Thursday, November 12, 2020

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 08

"बापा-रावल"
ईडर के राजा नागादित्य की भीलों ने हत्या कर राज्य छीन लिया तो उनकी पत्नी अपने तीन साल के बच्चे को किसी भी तरह बचाकर बड़नगरा में रहने वाले उनके कुल पुरोहित नागर ब्राह्मण जिन्होंने गुहदत्त की रक्षा की थी के वंशज "वंशधर" जी के पास ले गई।जब ब्राह्मणों को भीलों से खतरा हुआ तो वे बच्चे को लेकर भाण्डेर दुर्ग के जंगल में "नागदा" के समीप 'पराशर' नामक स्थान पर लेजाकर निवास करने लगे।इसी जंगल में गाय चराने वाले एक ग्वाले को 'बप्पा' के रूप में जाना गया। एक मज़ेदार बात ये है कि अभी तक कोई इतिहासकार ये पता नहीं लगा पाया है कि "बप्पा" किसी राजा का नाम था या 'उपाधि' और अगर यह उपाधि थी तो किसकी?
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कनर्ल टॉड उसे 'शील' कहते हैं।श्यामलदास जी उन्हें शील का पोता 'महेंद्र' बताते हैं।डॉ. डी. आर.भण्डारकर उनको 'खुम्माँण' श्री ओझा जी ने उनको 'कालभोज' लिखा है।
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नाम कुछ भी रहा हो लेकिन 'बप्पा'- मेवाड़ के इतिहास का एक शानदार पृष्ठ है।जन श्रुतियों के आधार पर आपको उनसे मिलवाते है-----
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वंशधर रोज की तरह अपनी गायों का दूध निकाल रहे थे।कपिला गाय के नीचे बैठे तो उसके थनों में दूध ही नहीं था।उनको लगा बछड़े ने पी लिया होगा कोई बात नहीं लेकिन जब यह घटना रोज घटने लगी तो उनको आश्चर्य हुआ और अपने बेटे को बुलाकर कहा कि गाय को कहाँ दुहा लाते हो कई दिन से यह दूध नहीं दे रही अगले दिन गाय चराने जाओ तो ध्यान रखना।
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जब अगले दिन ग्वाला अपनी सारी गायों को पराशर के जंगल में ले गया जब शाम का वक़्त हुआ तो उसने देखा कि कपिला झुण्ड से अलग होकर पहाड़ी की दूसरी तरफ़ जा रही है।वह भी पीछे पीछे चल दिए।गाय एक गुफ़ा में पहुँची और वहाँ स्थित शिवलिंग पर अपने दूध की धार छोड़ने लगी।शिवलिंग के सामने 'हारीत' ऋषि तपस्या कर रहे थे उनको भी दुग्ध प्रदान किया।ग्वाले बालक को न क्रोध आया न गाय को कभी रोका जब 'हारीत' की तपस्या पूर्ण हुई तो सामने एक लड़के को देखा और जब उनको पता चला कि इस लड़के के गुण तो राजा बनने लायक हैं तो उसे मेवाड़ का राजा बनने का आशीर्वाद दिया।नैणसी ने लिखा है कि - 'हारीत' ऋषि ने उस लड़के को 15 करोड़ रुपये के मूल्य की स्वर्ण मुद्राएं दी और सेना बना कर मोरियों से राज्य लेने के लिए कहा। उस ग्वाले ने ऐसा ही किया और चित्तोड़ का राजा बन गया।
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एक जनश्रुति है कि -  नागदा के सोलंकी राजा की कन्या अपनी सखियों के साथ 'पराशर' जंगल में खेलने गईं थी।उनको झूला झूलना था किन्तु रस्सी उनके पास नहीं थी जब वह इधर उधर रस्सी ढूंढ रही थी तो गाय चराता एक लड़का दिखाई दिया।राकुमारी ने उससे कहा कि म्हारे लिए रस्सी ला दे छोरे झूला झुलणो है।ग्वाले ने कहा ठीक है ला दूँगा पर तन्ने म्हारे संग ब्याह रचानो पड़ैगो।बचपन की अठखेलियों में जब वह रस्सी ले आये तो उनके साथ खेलने लगे।राजकुमारी की सहेलियों ने दोनों की गाँठ बांध दी और आम के पेड़ के चारो ओर घूम कर सात फेरे करवा दिए।सखियों ने मंगल गीत भी गाए।शाम को थककर सभी बच्चे घर चले गये और इस घटना को भूल गए कुछ बरसों बाद जब राजकुमारी बड़ी हुई तो शादी के लिए कुण्डली और हस्त रेखा दिखाई गई।राजा के राजपुरोहित ने राजकुमारी का हाथ देखा तो दंग रह गया और बोला कि इस कन्या का विवाह हो चुका है अब नहीं होगा।यह सुनकर राजा के पैरों तले ज़मीन न रही।पता लगवाया गया तो बात खुल गई।राजा अपमान न करे इसलिए ग्वाला भाग कर पहाड़ों में छुप गया।लेकिन राजा ने उनको दहेज में आधा नागदा देकर सामन्त बना दिया।
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हालांकि यह बातें कल्पनिक लगती हैं किन्तु कहीं न कहीं ग्वाले के 'बप्पा' बनने का रहस्य भी इनमें ही छुपा है।
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आज के लिए इतना ही काफ़ी है अगली पोस्ट में हम आपको 'बप्पा' की वीरता के किस्से सुनाएंगे.........
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बप्पा रावल के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने गज़नी पर भगवा ध्वज फहराया।
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जय भारत जय राजस्थान।
#पाठकपुराण के साथ पढ़ते रहिये #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1  और आनंद लीजिये हमारे गौरव और शान का। महसूस करिये....
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Picture credit- #pintrest 

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