#हुलस_रहा_माँटी_का_कण_कण_उमड़_रही_रसधार_है_त्योहारों_का_देश_हमारा_हमको_इससे_प्यार_है_।
भादों माह लगते ही हर दिन व्रत, पर्व, और उत्सव के रूप में हम मनाते हैं।कल #ऋषिपँचमी के बारे में बताया और आज आपको बतायेंगे #देवछठ के बारे में।
भादों माह के शुक्ल पक्ष की छठमीं तिथि को हम "कालियावन" वध की ख़ुशी के रूप में मनाते हैं।इससे जुड़ी एक कथा विष्णु पुराण के पंचम अंश के तेईस वें अध्याय में मिलती है और उसे विस्तार से श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कन्द के अध्याय इक्यावन में दिया गया है।
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कथा इस प्रकार है कि- जब भगवान श्रीकृष्ण कंस का वध कर अपने राज्य का विस्तार कर रहे थे तो यवन का एक अति महत्वकांक्षी "कालयवन" नाम का आक्रमणकारी मथुरा पर चढ़ाई कर बैठा । श्री कृष्ण ने उसका युद्ध में डट कर सामना किया और उसे भगा दिया। चोट खाया कालयवन अब उपाय ढूंढने लगा कि कृष्ण को कैसे हराये उसने अपने मंत्रियों से सलाह-मशविरा किया तो पता चला कि भारतीय राजा ब्राह्मणों का वध नहीं करते न उन पर शस्त्र उठाते हैं।इसलिए उसने ब्राह्मणों का अपहरण करना प्रारम्भ कर दिया और उन्हें आपनी ढाल बनाकर पुनः मथुरा पर चढ़ाई कर दी। जब इस बात की भनक कृष्ण को लगी तो वो निहत्थे और अकेले ही रण-क्षेत्र में पहुँच गए।कृष्ण को अकेला देख कालयवन दंग रह गया।कृष्ण मुस्कुराकर बोले मुझे तो लगा तुम बहुत बड़े योद्धा हो तुम तो निपट कायर और डरपोक निकले।द्विज श्रेष्ठों के पीछे खड़े होकर लड़ोगे मुझसे असली योद्धा हो तो आओ सामने और उन्हें मुक्त कर दो, देखो आज में अकेला हूँ और वचन भी देता हूँ सुदर्शन चक्र का प्रयोग नहीं करूँगा।इतना सुनते ही वह कृष्ण की ओर लपका तो कृष्ण मुस्कुराए और रण छोड़ कर भाग खड़े हुए---😊 कालयवन चीख़ता हुआ बोला "रणछोड़" कर कहाँ भागते हो तो कृष्ण ने मुस्कुराते हुए बोला पकड़ कर दिखाओ तो तुम विजयी घोषित कर दिए जाओगे और यवन के सैनिकों को विपरीत दिशा में भागने का इशारा कर फिर दौड़ लगादी।कृष्ण आगे आगे कालयवन पीछे पीछे दौड़ते दौड़ते कृष्ण भगवान सीधे हमारे धौलपुर की धौलागिरी पर्वतीय गुफाओं में उसे ले आये। धौलागिरी पर्वत की एक गुफ़ा में कृष्ण ने मचकुण्ड महाराज को सोते देखा तो उनके ऊपर अपना पीताम्बर उढ़ाकर वहीं छुप गए। जब कालयवन हांफते हांफते वहाँ पहुँचा तो सोते हुए मचकुण्ड महाराज को कृष्ण समझ कर लात देदी और कहा कि यहाँ आ सोया है उठ "रणछोड़" अचानक से नींद में भंग पड़ते ही मचकुण्ड महाराज उठे और उसको पकड़ कर जिन्दा जला दिया। इस प्रकार दुष्ट कालयवन का अंत हुआ और भगवान कृष्ण मचकुण्ड महाराज को सारा वृतांत बताकर उनसे क्षमा याचना कर वापस मथुरा आ गए।
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मचकुण्ड महाराज के बारे में किवदंती है कि वह मांधाता के पुत्र देवासुर संग्राम के शानदार योद्धा थे युद्ध विजय करने के बाद धौलपुर में विश्राम करने के लिए आये थे। चार धाम की यात्रा करने के पश्चात इनका आशीर्वाद लेने के लिए आना अनिवार्य है ये तीर्थों का भान्जे के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
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वर्तमान में मचकुण्ड महाराज के तीर्थ स्थल का जो सुंदर स्वरूप है उसे 1856 में राजा भगवन्त सिंह जी ने निर्माण कराया था।
#पाठकपुराण की ओर से आप सभी का स्वागत है आपको ये जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बतायें।
जय श्री कृष्ण।😊🙏
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