Friday, March 20, 2020

खो बैठे

व्यवहारिकता भूल गए सब
सहनशक्ति को खो बैठे !
पर्व और अब उत्सव सारे
अपने मूल रूप को खो बैठे !

होली के हुड़दंग मिटाकर
गीत गोठ सब खो बैठे !
प्यार भरे दिल सूख गए सब
और अपनापन खो बैठे !

भाव मनभरे भूल गए सब
जीवन रस को खो बैठे !
यंत्र बने फ़िरते दिखते सब
मूल चेतना खो बैठे !

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