देश में हिंसात्मक गतिविधियों का बढ़ना चिंताजनक है।
अपराध,भ्रष्टाचार,दुराचार के बीज बढ़कर दरख़्त हो चुके हैं।
आजादी के बाद जिस भारत की कल्पना की थी।
मुझे तो नही लगता वह ऐसा होगा।
संविधान बना,क़ानून भी बने,
किन्तु न संविधान को व्यवहार में उतारा,
न ही क़ानून को।
धर्मनिरपेक्षता बस बयानबाजी तक ही सीमित रही।
जातिवाद, धार्मिक उन्माद, और कट्टरता बढ़ती गई।
हम भले ही कहते फिरते हों कि हम नही मानते जातिवाद,
हम सभी धर्मों का समान सम्मान करते है।
मुझे तो लगता है यह सब बातें स्कूल तक ही सीमित रह गईं।
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धर्म निरपेक्षता और जातिवाद न मानने वालों की पोल तो इसी बात से खुल जाती है कि ...
देश मे प्रत्येक जाति का या समाज का अपना एक संगठन है।
अब जो लोग अपनी जाति को ही बस समाज मानते हों उनके लिए "जातिवाद" को नकारने की हिम्मत कहाँ से आएगी।
क्या ऐसा नही है--- है तो जाती वाद कैसे ख़त्म करोगे?
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धर्म निरपेक्षता- विचार अच्छा है किंतु है कहाँ ? सबके अपने अखाड़े अपने संघटन अपने क़ानून। संविधान तो दूर की बात है। साथ में रहने वाले लोग भी आपस में आत्मसात करते नही दिखते।
कैसे साबित करोगे सेक्युलरटी ? नही करोगे तो ये सब चलता रहेगा जैसे पिछले 72 सालों से चलता आ रहा है।
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अधिकारों की तो बात छाती पीट पीट करते है लोग पर जब कर्तव्यों की बात आती है तो आँखे नटेरने लगते है।
कैसे कर पाओगे न्याय?
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ये तो शुक्र है उन संस्कारों का जो हमारी संस्कृति ने हमें दिये।
और उन भामाशाहों का जो इस बिकट परिस्थिति में देवता बनकर सामने आए अन्यथा अब तक तो निपट लिए होते। बस यह अच्छाई ही हमारे लिए उम्मीद की किरण है। इसी की बदौलत देश को बचाया जा सकता है।
मेरा उन सभी प्रबुद्ध जनों और देवतुल्य आत्माओं से निवेदन है कि राष्ट्र को नई दिशा देने के लिए पुनर्विचार करें और एक बार सम्पूर्ण भारत को भारत वर्ष बनाने में मदद करें।
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कृष्ण बन कर इस युद्ध में सारथी की भूमिका निभाएं और देश का बंटाधार होने से बचायें। अन्यथा कई तरह के संघर्ष मुहबाएँ खड़े है।
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#पाठकपुराण #कट्टरता_के_नशे_में_धुत्त
#पंछी #पाठक #हरे_कृष्ण
बिलकुल सही कहा आपने
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