Tuesday, September 8, 2020

भादों माह ( व्रत पर्व उत्सव के दिन )

#भादोंमाह_शुक्लपक्ष_की_दशमी का दिन राजस्थान के इतिहास में विशेष स्थान रखता है। नर-नारी के शौर्य और बलिदानों के लिए जाने वाली इस पावन भूमि की महानता को सारा विश्व जानता है। आओ आपको ऐसे ही कुछ किस्सों से रुबरु कराते हैं-----
सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण” और अमृता देवी गुरू जांभोजी महाराज की जय बोलते हुए सबसे पहले पेड़ से लिपट गयी, क्षण भर में उनकी गर्दन काटकर सिर धड़ से अलग कर दिया। फिर तीनों पुत्रियों पेड़ से लिपटी तो उनकी भी गर्दनें काटकर सिर धड़ से अलग कर दी गई।
1. #खेजड़ली

सन् 1730 में जोधपुर के राजा अभयसिंह को युद्ध से थोड़ा अवकाश मिला तो उन्होंने महल बनवाने का निश्चय किया।नया महल बनाने के कार्य में सबसे पहले चूने का भट्टा जलाने के लिए इंर्धन की आवश्यकता बतायी गयी।राजा ने मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी को लकड़ियों की व्यवस्था करने का आदेश दिया।
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खेजड़ली में राजा के कर्मचारी सबसे पहले अमृता देवी के घर के पास में लगे खेजड़ी के पेड़ को काटने आये तो अमृता देवी ने उन्हें रोका और कहा कि “यह खेजड़ी का पेड़ हमारे घर का सदस्य है। यह मेरा भाई है इसे मैंने राखी बांधी है, इसे मैं नहीं काटने दूंगी” इस पर राजा के कर्मचारियों ने प्रश्न किया कि “इस पेड़ से तुम्हारा धर्म का रिश्ता है,तो इसकी रक्षा के लिये तुम लोगों की क्या तैयारी है”? इस पर अमृता देवी और गांव के लोगों ने अपना संकल्प घोषित किया- “सिर साटे रूख रहे तो भी सस्तो जाण” अर्थात् हमारा सिर देने के बदले यह पेड़ जिंदा रहता है तो हम इसके लिये तैयार है।उस दिन तो पेड़ कटाई का काम स्थगित कर राजा के कर्मचारी चले गये, लेकिन इस घटना की खबर खेजड़ली और आसपास के गांवों में शीघ्रता से फैल गयी।
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कुछ दिन बाद मंगलवार 21 सितम्बर 1730 ई. (भाद्रपद शुक्ल दशमी, विक्रम संवत 1787) को मंत्री गिरधारी दास भण्डारी लावलश्कर के साथ पूरी तैयारी से सूर्योदय होने से पहले आये,जब पूरा गाँव सो रहा था।सबसे पहले अमृता देवी के घर के पास में लगे खेजड़ी के हरे पेड़ो की कटाई करना शुरु किया तो,आवाजें सुनकर अमृता देवी अपनी तीनों पुत्रियों के साथ घर से बाहर निकली।
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हरे भरे पेड़ों को कटते देख उनसे नहीं रहा गया और वे ....
“सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण” और अमृता देवी गुरू जांभोजी महाराज की जय बोलते हुए सबसे पहले पेड़ से लिपट गयी,क्षण भर में उनकी गर्दन काटकर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर तीनों पुत्रियों पेड़ से लिपटी तो उनकी भी गर्दनें काटकर सिर धड़ से अलग कर दिये।
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चीत्कार सुनकर आस-पास 84 गांवों के लोग आ गये।उन्होनें एक मत से तय कर लिया कि एक पेड़ के एक विश्नोई लिपटकर अपने प्राणों की आहुति देगा। सबसे पहले बुजुर्गों ने प्राणों की आहुति दी।तब मंत्री गिरधारी दास भण्डारी ने बिश्नोईयों को ताना मारा कि ये अवांच्छित बूढ़े लोगों की बलि दे रहे हो। उसके बाद तो ऐसा जलजला उठा कि बड़े,बूढ़े, जवान, बच्चे स्त्री-पुरुष सबमें प्राणों की बलि देने की होड़ मच गयी।
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बिश्नोई जन पेड़ो से लिपटते गये और प्राणों की आहुति देते गये।आखिर मंत्री गिरधारी दास भण्डारी को पेड़ो की कटाई रोकनी पड़ी।ये तूफ़ान थमा तब तक कुल 363  बिश्नोईयों (71 महिलायें और 292 पुरूष) ने पेड़ की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दे दी।खेजड़ली की धरती बिश्नोईयों के बलिदानी रक्त से लाल हो गयी।यह मंगलवार 21 सितम्बर 1730 (भाद्रपद शुक्ल दशमी, विक्रम संवत 1787) का ऐतिहासिक दिन विश्व इतिहास में इस अनूठी घटना के लिये हमेशा #चिपकोआन्दोलन के रूप में याद किया जाता है। खेजड़ली गाँव में प्रतिवर्ष आज के दिन विशाल मेले का आयोजन होता है। मैं इन शहीदों को सत सत नमन करता हूँ। पर्यावरण के महत्व को विश्व अब समझा है पर हमें गर्व है कि हमारे पूर्वजों ने इसे 231 साल पहले ही जान लिया था।
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शूर न पूछे  टिप्पणो,   शुगन न पूछे शूर।
मरणा नूं मंगल गिणै समर चढ़े मुख नूर।।
2. #वीर_तेजाजी
मारवाड़ के खरनाल गाँव जो राजस्थान नागौर जिले में 29 जनवरी 1074 में हुआ उनके पिता गाँव के मुखिया थे।
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पत्नी पेमल को लेने ससुराल गए तो उनकी साली मतलब पेमल की सखी लाछा गूजरी ने बताया कि उसकी गायों को मीणा गिरोह के डाकुओं ने चुरा लिया है। फिर क्या था सुनकर वीर तेजाजी निकल लिए और लुटेरों से लड़ाई लड़कर गायों को बापस ले आए।
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इन्हें शिव के रूप में पूजा जाता है और नाग या सांप के काटने पर इनके नाम या भभूति से इलाज किया जाता है। इनके साथ ही इनकी पत्नी पेमल सती हो गईं और बहिन राजल यह सुनकर धरती में समा गई।
इन्हें सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। आज के दिन इनका भी मेला लगता है।
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मोती सम ना ऊजला ,

चन्दन सम ना काठ ,

तेजा सम ना देवता ,

पल में करदे ठाठ ।।
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आपको यह जानकारी कैसी लगी मुझे जरूर बताइये बहुत बहुत स्वागत है आपका......
शुभरात्रि
#पाठकपुराण के साथ #लोकदेवता राजस्थान।

    

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