अपने सारे एहसासों को नदिया बनकर बहने दो
जो धड़कन में शोर मचा है अब तो मुझको कहने दो !
उफ़न रहा दिल में एक दरिया मिलने को बेचैन बड़ा
अपने दिल को भी जाना तुम सरिता बनकर बहने दो !
तीरथ तीरथ घुम रहा था मैं तुमसे मिलने को हमदम
हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...
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