Tuesday, April 21, 2020

तेरे अनुबंध

वो ख़्वाब मख़मली जो देखे थे।

सपने अपने हुए क्या तेरे ?

अल्हड़ मस्त जवानी के जो,

वादे किए हुए क्या पूरे ?

कुछ चाहत तो 'पिता' कीए थे।

कुछ ख़्वाहिश 'माँ' के भी दिल की,

कुछ अरमां 'परिजन' रखते थे।

कुछ 'जज़्बे' सामाजिक बोलो!

ऋण चुकता कर दिए क्या तुमने ?

या हैं अनुबंध अधूरे तेरे!

तुम कहाँ खड़े हो?

हो हासिल में या युहीं पड़े हो!

'कल' से तुमने क्या सीखा है?

'आज' तुम्हे 'कल' सिखलायेगा।

क्या खोया क्या पाया तुमने?

या दिग्भ्रमित से ही उलझे हो।

कुछ तो सोचो!

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