अंग्रेजियत के साथ
राजनीतिक अराजकता का
जो वातावरण बना है,
उसने स्वतंत्र भारत के,
सपनों को चूर-चूर कर दिया।
हम बात करते रहे विश्व बंधुत्व की,
बाँटते रहे ज्ञान गीता का।
उन्हें मौका मिला तो,हमारी मर्यादा को
तार-तार कर दिया।
वाह रे लोकशाही,ये कैसा?
लोकतंत्र! कौनसा मानव धर्म?
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#विज्ञान_का_ताण्डव देख कर अभी लोगों की आँखें नही खुली शायद। इसलिए अभी भी #कट्टरता_के_नशे_में_धुत्त मूर्खों ने विष के बीज बो दिए। तुम्हें वक़्त तो माफ़ नहीं करेगा रही बात धार्मिकता की तो उस सत्ता का विनाश निश्चित हो जाता है जिसमें निर्दोष की हत्या की जाती है। अवध्य की हत्या तो सबसे बड़ा अनर्थ है। ये अनर्थ की आग लगाकर तुम शुकून से जी पाओ संभव नहीं। मैं उन तमाम ज्यादा पढ़े लिखे लोगों से यही कहूँगा कि---
शिक्षा के द्म्भ में ज़्यादा मग़रूर मत होइए आज के समाज को मर्यादा हीन करने में तुम्हारा ही हाथ है। चारो ओर आक्रमण ,प्रकृति को शत्रु बनाने में तुम्हारा हाथ है। जीवन को आक्रांत करने में भी आपका ही हाथ है। हाँ मैं भी इसका हिस्सा हूँ। किन्तु ये खत्म करने के लिए अब उठ खड़ा होना होगा। जी चुराने से नही अब काम चलता।
मत भूलना--- राम,कृष्ण भगतसिंह,चंद्रशेखर आजाद, लक्ष्मी बाई,महाराणा प्रताप का अंश इस देश की मिट्टी में है। इसी मिट्टी का अन्न खाकर बड़े हुए हैं। उनका अंश हमारे भीतर भी व्याप्त है। शीर्ष इस आग को रोकने के लिए कड़े क़दम उठाये अन्यथा भुगतान करने के लिए तैयार रहे।
मेरे देश के युवा जाग्रत हो गए है। निरापराध साधुओं की हत्या जाया नही जाएगी।
जय श्री कृष्ण।
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