Tuesday, April 21, 2020

तेरे अनुबंध

वो ख़्वाब मख़मली जो देखे थे।

सपने अपने हुए क्या तेरे ?

अल्हड़ मस्त जवानी के जो,

वादे किए हुए क्या पूरे ?

कुछ चाहत तो 'पिता' कीए थे।

कुछ ख़्वाहिश 'माँ' के भी दिल की,

कुछ अरमां 'परिजन' रखते थे।

कुछ 'जज़्बे' सामाजिक बोलो!

ऋण चुकता कर दिए क्या तुमने ?

या हैं अनुबंध अधूरे तेरे!

तुम कहाँ खड़े हो?

हो हासिल में या युहीं पड़े हो!

'कल' से तुमने क्या सीखा है?

'आज' तुम्हे 'कल' सिखलायेगा।

क्या खोया क्या पाया तुमने?

या दिग्भ्रमित से ही उलझे हो।

कुछ तो सोचो!

कट्टरता के नशे में धुत्त

अंग्रेजियत के साथ

राजनीतिक अराजकता का

जो वातावरण बना है,

उसने स्वतंत्र भारत के,

सपनों को चूर-चूर कर दिया।

हम बात करते रहे विश्व बंधुत्व की,

बाँटते रहे ज्ञान गीता का।

उन्हें मौका मिला तो,हमारी मर्यादा को

तार-तार कर दिया।

वाह रे लोकशाही,ये कैसा?

लोकतंत्र! कौनसा मानव धर्म?
:
#विज्ञान_का_ताण्डव देख कर अभी लोगों की आँखें नही खुली शायद। इसलिए अभी भी #कट्टरता_के_नशे_में_धुत्त मूर्खों ने विष के बीज बो दिए। तुम्हें वक़्त तो माफ़ नहीं करेगा रही बात धार्मिकता की तो उस सत्ता का विनाश निश्चित हो जाता है जिसमें निर्दोष की हत्या की जाती है। अवध्य की हत्या तो सबसे बड़ा अनर्थ है। ये अनर्थ की आग लगाकर तुम शुकून से जी पाओ संभव नहीं। मैं उन तमाम ज्यादा पढ़े लिखे लोगों से यही कहूँगा कि---
शिक्षा के द्म्भ में ज़्यादा मग़रूर मत होइए आज के समाज को मर्यादा हीन करने में तुम्हारा ही हाथ है। चारो ओर आक्रमण ,प्रकृति को शत्रु बनाने में तुम्हारा हाथ है। जीवन को आक्रांत करने में भी आपका ही हाथ है। हाँ मैं भी इसका हिस्सा हूँ। किन्तु ये खत्म करने के लिए अब उठ खड़ा होना होगा। जी चुराने से नही अब काम चलता।
मत भूलना--- राम,कृष्ण भगतसिंह,चंद्रशेखर आजाद, लक्ष्मी बाई,महाराणा प्रताप का अंश इस देश की मिट्टी में है। इसी मिट्टी का अन्न खाकर बड़े हुए हैं। उनका अंश हमारे भीतर भी व्याप्त है। शीर्ष इस आग को रोकने के लिए कड़े क़दम उठाये अन्यथा भुगतान करने के लिए तैयार रहे।
मेरे देश के युवा जाग्रत हो गए है। निरापराध साधुओं की हत्या जाया नही जाएगी।
जय श्री कृष्ण।
:
#पाठकपुराण के साथ #पंछी ।

पुनर्विचार ( आओ देश गढ़ें )

देश में हिंसात्मक गतिविधियों का बढ़ना चिंताजनक है।
अपराध,भ्रष्टाचार,दुराचार के बीज बढ़कर दरख़्त हो चुके हैं।
आजादी के बाद जिस भारत की कल्पना की थी।
मुझे तो नही लगता वह ऐसा होगा।
संविधान बना,क़ानून भी बने,
किन्तु न संविधान को व्यवहार में उतारा,
न ही क़ानून को।
धर्मनिरपेक्षता बस बयानबाजी तक ही सीमित रही।
जातिवाद, धार्मिक उन्माद, और कट्टरता बढ़ती गई।
हम भले ही कहते फिरते हों कि हम नही मानते जातिवाद,
हम सभी धर्मों का समान सम्मान करते है।
मुझे तो लगता है यह सब बातें स्कूल तक ही सीमित रह गईं।
:
धर्म निरपेक्षता और जातिवाद न मानने वालों की पोल तो इसी बात से खुल जाती है कि ...
देश मे प्रत्येक जाति का या समाज का अपना एक संगठन है।
अब जो लोग अपनी जाति को ही बस समाज मानते हों उनके लिए "जातिवाद" को नकारने की हिम्मत कहाँ से आएगी।
क्या ऐसा नही है--- है तो जाती वाद कैसे ख़त्म करोगे?
:
धर्म निरपेक्षता- विचार अच्छा है किंतु है कहाँ ? सबके अपने अखाड़े अपने संघटन अपने क़ानून। संविधान तो दूर की बात है। साथ में रहने वाले लोग भी आपस में आत्मसात करते नही दिखते।
कैसे साबित करोगे सेक्युलरटी ? नही करोगे तो ये सब चलता रहेगा जैसे पिछले 72 सालों से चलता आ रहा है।
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अधिकारों की तो बात छाती पीट पीट करते है लोग पर जब कर्तव्यों की बात आती है तो आँखे नटेरने लगते है।
कैसे कर पाओगे न्याय?
:
ये तो शुक्र है उन संस्कारों का जो हमारी संस्कृति ने हमें दिये।
और उन भामाशाहों का जो इस बिकट परिस्थिति में देवता बनकर सामने आए अन्यथा अब तक तो निपट लिए होते। बस यह अच्छाई ही हमारे लिए उम्मीद की किरण है। इसी की बदौलत देश को बचाया जा सकता है।
मेरा उन सभी प्रबुद्ध जनों और देवतुल्य आत्माओं से निवेदन है कि राष्ट्र को नई दिशा देने के लिए पुनर्विचार करें और एक बार सम्पूर्ण भारत को भारत वर्ष बनाने में मदद करें।
:
कृष्ण बन कर इस युद्ध में सारथी की भूमिका निभाएं और देश का बंटाधार होने से बचायें। अन्यथा कई तरह के संघर्ष मुहबाएँ खड़े है।
:
#पाठकपुराण  #कट्टरता_के_नशे_में_धुत्त 
#पंछी #पाठक  #हरे_कृष्ण 
#शुभरात्रि ।

Friday, April 17, 2020

ये इश्क़ - 02

#येरंगचाहतोंके  साथ हम बात कर रहे थे #इश्क़ की पिछली कड़ी में आप पढ़ ही चुके है। "इश्क़ की गली विच नो एंट्री"
सुनने के बाद भी आप और जानना चाहते है तो सुनो...
ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़.....
😂😂😂
ये इश्क़ डंक बिछुआ का लगजाये हो रामा तो
ना दवा लगे ना दुआ लगे रोगी सिर पटक पटक मर जाये"
😂😂सावधान रहना ही ठीक है । और इश्क़ में हम तुम्हें क्या बतायें किस क़दर चोट खाये हुए है। भाई बताने लायक रहता ही कहाँ है #इश्क़िया वह तो बस उ ला ला उ ला ला उ ला ला करने लायक ही बच पाता है।😝😝😂😂 इसके अलावा और क्या करे बिचारा...
ये इश्क़ है बड़ी गज्जब की चीज़ क़सम से जब भी किसी को होता है पानी वाला डांस कराके ही छोड़ता है। अच्छा एक बात और इश्क़ में एक पल की भी जुदाई लगती है सौ साल।
तेरी क़सम तेरे सिर की क़सम मेरा होगया बड़ा बुरा हाल। मतलब ये है कि इश्क़ बुद्धि भी खिसका देता है।😝😂😂😂
अब बस इतना ही काफ़ी है ... #1_मई_तक_लॉकडाउन_के_साथ_राजस्थान_सतर्क_है  आप भी हो जाओ और इश्क़ विश्क के चक्कर में मत पड़ो। #पाठकपुराण  का तो युहीं मस्ती करने का मूड रहता है।इसलिए तो ....
"दिल दिवाना कहता है कि प्यार कर"
जाना नही है अपनी छत से ही आँखे चार कर।
गया तो तेरी ही छतरी बन जाएगी।😂😂😝😝🙏🙏💕🍁🍁😂🍁💕🙏😝😝😂😂😂😂🙏💕💕🍁🍁
सलामत रहें दुआ है मेरी...
फिर मिलेंगे...😊👍💐💐💐💐

ये इश्क़ - 01

#येरंगचाहतोंके साथ आज हम बात करते है इश्क़ की ।
ये इश्क़ बड़ा बेदर्दी है रात दिन सताए। बेदर्दी के साथ निगोड़ा भी और तो और कमीना भी है।
अनुभवियों के अनुभव बताते हैं कि यह कभी भी किसी को ख़ुश नही रहने देता। वह सलाह भी देते है -- इश्क़ कभी करियो ना मरगये कितने आशिक़ इसमें तू भी मरियो ना।"
😂😝🍁🙏💕💕💕🙏🍁
इश्क़ का शुरुआती दौर शानदार होता है ---- मासूका से मिलते ही कह देते है---
ना शहद न सीरा न शक्कर--😂😂😝😝
"तेरे इश्क़ से मीठा कुछ भी नही"
धीरे धीरे आगे बढ़ते है और
इश्क़ ख़ुदाई रव ने बनाई, और फिर कुछ दिन ठीक ठाक चलने के बाद--😂😂😝😝😝😂
रब्बा इश्क़ न होबे रब्बा इश्क़ न होबे। ये समझिए कि इश्क़ में कभी स्थिरता नही देखी गई जैसे ही कड़ाई से पेश आये इश्क़वाज बिलबिलाने लगते हैं।😝😝😂😂😂😂🍁🙏💕💕💕🙏😝😂😂😂😂
 इश्क़ हँसाता है इश्क़ रुलाता है  तक पहुँचने में देर नही लगती।😝😂😂
आपको बड़ा मज़ा आ रहा है...
अंत में फिर उनको एक मेरे जैसा सलाह दे देता है....

"इश्क़ की गली विच नो एंट्री"
#शुभसंध्या साथियो आनंद लें इश्क़ से दूर रहें याद रखें #1_मई_तक_लॉकडाउन_के_साथ_राजस्थान_सतर्क_है आप भी हो जाओ।घर पर भी "प्रेम" से रहिये अन्यथा लेने के देने पड़ सकते हैं।
:
आगे का ज्ञान अगली पोस्ट में दिया जाएगा।
बने रहिये #पाठकपुराण के साथ ।
जय श्री कृष्ण 😝😂😂😝🙏💕💕🍁🍁🍁🍫🍹🍹☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕👏👏👏🙏💕💕💕🍁💕💕💕🙏🙏
      

Thursday, April 16, 2020

दिल कहता है

तेरी पायल की रुनझुन में,शब्द हमारे मौन हुए।
घायल होकर तरकश टूटा,तीर हमारे गौंण हुए।
कत्थई आँखों की कटार से,तुम जीते हम हारे!
एकलव्य बन गए हम उस क्षण,
तुम जैसे ऋषिवर द्रोण हुए।

तुम जीते हम हारे

तेरी पायल की रुनझुन में,शब्द हमारे मौन हुए।
घायल होकर तरकश टूटा,तीर हमारे गौंण हुए।
कत्थई आँखों की कटार से,तुम जीते हम हारे!
दिल के दर्पण में देखा तो,भाव प्रेम के प्रौण हुए।
टुकड़े बीन रहा हूँ,घायल हाथों से अपने।
बे-दम ख़्वाब ख़्वाहिशें,पलकों के सपने।
सूख चुकी मन की सतहें,बनती रेगिस्तान!
रोपित नव पौधों का,दिखता नही निशान।

रोपित नव पोधों को तुम,अब तो देदो प्राण।
अँगड़ाई ले मौसम बदलो और लौटाओ जान।
नभ से अमृत बन बरसो तुम,रिमझिम प्रेमभरी।
बंजर में फिर फूल खिलाकर लौटा दो मुस्कान।
#पाठकपुराण के साथ #येरंगचाहतोंके 💕

प्रेमालय में हम दोनों

पलकों में कुछ ख़्वाब सजाकर।
कुछ उम्मीदों के पँख लगाकर।
हम तुम नदी किनारे घूम रहे हैं!
एक दूजे को जान बनाकर।
प्रेमालय में हम दोनों मिलकर,
खुशियों का माथा चूम रहे है।

गुण वाचक ग्राही

एहसासों की सरगम बजती,
फ़िर भी आहें भरते हैं।
कुछ लम्हो में जी लेते हैं,
बस पल भर में मरते है।
छुईमुई सी शर्माती हूँ जब,
छूने की कोशिश करते हैं।
सौंदर्य देखती दुनिया सारी,
शब्द,रूप,रस,गंधो में!
पर हम गुण वाचक ग्राही हैं,
बस बातें दिल की करते हैं।

Sunday, April 5, 2020

मेरा अख़बार

लोकतंत्र के अभियानों की हलचल लेकर आता है।
जन-जन का उन्नायक बनकर मन से जो जुड़ जाता है।
संवाद सेतु का हेतु बनकर जो निर्भीक लिखे हरपल!
विचार क्रांति का वाहक बनकर सत्य हमें दिखलाता है।

अपराध निवारण करने में सहयोग सदा जो करता है।
कठिन घड़ी में प्रहरी बनकर ये सबको अवगत करता है।
सैनिक सा अख़बार मेरा यह चौकस रहता है हरदम!
साधक बनकर यह पाठक का,उत्साह दिलों में भरता है।

परिवर्तन का ज़रिया बनता!नहीं दिखावा करता है।
जीवन के हर पहलू को सामने सबके रखता है।
गाँव-शहर को जोड़ रहा जो शब्दों की पगडण्डी से!
नित नूतन संस्कारों का, यह बीजारोपण करता है।
शब्दों की लहरों में, सच्चाई जिसके बहती है।
होता नही दिखावा कोई,सिर्फ़ हक़ीक़त होती है।

दुनियां को बदला है जिसने,इतिहास गवाही देता है।
संस्कार का दीप जलाकर,जो अंधकार को खोता है।

जाति धर्म का भेद न जाने सबकी बातें सुनता है।
अख़बार मशीहों सा बनकर के,सबकी पीड़ा हरता है।

अद्भुद शक्ति समाहित इसमें ये विचार का वाहक है।
सामाजिकता का पोषक और लोकतंत्र का धावक है।

दुनिया भर की हलचल लिखता लिखता मन की पीड़ा को।
ये ऐसा जन सेवक है जो हर क्षण तत्पर रहता है।
:

भावों की मुट्ठी।

 हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...