जैसे करती है वसुधा सुबह से सायं की ओर
मुझे तय करना है सफ़ऱ जिंदगी का तेरी ओर !
जैसे अनवरत साथ रहते हैं चाँद और चकोर
निहारते है एक दूसरे को जब तक कि न हो जाये भोर !
अपनी धुरी पर घूमकर मिलना है मुझे दूर क्षितिज पर
कि बाकी और कुछ दिखे ही नही किसी भी ओर !
रखना है तालमेल बनाकर पंछियों सा हर दम
ऊँची से ऊँची उड़ान भरकर भी भुलाते नही अपना ठोर !
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