खाली खाली दिल है मेरा और बड़ी तन्हाई है
यादें बनकर रात अंधेरी अब आंगन में छाई है !
पुरवाई चलने से देखो छुपी कसक भी जाग गई
हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...
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