वो ख़्वाब मख़मली जो देखे थे।
सपने अपने हुए क्या तेरे ?
अल्हड़ मस्त जवानी के जो,
वादे किए हुए क्या पूरे ?
कुछ चाहत तो 'पिता' कीए थे।
कुछ ख़्वाहिश 'माँ' के भी दिल की,
कुछ अरमां 'परिजन' रखते थे।
कुछ 'जज़्बे' सामाजिक बोलो!
ऋण चुकता कर दिए क्या तुमने ?
या हैं अनुबंध अधूरे तेरे!
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