एहसासों की सरगम बजती,
फ़िर भी आहें भरते हैं।
कुछ लम्हो में जी लेते हैं,
बस पल भर में मरते है।
छुईमुई सी शर्माती हूँ जब,
छूने की कोशिश करते हैं।
सौंदर्य देखती दुनिया सारी,
शब्द,रूप,रस,गंधो में!
पर हम गुण वाचक ग्राही हैं,
हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...
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