशासन_की_कमी_एवं_अशिक्षा #विज्ञान_का_ताण्डव 

भावों की मुट्ठी।

 हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...