Sunday, November 29, 2020

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 12

जब तक प्रतिहारों में साहसी-पराक्रमी शासक उत्पन्न होते रहे उनका राज्य विस्तार भी हुआ।शुरुआती दौर में मण्डोर के प्रतिहार- नागभट्ट,शिलुक,बाउक शक्तिशाली रहे।उज्जैन और कन्नौज के प्रतिहारों में भी कई प्रतिभासंपन्न योद्धा हुए।समूचे राजस्थान पर अधिकार कर उन्होंने- गुहिल,राठौड़,चौहान तथा भाटियों को सामन्त बनाकर राज्य किया।जैसे ही इनकी केंद्रीय शक्ति कमज़ोर हुई तो सामन्तों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए।जिस राजस्थान की मिट्टी में उनका उदय हुआ,उसी राजस्थान को वे हमेशा के लिए अपना न रख सके। :
डॉ गोपीनाथ शर्मा लिखते हैं कि -
जोधपुर के शिलालेखों से यह प्रमाणित होता है कि प्रतिहारों का अधिवासन मारवाड़ में लगभग छठी शताब्दी के द्वित्तीय चरण में हो चुका था।उस युग में राजस्थान के पश्चिमी भाग को "गुर्जरत्रा" कहते थे इसलिए प्रतिहारों को "गुर्जर-प्रतिहार" या गूजर सम्बोधन मिला। विद्वानों के अनुसार इनकी राजधानी जो कि कर्नल टॉड के अनुसार 'पीलोभोलो' लिखा है वो आधुनिक भीनमाल या बाड़मेर हो सकता है।
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यूँ तो भगवान लाल इन्द्रजी ने इनको कुषाणों के समय बाहर से आए विदेशी माना है।बम्बई-गजेटियर ने भी इनको विदेशी माना है।डॉ भण्डारकर भी इनको एक जाति-विशेष के रूप में मानते हैं।
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डॉ ओझा इनको विदेशी नहीं मानते और प्रतिहारों का शासन 'गुर्जरत्रा' क्षेत्र में होने से इनको गुर्जर-प्रतिहार कहा है।
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मुहणोत नैणसी ने प्रतिहारों की 26 शाखाओं का उल्लेख किया और लिखा है कि राजस्थान ही नहीं अपितु गुजरात,काठियावाड़,मध्यभारत एवं बिहार के भी बहुत से क्षेत्र इनके अधीन रहे।
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ग्वालियर के अभिलेख में प्रतिहारों को क्षत्रिय और सौमित्र यानी लक्ष्मण के वंशज और कवि राजशेखर ने भी प्रतिहार नरेश महेन्द्रपाल को 'रघुकुल-तिलक' कहा है।
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प्रतिहारों की 26 शाखाओं में से एक मण्डोर के सबसे प्राचीन और प्रमुख हैं।इनके बारे में हमें जोधपुर शिलालेख जो कि 836 ई. में प्राप्त हुआ मिलती है।इसी तरह घटियाले से भी दो शिलालेख प्राप्त हुए जो कि 837 ई. और 861 ई. के हैं।इन शिलालेखों के अनुसार-
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प्रतिहारों के गुरु जो कि हरिश्चंद्र के नाम से जाने जाते हैं उनकी दो पत्नियाँ थी एक क्षत्राणी दूसरी ब्राह्मणी।ब्राह्मणी से उत्पन्न पुत्र ब्राह्मण-प्रतिहार कहलाये और क्षत्राणी पत्नी भद्रा से उत्पन्न क्षत्रिय-प्रतिहार हुए।भद्रा से चार पुत्र हुए-
भोग-भट्ट,कदक,रज्जिल और दह।चारो भाइयों ने बड़े होकर मांडव्यपुर ( मण्डोर ) को जीत लिया और उसकी सुरक्षा के लिए प्राचीरों का निर्माण कराया।
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ओझा के अनुसार हरिश्चंद्र का समय छठी शताब्दी के आसपास का होना चाहिए।उसके वंशजों में नागभट्ट प्रथम जो रज्जिल का पोता था बड़ा पराक्रमी हुआ।उसने अपने राज्य का विस्तार कर मण्डोर से 60 मील दूर मेड़ता को अपनी राजधानी बनाया।नागभट्ट के उत्तराधिकारियों के बारे में तो जानकारी नहीं है किन्तु उसकी दशवीं पीढ़ी में "शीलुक" हुआ जिसने वल्ल मण्डल के भाटी राजा देवराज को हराकर अपना राज्य बढ़ाया।शीलुक कई भाषाओं का जानकार और कवि था।उसकी दो पत्नियाँ थीं भाटी रानी से 'बाउक' और दूसरी रानी से 'कक्कुक' पैदा हुए।इसी बाउक ने 837 ई.में प्रशस्ति उत्कीर्ण करवा कर अपने वंश की जानकारी दी थी।इसके बाद कक्कुक ने भी कई शिलालेखों को बनवाया और एक अच्छे राजा के रूप में पहचान पाई।
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प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है कि बारहवीं सदी के मध्य मण्डोर के आसपास चौहानों का अधिकार हो गया था परन्तु किले पर प्रतिहारों की इंदा नामक शाखा का अधिकार रहा।अन्य प्रतिहार वंशियों ने शायद चौहानो के सामन्त बनकर शासन किया हो।1395 ई. में इन्दा प्रतिहारों ने अपने राजा हम्मीर से  परेशान होकर 'राठौड़' वीरम के पुत्र चूंडा को मण्डोर दहेज में दे दिया और इस प्रकार प्रतिहारों का प्रभाव समाप्त होकर धीरे धीरे सम्पूर्ण मारवाड़ राठौड़ों का हो गया।
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🌹🙏
क्रमशः---12
आज के लिए इतना ही काफ़ी है फिर मिलेंगे #पाठकपुराण के साथ #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1  2 लेकर तब तक आप इसका आनंद लीजिये। बहुत बहुत स्वागतम।
#yqdidi #yqhindi #yqbaba 

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