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माधुरी और दिव्या दर्द से कराह रही थी
गुलाल और रंग से उनके कपड़े और शरीर रंग गए
वो दोनों तो परीक्षा देने जा रहीं थी हाय ये क्या हुआ ?
होली के इस ज़हरीले ग़ुलाल ने उनकी पूरी साल भर की मेहनत पर पानी फेर दिया ।
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होली का ख़ुमार पूरे जोश पर था सब अपनी अपनी मस्ती में झूम रहे थे।
कहीं भांग वाली ठंडाई कहीं गुझियों की मिठास बिखरी हुई थी।
सब अपनी अपनी टोली बनाकर रंग खेलने में व्यस्त थे।
सब के रंग पुते चेहरे एक ही तरह से दिख रहे थे ।
कोई पहचान में नही आ रहा था तभी ....
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हुड़दंग मचाती रोहन की टोली गांव के चौराहे पर आ गई ।
अब चौराहे पर जो भी राहगीर गुजरता रोहन और उसके साथी सभी पर गुलाल और रंग फेंक कर उन्हें रंगीन कर देते।
कोई बचने की कोशिश करता तो उसके सामने आकर नरेश उसे रोक लेता पीछे से दौड़कर राजेश रंग डाल देता, तब तक रोहन भी गुलाल का ढेर उस पर उड़ेल देता ।
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यह कहानी है राजस्थान के सीकर जिले में आने वाले एक छोटे से गांव की जहाँ होली का हुड़दंग महीने भर पहले ही आरंभ हो चुका है और महीने भर बाद तक चलता रहेगा।
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माधुरी और दिव्या का आज एग्जाम है,दोनों अपने पापा के साथ पेपर देने के लिए जा रही थी।
गांव के चौराहे पर जैसे ही होली का हुड़दंग होते दिखा,पापा जी ने बाइक को रोक लिया और थोड़ी देर इंतजार किया,लेकिन जब होली के हुल्लड़ बाजो ने खेलना बन्द नहीं किया तो,बाइक स्टार्ट की और धीरे-धीरे चौराहे को पार करने लगे
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राजेश पहले से इस मौके की तलाश में था बाइक के आगे खड़ा हो गया । ब्रेक लगाते तब तक तो राजेश ने रंग का पूरा ढेर फेंक मारा और रोहन ने माधुरी और दिव्या पर ग़ुलाल उंड़ेल दिया ।
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माधुरी के पापा के हाथ से बाइक छूट गई और फिसल कर गिर पड़ी । जिससे दिव्या और माधुरी भी नीचे गिर गई।
वो चीखते हुए बोले मुझे कुछ दिख नही रहा। बचाओ ! बचाओ ! उठाओ ! कौन है ? कोई है मेरी बेटियों को बचाओ उनका पेपर दिलवा दो।
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चौराहे पर सन्नाटा पसर चुका था।
रोहन, राजेश और उसके साथी भाग खड़े हुए ।
चौराहे पर खड़ी भीड़ में से कुछ लोगों ने घायल हुए माधुरी के पापा और दोनों बेटियों को उठाया और हॉस्पिटल लेकर दौड़े ।
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डॉक्टर ने ऑपरेशन रूम से बाहर आकर नम आंखों से बोला कि मुझे माफ कीजिए अब माधुरी के पापा देख नहीं सकते....
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घायल माधुरी और दिव्या को हॉस्पिटल से मरहम पट्टी करा कर सीधे परीक्षा केंद्र पर ले जाया गया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी पेपर छूट चुका था।
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माधुरी और दिव्या के पापा की आंखें चली गई और दोनों लड़कियों का एग्जाम नहीं हो पाया जहरीले गुलाल ने उनकी पूरी साल भर की मेहनत मिट्टी में मिला दी और पिता की आंखों की रोशनी छीन ली ।
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ज़हरीला कैमिकल युक्त हो गया आज होली का ये रंग
जाने लेकर कर रहा ये हमारी ज़िंदगानी को बेरंग।
बढ़ रहा दिनोदिन हम इंसानों के दिलों में नफरत का ज़हर
जानें लेता हुआ ये रंग मचा रहा मेरे भारत में कहर ।
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कहानी का संदेश यह है कि 👉आने वाले होली के त्योहार के पर्व पर हमें "बुरा न मानो होली है"कहकर किसी की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं करना है।
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यह कहानी हमारी टीम---
" ये रंग चाहतों के " होली के हमजोली प्रतियोगिता के लिए कोरा कागज़ के लिए लिखी थी जिसका श्रेय-----
कैप्टन- दिव्यांशु पाठक
सदस्य- श्वेता मिश्रा जी
- कोमल शर्मा जी
- डॉ सीमा शकुनि जी
- सुधा जोशी जी
- मैजिक वॉइस जी
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