तेरी पायल की रुनझुन में,शब्द हमारे मौन हुए।
घायल होकर तरकश टूटा,तीर हमारे गौंण हुए।
कत्थई आँखों की कटार से,तुम जीते हम हारे!
दिल के दर्पण में देखा तो,भाव प्रेम के प्रौण हुए।
टुकड़े बीन रहा हूँ,घायल हाथों से अपने।
बे-दम ख़्वाब ख़्वाहिशें,पलकों के सपने।
सूख चुकी मन की सतहें,बनती रेगिस्तान!
रोपित नव पौधों का,दिखता नही निशान।
रोपित नव पोधों को तुम,अब तो देदो प्राण।
अँगड़ाई ले मौसम बदलो और लौटाओ जान।
नभ से अमृत बन बरसो तुम,रिमझिम प्रेमभरी।
बंजर में फिर फूल खिलाकर लौटा दो मुस्कान।
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