Thursday, November 19, 2020

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 11

"जैत्रसिंह"
मेवाड़ के शौर्य का एक और पन्ना।
(1213 - 1252 ई.)
मेवाड़ की गद्दी पर जैत्रसिंह के बैठते ही जालौर में चौहान राज्य के संस्थापक कीर्तिपाल से गुहिल राजा सामन्तसिंह की पराजय का बदला लेने के लिए अपने समकालीन नाडौल के चौहान राजा उदयसिंह पर आक्रमण कर दिया।उदयसिंह ने अपने राज्य को बचाने के लिए अपनी पौत्री रुपादेवी का विवाह जैत्रसिंह के पुत्र तेजसिंह के साथ कर मेवाड़ और नाडौल में मैत्री स्थापित की।जैत्रसिंह ने मालवा के परमार राजा देवपाल को हराकर अपना अधिकार जमाया और गुजरात के सोलंकियों का मैत्री प्रस्ताव ठुकरा दिया।इधर दिल्ली में तुर्कों की जड़ें मज़बूत हो गईं तो "इल्तुतमिश" ने मेवाड़ को अधिकार में लेने के लिए आक्रमण कर दिया। जब अजमेर के चौहानों की शक्ति का पतन हो गया तो राजस्थान के विस्तृत भू-भाग पर तुर्को ने लूट ख़सूट शुरू कर दी थी।मेवाड़ अभी भी मोहम्मद गौरी और कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमणों से बचा हुआ था।
1222 से 1229 ई. के मध्य 'इल्तुतमिश' ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया।जय सिंह सूरि ने अपने "हम्मीरमदमर्दन" में लिखा है कि मुस्लिम सेना मेवाड़ की राजधानी 'नागदा' तक पहुँच गई। उसने आसपास के कस्बों,गाँवों को बर्बाद कर दिया और कई भवनों को नष्ट कर सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी गई।
:
जब युद्ध के मैदान में जैत्रसिंह ने सीधे न कूदकर छापामार युद्ध नीति का उपयोग किया तो इल्तुतमिश की सेना के पैर उखड़ गए और मुसलमान पदाक्रांता भाग खड़े हुए लेकिन उससे पहले वे नागदा को नष्ट कर चुके थे। इसकी पुष्टि चीरवा के शिलालेख से होती है।
:
डॉ दशरथ शर्मा कहते हैं कि - जैत्रसिंह ने तुर्कों को पीछे खदेड़ दिया परन्तु मेवाड़ की राजधानी नागदा को बड़ी हानि उठानी पड़ी।
:
नागदा के नष्ट हो जाने के बाद ही गुहिलों ने चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया और फिर आने वाली कई सदियों तक उसे यह गौरव प्राप्त हुआ।
:
इल्तुतमिश के इस अभियान ने दिल्ली के लिए भावी विजय-योजनाओं के मार्ग खोल दिये थे।
:
आबू शिलालेख से पता चलता है कि जैत्रसिंह के साथ सिंध के शासक "नसीरुद्दीन कुबाचा" से भी युद्ध हुआ जो मोहम्मद गौरी का एक प्रनुख ग़ुलाम और सेनानायक रहा।उसके सेना नायक खवास खां को गुजरात अभियान के दौरान खदेड़ दिया।
:
दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन ने अपने भाई जलालुद्दीन को कन्नौज से दिल्ली बुलाया।जलालुद्दीन को लगा कि उसकी हत्या की जा सकती है तो वह अपने साथियों सहित चित्तोड़ के आसपास की पहाड़ियों में छुप गया।सुल्तान ने उनको ढूंढने के लिये बहुत प्रयास किये किन्तु आठ महीने की खोजबीन के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगा फ़रिश्ते ने इस समय को 1248 ई. के आसपास का बताया है। तारीख़े नासिरी का लेखक मिनहाज लिखता है कि जब उलूग ख़ाँ ( बलबन )को सुल्तान ने नाइब पद से हटाकर नागौर का इक्ता बना दिया तो उसने रणथम्भौर, बूंदी तथा चित्तौड़ तक लूटमार कर धनार्जन किया।राजस्थान के शिलालेख भी इस की पुष्टि करते हैं कि राजपूतों के कड़े प्रतिरोध के कारण बलबन को विशेष सफलता नहीं मिली।
:
डॉ ओझा कहते हैं कि- 
दिल्ली के ग़ुलाम सुल्तानों के समय में मेवाड़ के राजाओं में सबसे प्रतापी और बलवान राजा जैत्रसिंह हुआ जिसकी वीरता की प्रशंसा उसके विरोधियों ने भी की है।
:
जैत्रसिंह ने ही चित्तौड़ किले की मज़बूत प्राचीरों का निर्माण कराया।विद्वान और कलाकारों को आश्रय देकर मेवाड़ की ख्याति को बढ़ाया। 1253 ई. में जैत्रसिंह की मृत्यु हो गई और उनका उत्तराधिकारी तेजसिंह बना।तेजसिंह के समय का अंतिम शिलालेख वि. स. - 1324 ( 1267 ई. ) का मिला और उसके उत्तराधिकारी समरसिंह का प्रथम शिलालेख वि. स. - 1330 ( 1273 ई. ) का है। तेज सिंह ने 1267 से 1273 ई. के मध्य राज्य किया।
:
तेजसिंह ने वीरधवल जो कि 1243 ई. के आसपास त्रिभुवनपाल से गुजरात का राज्य छीनकर मेवाड़ की ओर बढ़ना चाहता था पर जैत्रसिंह ने उसके साथ मैत्री करने से इनक़ार कर दिया था से सामना हुआ गुजरात की सेना भाग खड़ी हुई इस युद्ध में मेवाड़ की जनधन हानि उठानी पड़ी। बलबन ने भी 1253 - 1254  ई. में हमला किया था किंतु उसे पराजय का सामना करना पड़ा और फिर कभी लौट कर नहीं आया।जैत्रसिंह की तरह तेजसिंह भी प्रतापी था।
:
तेज सिंह की मृत्यु कैसे हुई ये तो पता नहीं पर कुम्भलगढ़ प्रशस्ति,आबू शिलालेख,चीरवे के साहित्यिक कृतियों के आधार पर उसका उत्तराधिकारी माना जाता है वह भी अपने पिता और पितामह की तरह शक्तिशाली और वीर था। उसने 1299 ई. के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दो सेनानायकों उलूग ख़ाँ और नुसरत ख़ाँ ने बनास नदी को पार कर मडोसा के किले पर अधिकार कर लिया था।उस समय उलूग ख़ाँ सिंध से जैसलमेर के रास्ते चित्तौड़ आया था।"कान्हड़देव प्रबन्ध" इस घटना के प्रमाण देती है।जैन ग्रंथ तीर्थकल्प और रणकपुर मन्दिर शिलालेख यह बताते हैं कि गुहिल नरेश समरसिंह ने अलाउद्दीन को हराकर चित्तौड़ की रक्षा की। और मुस्लिम सेना नायकों से दण्ड लेकर उन्हें आगे जाने दिया।
:
चीरवे के लेख में समरसिंह को शत्रुओं का संहार करने में सिंह के समान अत्यंत शुर बताया है।
:
समरसिंह के समय पद्मसिंह,केलसिंह,कल्हण,कर्मसिंह जैसे शिल्पकारों के साथ ही रत्नप्रभ सूरि,पार्श्वचन्द्र,भाव शंकर,वेद शर्मा,शुभचन्द्र जैसे विद्वान मौजूद रहे।
:
🌹
आगे राजस्थान के इतिहास में क्या हुआ ये आपको अगली पोस्ट में बतायेंगे आज के लिए इतना ही काफी है।बने रहिये 🌹🌻🙏😊 #पाठकपुराण के साथ #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1  1 और पढ़ते रहिए अपने गौरवशाली अतीत के पन्नों को।
#yqdidi #yqbaba #yqhindi #गुलिस्ताँ #येरंगचाहतोंके साथ जय श्री कृष्ण।🌻🙏😊🌹🌼 सुप्रभातम।
Picture_credit:- #pinterest 

No comments:

Post a Comment

भावों की मुट्ठी।

 हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...