कुछ लोगों को ब्राह्मणों से तो विशेष समस्या है ही।उनका यह प्रश्न भी है कि श्राद्ध में कौए की खाई हुई खीर हमारे पूर्वजों के पेट मे कैसे पहुँच जाएगी। तो सबसे पहले तो मैं आपको याद दिला दूँ की ब्राह्मण कभी बिना बुलाए आपके घर नहीं आते हैं। मेरा आपसे निवेदन है कि आपके घर मे बच्चे का जन्म होने पर कृपया आप कुंडली बनवाने, प्रसूति स्नान का महूर्त पूछने या नामकरण के लिए ब्राह्मण के पास ना जाएं।आप डॉक्टर के पास जाते हैं कंसल्टिंग फीस देनी ही पड़ती है। ब्राह्मण से महूर्त पूछने जाएंगे तो दक्षिणा भी देनी होगी। विवाह के लिए आप कोर्ट की शरण मे जाएं ।ना ब्राह्मण को दक्षिणा देनी होगी ना ही भोजन कराना पड़ेगा।आपके घर मे किसी की मृत्यु होने पर आप अपने हिसाब से उसे अग्नि में भस्म करने के लिए स्वतंत्र हैं।ब्राह्मण आपसे नहीं कहेंगे कि आप विधिवत दाह संस्कार कीजिये या पिंड दान दीजिये। और इसके बाद श्राध्द आदि का तो प्रश्न ही नहीं उठता। इसी तरह आप ब्राह्मणों के अत्याचार और लूटपाट से पूरी तरह बच जाएंगे।यह मेरा दावा है कि जब तक आप स्वयं चल कर ब्राह्मण को बुलाने नहीं जाएंगे, ब्राह्मण आपके घर नहीं आएगा!
अब बात करते हैं श्राध्द की।तो बिल्कुल सरल और कम शब्दों में कहने का प्रयास करती हूँ। श्राध्द में दिए जाने वाले भोजन का आयुर्वेदिक महत्व तो पहले बता ही चुकी हूँ। तो स्वाभाविक है कि वह भोजन केवल हमारे पेट मे जाता है ना कि पितरों के। शास्त्रों के अनुसार जब हम पितरों के निमित्त भोजन देते हैं तो वे यदि सूक्ष्म रुप उपस्थित है तब वे भोजन की गन्ध को ग्रहण करके तृप्त होते हैं। यदि वे किसी पशु की योनि में है तो वह भोजन उन्हें चारे या भोजन के रूप में वहाँ प्राप्त होता है। यदि इंसान के रूप में है तब भी दिया गया दान उन्हें किसी न किसी रूप में प्राप्त होता है।आपने कई बार अनुभव किया होगा अचानक ही आपको कोई ऐसा लाभ हो जाता है जिसकी आशा नहीं थी।कई लोगों को सड़क पर पड़े हुए नोट मिल जाते हैं।कोई आपको बेवजह उपहार या कोई पकवान दे जाता है! ब्राह्मण आपसे कभी नहीं कहते कि आप स्वयं भूखे रह कर उन्हें भोजन कराएं। श्राद्ध अपनी क्षमता के अनुसार किया जाता है। आप चाहें तो पकवान खिला सकते हैं, सीधा दे सकते हैं। अगर उतनी हैसियत नहीं है तो गाय को चारा डाल सकते हैं।अगर उतना भी सम्भव न हो तो जौ और तिल की आहुति देने से भी काम चल जाएगा। अगर वह भी सम्भव ना हो तो सूर्य नारायण को जल चढ़ा कर कहें- "मैं(अपना नाम), (पिता का नाम),(जिनके निम्मित श्राध्द है) का पूर्ण श्रध्दा भाव से श्राद्ध करता हूँ। हे सूर्यनारायण मेरे (पित्र) को संतुष्ट करने की कृपा करें।"
अरहर: स्वधाकुर्यादोदपात्रात्तथैतं पितृयज्ञं समाप्नोति ।
श्रीशुक्लयजुर्वेद शतपथब्राह्मणम् ११/३/८/२
'नित्य-नित्य अन्न व फल मूलादि के अभाव में जलमात्र से भी (पितृभ्य: स्वधानमः) बोलकर पितरों के लिये जल छोड़ने मात्र से भी पितृयज्ञ पूर्ण हो जाता है ।'
उदाहरणार्थ सीताजी का रेत के लड्डू पिंड दान में देने का प्रसंग है।
एक छोटी सी बात और.. अपने केस के बारे में सबकुछ जानते हुए भी अपनी बात प्रभावशाली ढंग से न्यायाधीश तक पहुँचाने के लिए आप पैसे देकर वकील का सहारा लेते हैं।कोई कारण होगा! अब इस बात को आप ब्राह्मण से जोड़ कर देखेगे तो शायद समझ आजाए की हर व्यक्ति ब्राह्मण को ही भोजन क्यों कराना चाहता है।
पित्र पक्ष में कौए को खीर या घी शक्कर वाली रोटी देने का वैज्ञानिक कारण है।भादो मास में कौए के अंडे से नए बच्चों का जन्म होता है।इसलिये माँ-बच्चों को पौष्टिक भोजन की आवश्यक्ता होती है।अब प्रश्न यह कि इससे हमें क्या लाभ! दुनिया जानती है पीपल और बरगद दो ऐसे पेड़ हैं जिनका वैज्ञानिक महत्व बहुत ही अधिक है।इनका धरती पर होना हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं। लेकिन ये पेड़ उगते कैसे हैं?कौआ इन पेड़ों के फल खाता है फिर कौए के पेट मे इस बीज की प्रोसेसिंग होती है।इसके बाद कौआ जब बीट करता है तो यह प्रोसेस्ड बीज बाहर आता है और उस स्थान पर ये पेड़ उगते हैं!यानी कि कौए की सहायता के बिना ये जीवनदायी पेड़ उगाना सम्भव नहीं है। इसीलिए हम इनकी नई पीढ़ी की रक्षा के लिए श्राद्ध में 16 दिन इन्हें भोजन देते हैं।वैसे इस भेद को जानकर यह व्यवस्था बनाने वाले हमारे ऋषि मुनि भी ब्राह्मण ही थे।
अंत मे एक बार फिर आपको याद दिला दूँ जब तक आप स्वयं चलकर ब्राह्मण को बुलाने नहीं जाएंगे वे आपके घर नहीं आएंगे। आत्मनिर्भर बनें! निश्चिंत रहे!!
जय परशुराम🙏🚩⛏️
✍️रेणुका व्यास #YourQuoteAndMine
Collaborating with Renuka Vyasजी की लेखनी शानदार है इसी कड़ी में मैं आपके साथ कुछ बातें साझा करूँ .....😊💐 सभी पाठक गणों को नमन।
😊🙏
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भारतीय संस्कृति जो कि वैदिक जीवनशैली पर आधारित है।हमारे शास्त्र और धार्मिक ग्रंथ - प्रकृति,परमात्मा और जीवात्मा के मिश्रित स्वरूप को सृष्टि के रूप में व्यक्त करते हैं।
जीवात्मा ईश्वर का अंश और अमर माना गया है जो प्रकृति के माध्यम से पृथ्वी पर आता है। स्वतंत्र जीवन का आनंद लेने।यहाँ आकर कर्मों का संचय करता है।अपनी इच्छा और उद्देश्य निर्धारित करता है। उन्हें पूरा करने के लिए पूरा जीवन लगा देता है।लेकिन कुछ अधूरी इच्छाओं को वह अपनी नई पीढ़ी के लिए छोड़ जाता है। जिसे उसकी सन्तति पूरा करती है।यह क्रम चल पड़ता है जिसे "पुनर्जन्म" की अवधारणा या सिद्धांत के रूप में हमारे मनीषियों ने प्रस्तुत किया।
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मृत्यु के पश्चात अधूरी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए "पितृ-प्राण" के रूप में जीवात्मा का एक अंश अपनी नई पीढ़ी के पास ही रह जाता है। उस पितृ प्राण की इच्छाओं को और उसके पुनर्जन्म की उम्मीद को पूरा करने के लिए श्राद्ध- या तर्पण का विधान पितृ पक्ष में अपनी स्थिति के अनुसार किया जाता है।
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हम अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देकर उनके द्वारा दी गई सीख और उनके द्वारा बनाये गए रास्तों पर चल रहे हैं की भावना स्वरूप आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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ब्राह्मणों से इसका क्या लेना देना है---?
😊
यह प्रश्न आजकल बहुत लोग करते हैं तो सुनो..... साधारण सी बात है।
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प्रकृति- परमात्मा और जीवात्मा का सिद्धांत ब्राह्मणों ने दिया।
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पुनर्जन्म का सिद्धांत भी ब्राह्मणों ने दिया आज विश्वभर में इसे स्वीकार भी किया जाता है।
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इन विशिष्ट सिद्धान्तों के प्रणेता ब्राह्मणों के ऋण को चुकाने के लिए पुरातन काल से ही सुसंस्कृत लोग कृतज्ञता प्रकट करने के लिए उन्हें निमंत्रण देकर भोजन और दक्षिणा स्वेच्छा से करते आये हैं।
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😊💐
कहने को और भी बहुत से कारण हैं किंतु बात को लंबी न खींचते हुए यही कहूँगा कि समझदार के लिए इशारा ही काफ़ी होता है।
😊🙏जय श्री कृष्ण। जाते जाते एक बात और--- 😁🙏
आज कोई नए सिद्धांत और शोध कर कुछ बनाकर राष्ट्र या समाज को देता है तो उसे रॉयल्टी मिलती है ना ये दक्षिणा और सम्मान उन हमारे पूर्वजों की रॉयलिटी है जिसे रॉयल लोग आज तक देते आ रहे हैं और आगे भी देते रहेंगे।😁