Wednesday, December 2, 2020

लोकतंत्र में जन-आन्दोलनों का क्या महत्व है?

'विश्वगुरु' बनने का ख़्वाब देखती
मेरे देश की नई पीढ़ी को दिशा देने के लिए
अभी बड़े सुधार की ज़रूरत है।
हमें उनको बताना होगा कि-
शान्ति, न्याय,और क़ानून स्थापित
करने के लिए हमें पहले उनका
उलंघन करना बंद कर देना चाहिए।
हमें नैतिक मूल्यों की समझ के साथ
बच्चों और महिलाओं को
सुरक्षित रखना होगा।
यह ज़िम्मेदारी सरकार के साथ
आपकी अपनी भी है।
जन-आन्दोलनों को
सकारात्मक और स्वास्थ्य क़दम के रूप में
लोकतंत्र का हिस्सा बनना है विरोधी नहीं। #राजस्थानपत्रिका के द्वारा पूछा गया प्रश्न- लोकतंत्र में जन-आन्दोलनों का क्या महत्व है?
:
मेरी अभिव्यक्ति के रूप में पेश है मेरा ज़बाब----
:
जन-आन्दोलन को देखकर तो ऐसा प्रतीत होता है कि अपने हितों को लेकर देश सज़ग होकर शासन और प्रशासन के सामने अपना मत रखने खड़ा हो गया है।
:
लोकतंत्र में जन-आन्दोलनों का क्या महत्व है?
:
उम्मीदों से भरी सत्ता में जब राजनीतिक-आर्थिक नीतियां किसी वर्ग या जन-साधारण के हितों का हनन करती हैं तो वह वर्ग एकजुट होकर अपना मत रखता है।
जनता के द्वारा जनता के लिए चुनी गई सरकार के निरंकुश होकर निर्णय लेने पर अंकुश लगाने के लिए भी लोकतंत्र में जन-आन्दोलनों का बड़ा महत्व है।
पिछले दो दशकों में देश ने कई बड़े जन-आंदोलन देखे और कई बेहतरीन और आवश्यक बदलाब भी हुए।इनका सीधा लाभ देश की अवाम को भी मिला।

हमने भूख, बेरोजगारी,अशिक्षा, भ्रष्टाचार के साथ लड़ते हुए निरंतर विकास का रास्ता चुना।दुर्भाग्य से जन-आन्दोलनों के स्वरूप भी बदलते देखे।इस बदलाब ने देश की अवाम को आपस में बाँटने का काम किया।आन्दोलन महज़ उपद्रव बनकर रह गए।देश को बड़ी 'जन-धन' की हानि भी उठानी पड़ी।बेशक़ आन्दोलन के नाम पर समाज को लाभ हुआ पर कहीं न कहीं राजनीतिक-आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से मानवाधिकार और लोकतंत्र का दुरुपयोग भी।

जन-आन्दोलनों को मैं अवाम के विकास के लिए किए गए प्रयासों में सकारात्मक और स्वास्थ्य क़दम मानता हूँ।लेकिन इसके नाम पर जो स्वेच्छाचार होता है वह ठीक नहीं।

'विश्वगुरु' बनने का ख़्वाब देखती मेरे देश की नई पीढ़ी को दिशा देने के लिए अभी बड़े सुधार की ज़रूरत है।हमें उनको बताना होगा कि- शान्ति, न्याय,और क़ानून स्थापित करने के लिए हमें उनका उलंघन करना बंद करना होगा।नैतिक मूल्यों की समझ के साथ बच्चों और महिलाओं को सुरक्षित रखना होगा।
:
आपको मेरा ज़बाब कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया देकर बतायें बहुत बहुत स्वागत है।
#पाठकपुराण की ओर से #सुप्रभातम #yqdidi #yqhindi #yqbaba 

Sunday, November 29, 2020

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 12

जब तक प्रतिहारों में साहसी-पराक्रमी शासक उत्पन्न होते रहे उनका राज्य विस्तार भी हुआ।शुरुआती दौर में मण्डोर के प्रतिहार- नागभट्ट,शिलुक,बाउक शक्तिशाली रहे।उज्जैन और कन्नौज के प्रतिहारों में भी कई प्रतिभासंपन्न योद्धा हुए।समूचे राजस्थान पर अधिकार कर उन्होंने- गुहिल,राठौड़,चौहान तथा भाटियों को सामन्त बनाकर राज्य किया।जैसे ही इनकी केंद्रीय शक्ति कमज़ोर हुई तो सामन्तों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए।जिस राजस्थान की मिट्टी में उनका उदय हुआ,उसी राजस्थान को वे हमेशा के लिए अपना न रख सके। :
डॉ गोपीनाथ शर्मा लिखते हैं कि -
जोधपुर के शिलालेखों से यह प्रमाणित होता है कि प्रतिहारों का अधिवासन मारवाड़ में लगभग छठी शताब्दी के द्वित्तीय चरण में हो चुका था।उस युग में राजस्थान के पश्चिमी भाग को "गुर्जरत्रा" कहते थे इसलिए प्रतिहारों को "गुर्जर-प्रतिहार" या गूजर सम्बोधन मिला। विद्वानों के अनुसार इनकी राजधानी जो कि कर्नल टॉड के अनुसार 'पीलोभोलो' लिखा है वो आधुनिक भीनमाल या बाड़मेर हो सकता है।
:
यूँ तो भगवान लाल इन्द्रजी ने इनको कुषाणों के समय बाहर से आए विदेशी माना है।बम्बई-गजेटियर ने भी इनको विदेशी माना है।डॉ भण्डारकर भी इनको एक जाति-विशेष के रूप में मानते हैं।
:
डॉ ओझा इनको विदेशी नहीं मानते और प्रतिहारों का शासन 'गुर्जरत्रा' क्षेत्र में होने से इनको गुर्जर-प्रतिहार कहा है।
:
मुहणोत नैणसी ने प्रतिहारों की 26 शाखाओं का उल्लेख किया और लिखा है कि राजस्थान ही नहीं अपितु गुजरात,काठियावाड़,मध्यभारत एवं बिहार के भी बहुत से क्षेत्र इनके अधीन रहे।
:
ग्वालियर के अभिलेख में प्रतिहारों को क्षत्रिय और सौमित्र यानी लक्ष्मण के वंशज और कवि राजशेखर ने भी प्रतिहार नरेश महेन्द्रपाल को 'रघुकुल-तिलक' कहा है।
:
प्रतिहारों की 26 शाखाओं में से एक मण्डोर के सबसे प्राचीन और प्रमुख हैं।इनके बारे में हमें जोधपुर शिलालेख जो कि 836 ई. में प्राप्त हुआ मिलती है।इसी तरह घटियाले से भी दो शिलालेख प्राप्त हुए जो कि 837 ई. और 861 ई. के हैं।इन शिलालेखों के अनुसार-
:
प्रतिहारों के गुरु जो कि हरिश्चंद्र के नाम से जाने जाते हैं उनकी दो पत्नियाँ थी एक क्षत्राणी दूसरी ब्राह्मणी।ब्राह्मणी से उत्पन्न पुत्र ब्राह्मण-प्रतिहार कहलाये और क्षत्राणी पत्नी भद्रा से उत्पन्न क्षत्रिय-प्रतिहार हुए।भद्रा से चार पुत्र हुए-
भोग-भट्ट,कदक,रज्जिल और दह।चारो भाइयों ने बड़े होकर मांडव्यपुर ( मण्डोर ) को जीत लिया और उसकी सुरक्षा के लिए प्राचीरों का निर्माण कराया।
:
ओझा के अनुसार हरिश्चंद्र का समय छठी शताब्दी के आसपास का होना चाहिए।उसके वंशजों में नागभट्ट प्रथम जो रज्जिल का पोता था बड़ा पराक्रमी हुआ।उसने अपने राज्य का विस्तार कर मण्डोर से 60 मील दूर मेड़ता को अपनी राजधानी बनाया।नागभट्ट के उत्तराधिकारियों के बारे में तो जानकारी नहीं है किन्तु उसकी दशवीं पीढ़ी में "शीलुक" हुआ जिसने वल्ल मण्डल के भाटी राजा देवराज को हराकर अपना राज्य बढ़ाया।शीलुक कई भाषाओं का जानकार और कवि था।उसकी दो पत्नियाँ थीं भाटी रानी से 'बाउक' और दूसरी रानी से 'कक्कुक' पैदा हुए।इसी बाउक ने 837 ई.में प्रशस्ति उत्कीर्ण करवा कर अपने वंश की जानकारी दी थी।इसके बाद कक्कुक ने भी कई शिलालेखों को बनवाया और एक अच्छे राजा के रूप में पहचान पाई।
:
प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है कि बारहवीं सदी के मध्य मण्डोर के आसपास चौहानों का अधिकार हो गया था परन्तु किले पर प्रतिहारों की इंदा नामक शाखा का अधिकार रहा।अन्य प्रतिहार वंशियों ने शायद चौहानो के सामन्त बनकर शासन किया हो।1395 ई. में इन्दा प्रतिहारों ने अपने राजा हम्मीर से  परेशान होकर 'राठौड़' वीरम के पुत्र चूंडा को मण्डोर दहेज में दे दिया और इस प्रकार प्रतिहारों का प्रभाव समाप्त होकर धीरे धीरे सम्पूर्ण मारवाड़ राठौड़ों का हो गया।
:
🌹🙏
क्रमशः---12
आज के लिए इतना ही काफ़ी है फिर मिलेंगे #पाठकपुराण के साथ #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1  2 लेकर तब तक आप इसका आनंद लीजिये। बहुत बहुत स्वागतम।
#yqdidi #yqhindi #yqbaba 

Thursday, November 19, 2020

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 11

"जैत्रसिंह"
मेवाड़ के शौर्य का एक और पन्ना।
(1213 - 1252 ई.)
मेवाड़ की गद्दी पर जैत्रसिंह के बैठते ही जालौर में चौहान राज्य के संस्थापक कीर्तिपाल से गुहिल राजा सामन्तसिंह की पराजय का बदला लेने के लिए अपने समकालीन नाडौल के चौहान राजा उदयसिंह पर आक्रमण कर दिया।उदयसिंह ने अपने राज्य को बचाने के लिए अपनी पौत्री रुपादेवी का विवाह जैत्रसिंह के पुत्र तेजसिंह के साथ कर मेवाड़ और नाडौल में मैत्री स्थापित की।जैत्रसिंह ने मालवा के परमार राजा देवपाल को हराकर अपना अधिकार जमाया और गुजरात के सोलंकियों का मैत्री प्रस्ताव ठुकरा दिया।इधर दिल्ली में तुर्कों की जड़ें मज़बूत हो गईं तो "इल्तुतमिश" ने मेवाड़ को अधिकार में लेने के लिए आक्रमण कर दिया। जब अजमेर के चौहानों की शक्ति का पतन हो गया तो राजस्थान के विस्तृत भू-भाग पर तुर्को ने लूट ख़सूट शुरू कर दी थी।मेवाड़ अभी भी मोहम्मद गौरी और कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमणों से बचा हुआ था।
1222 से 1229 ई. के मध्य 'इल्तुतमिश' ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया।जय सिंह सूरि ने अपने "हम्मीरमदमर्दन" में लिखा है कि मुस्लिम सेना मेवाड़ की राजधानी 'नागदा' तक पहुँच गई। उसने आसपास के कस्बों,गाँवों को बर्बाद कर दिया और कई भवनों को नष्ट कर सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी गई।
:
जब युद्ध के मैदान में जैत्रसिंह ने सीधे न कूदकर छापामार युद्ध नीति का उपयोग किया तो इल्तुतमिश की सेना के पैर उखड़ गए और मुसलमान पदाक्रांता भाग खड़े हुए लेकिन उससे पहले वे नागदा को नष्ट कर चुके थे। इसकी पुष्टि चीरवा के शिलालेख से होती है।
:
डॉ दशरथ शर्मा कहते हैं कि - जैत्रसिंह ने तुर्कों को पीछे खदेड़ दिया परन्तु मेवाड़ की राजधानी नागदा को बड़ी हानि उठानी पड़ी।
:
नागदा के नष्ट हो जाने के बाद ही गुहिलों ने चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया और फिर आने वाली कई सदियों तक उसे यह गौरव प्राप्त हुआ।
:
इल्तुतमिश के इस अभियान ने दिल्ली के लिए भावी विजय-योजनाओं के मार्ग खोल दिये थे।
:
आबू शिलालेख से पता चलता है कि जैत्रसिंह के साथ सिंध के शासक "नसीरुद्दीन कुबाचा" से भी युद्ध हुआ जो मोहम्मद गौरी का एक प्रनुख ग़ुलाम और सेनानायक रहा।उसके सेना नायक खवास खां को गुजरात अभियान के दौरान खदेड़ दिया।
:
दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन ने अपने भाई जलालुद्दीन को कन्नौज से दिल्ली बुलाया।जलालुद्दीन को लगा कि उसकी हत्या की जा सकती है तो वह अपने साथियों सहित चित्तोड़ के आसपास की पहाड़ियों में छुप गया।सुल्तान ने उनको ढूंढने के लिये बहुत प्रयास किये किन्तु आठ महीने की खोजबीन के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगा फ़रिश्ते ने इस समय को 1248 ई. के आसपास का बताया है। तारीख़े नासिरी का लेखक मिनहाज लिखता है कि जब उलूग ख़ाँ ( बलबन )को सुल्तान ने नाइब पद से हटाकर नागौर का इक्ता बना दिया तो उसने रणथम्भौर, बूंदी तथा चित्तौड़ तक लूटमार कर धनार्जन किया।राजस्थान के शिलालेख भी इस की पुष्टि करते हैं कि राजपूतों के कड़े प्रतिरोध के कारण बलबन को विशेष सफलता नहीं मिली।
:
डॉ ओझा कहते हैं कि- 
दिल्ली के ग़ुलाम सुल्तानों के समय में मेवाड़ के राजाओं में सबसे प्रतापी और बलवान राजा जैत्रसिंह हुआ जिसकी वीरता की प्रशंसा उसके विरोधियों ने भी की है।
:
जैत्रसिंह ने ही चित्तौड़ किले की मज़बूत प्राचीरों का निर्माण कराया।विद्वान और कलाकारों को आश्रय देकर मेवाड़ की ख्याति को बढ़ाया। 1253 ई. में जैत्रसिंह की मृत्यु हो गई और उनका उत्तराधिकारी तेजसिंह बना।तेजसिंह के समय का अंतिम शिलालेख वि. स. - 1324 ( 1267 ई. ) का मिला और उसके उत्तराधिकारी समरसिंह का प्रथम शिलालेख वि. स. - 1330 ( 1273 ई. ) का है। तेज सिंह ने 1267 से 1273 ई. के मध्य राज्य किया।
:
तेजसिंह ने वीरधवल जो कि 1243 ई. के आसपास त्रिभुवनपाल से गुजरात का राज्य छीनकर मेवाड़ की ओर बढ़ना चाहता था पर जैत्रसिंह ने उसके साथ मैत्री करने से इनक़ार कर दिया था से सामना हुआ गुजरात की सेना भाग खड़ी हुई इस युद्ध में मेवाड़ की जनधन हानि उठानी पड़ी। बलबन ने भी 1253 - 1254  ई. में हमला किया था किंतु उसे पराजय का सामना करना पड़ा और फिर कभी लौट कर नहीं आया।जैत्रसिंह की तरह तेजसिंह भी प्रतापी था।
:
तेज सिंह की मृत्यु कैसे हुई ये तो पता नहीं पर कुम्भलगढ़ प्रशस्ति,आबू शिलालेख,चीरवे के साहित्यिक कृतियों के आधार पर उसका उत्तराधिकारी माना जाता है वह भी अपने पिता और पितामह की तरह शक्तिशाली और वीर था। उसने 1299 ई. के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दो सेनानायकों उलूग ख़ाँ और नुसरत ख़ाँ ने बनास नदी को पार कर मडोसा के किले पर अधिकार कर लिया था।उस समय उलूग ख़ाँ सिंध से जैसलमेर के रास्ते चित्तौड़ आया था।"कान्हड़देव प्रबन्ध" इस घटना के प्रमाण देती है।जैन ग्रंथ तीर्थकल्प और रणकपुर मन्दिर शिलालेख यह बताते हैं कि गुहिल नरेश समरसिंह ने अलाउद्दीन को हराकर चित्तौड़ की रक्षा की। और मुस्लिम सेना नायकों से दण्ड लेकर उन्हें आगे जाने दिया।
:
चीरवे के लेख में समरसिंह को शत्रुओं का संहार करने में सिंह के समान अत्यंत शुर बताया है।
:
समरसिंह के समय पद्मसिंह,केलसिंह,कल्हण,कर्मसिंह जैसे शिल्पकारों के साथ ही रत्नप्रभ सूरि,पार्श्वचन्द्र,भाव शंकर,वेद शर्मा,शुभचन्द्र जैसे विद्वान मौजूद रहे।
:
🌹
आगे राजस्थान के इतिहास में क्या हुआ ये आपको अगली पोस्ट में बतायेंगे आज के लिए इतना ही काफी है।बने रहिये 🌹🌻🙏😊 #पाठकपुराण के साथ #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1  1 और पढ़ते रहिए अपने गौरवशाली अतीत के पन्नों को।
#yqdidi #yqbaba #yqhindi #गुलिस्ताँ #येरंगचाहतोंके साथ जय श्री कृष्ण।🌻🙏😊🌹🌼 सुप्रभातम।
Picture_credit:- #pinterest 

Thursday, November 12, 2020

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ-10

"बप्पा के बाद" 
भोज ने मेवाड़ में शान्ति बनाए रखी,महेंद्र की हत्या कर भीलों ने उनकी ज़मीन छीन ली।नाग केवल नागदा के आसपास अपना अधिकार बनाये रखा।शिलादित्य अधिक योग्य निकला उसने भीलों को हराकर अपनी भूमि बापस ली।अपराजित ने शिलादित्य का साथ दिया और गुहिलों का वर्चस्व बढाया।कालभोज के बारे में जानकारी नहीं ऐसा माना जाता है कि यशोवर्मन के सैन्य अभियानों में मदद की थी।खुम्मान को मुस्लिम आक्रमणकारियों को खदेड़ा किन्तु वे कौन थे ये विवादास्पद है।मत्तट से महायक तक का समय राष्ट्रकूटों,प्रतिहारों के साथ उलझने में गया और वे सामन्त बन कर रहे। 877 ई. से 926 ई. के बीच खुम्मान तृतीय ने गुहिल राजवंश को पुनः प्रतिष्ठित किया।भरतभट्ट ने इसे बनाये रखा।अल्लट ने देवपाल परमार को हराकर गुहिलों की सैन्य शक्ति को बढ़ाया।नरवाहन ने भी मेवाड़ को सुदृढ़ किया।
:
शक्तिकुमार के शासनकाल में परमार नरेश मुंज ने चित्तोड़ के दुर्ग और आसपास के क्षेत्र को जीत लिया।
:
परमारों को चालुक्यों ने हराकर चित्तोड़ पर अधिकार किया।अम्बाप्रसाद को चौहानों का सामने करते समय वाक्पतिराज से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त हुई।उसके बाद गुहिलों में कोई ऐसा शासक नहीं हुआ जो उनकी प्रतिष्ठा को बापस लाता।वैरि सिंह और उसके उत्तराधिकारी विजय सिंह ने जरूर आहड़ क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाए रखा।
:
1171 ई. में सामन्त सिंह गद्दी पर बैठ जिसने 1174 ई. में चालुक्य नरेश अजयपाल को हराकर मेवाड़ को ख्याति दिलाई।कुछ बरसों बाद ही उसे जालौर के चौहान कीर्तिपाल ( कीतू ) के हाथों पराजित होकर भागना पड़ा।
:
सामन्त सिंह के छोटे भाई कुमर सिंह ने चालुक्यों और सिसोदिया सरदार भुवनपाल की सहायता से कीर्तिपाल को हराकर चित्तोड़ जीत लिया।कुमरपाल सिंह के बाद पद्म सिंह और उसके बाद जैत्र सिंह गद्दी पर बैठा।
🌹🌹🗡🗡
1213 ई. से 1252 ई. तक कि बात करेंगे अगली पोस्ट पर बहुत बहुत स्वागतम आपका बने रहिये....
#पाठकपुराण के साथ #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1 पढ़ते रहिए। #yqdidi #yqbaba #yqhindi #divyansupathak 
सुप्रभातम साथियो आपका दिन शुभ हो।🌹🗡🗡🌹

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 09

"बप्पा-रावल" ( क्रमशः-02 )

जब उस युवा लड़को को नागदा का सामन्त बना दिया गया तो वहाँ के जो पुराने सामन्त थे विद्रोह करने लगे उसी दौरान किसी विदेशी आक्रमण की सूचना मिली अन्य सामन्त इस अवसर का फ़ायदा उठाना चाहते थे नव सीखिए सामन्त को सेनापति बनाकर युद्ध में भेज दिया।मैदान में जाकर नए जोश के साथ सेनापति ने आक्रमणकारियों को खदेड़ दिया और विजय प्राप्त की साथ ही उन विरोधी सामन्तों को भी समझाया तब किसी ने उनको सम्बोधित किया भई- ये है सबका बाप और वही बाप आगे चलकर 'बप्पा' हो गया। ऐसा सुना गया है कि मोहम्मद-बिन-क़ासिम की फ़ौज लेकर यज़ीद ने सिंध प्रदेश को जीत लिया और अपने क्षेत्र को विस्तार देने के लिए उसने चित्तोड़ पर आक्रमण कर दिया तब चित्तोड़ की रक्षा करने के लिए बप्पा ने उनसे युद्ध किया और जब मुस्लिम सेना भाग खड़ी हुई तो उनका पीछा करते करते अफगानिस्तान के ग़जनी शहर में जाकर अपना झण्डा गाढ़ दिया। तो वहाँ के शासक ने अपनी बेटी का ब्याह बप्पा के साथ कर दिया।इसी विजय के क्रम को आगे बढ़ाते हुए बप्पा ने ईरान,इराक़, तुर्क जैसे कई राज्य जीते और अनेक विवाह किए।कहते हैं कि बप्पा की मुस्लिम पत्नियों से 32 पुत्र हुए जिन्हें इतिहास में "नौशेरा पठान" कहा जाता है।बप्पा की हिन्दू पत्नियों से 98 सन्तान हुई। बप्पा ने अपने समय में टॉड के अनुसार-अजमेर,कोटा,सौराष्ट्र,गुजरात के अतिरिक्त हूण सरदार और जांगल प्रदेश के राजाओं को एकत्रित कर विदेशी आक्रमणकारियों को धूल चटा दी थी।
:
इन बातों में कितनी सच्चाई है ये तो शोध का विषय है किन्तु बप्पा रावल की वीरता और पराक्रम को भी राजस्थान के इतिहास में सदैव याद किया जाएगा।
:
कर्नल टॉड का गणित कहता है कि- वल्लभीपुर के पतन के 190 साल बाद बप्पा का जन्म हुआ। वल्लभी संवत विक्रमी संवत के 375 वर्ष पीछे चला इसलिए- 205+ 375 = 580 वि.स. अथवा 524 ई. में वल्लभी का पतन हुआ।यदि 190 साल बाद बप्पा का जन्म हुआ तो - 580+190=770 वि.स.का अनुमान है। इस समय चित्तोड़ का राजा मान-मोरी मौजूद था।डॉ गोपीनाथ कहते हैं कि वल्लभी का विनाश वि.स.- 826 ( 769 ई. ) में हुआ।इसमें अगर 190 जोड़ें तो समय बहुत आगे निकल जाता है जो ठीक नहीं।श्यामलदास के अनुसार बप्पक ने 734ई.में चित्तोड़ का किला जीता इसलिए उसका समय आठवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध मानना अधिक ठीक रहेगा।भण्डारकर भी इसी समय को ठीक मानते हैं।ओझा जी बापा की विजय 713 ई. के बाद सन्यास का समय 753ई. मानते हैं।जबकि डॉ गोपीनाथ शर्मा 727 ई. और 753 ई.को निर्मूल मानते हैं।उन्होंने सातवीं शताब्दी के तृतीय चरण के आसपास का समय ही उचित माना है।
:
एक जनश्रुति के अनुसार- बप्पा ने चित्तोड़ के मौर्यवंशी राजा मान-मोरी को परास्त कर मेवाड़ क्षेत्र में एक स्वतंत्र राजवंश की नींव रखी जो "गुहिल" के नाम से विख्यात हुआ।
:
बप्पा सौ साल तक जीवित रहे और नागदा में ही उनका देहान्त हुआ आज भी उनकी समाधि बप्पा-रावल के नाम से प्रसिद्ध है।
:
बप्पा के उत्तराधिकारीयों के बारे में विशेष जानकारी नहीं मिलती कुछ नाम जो शर्मा जी ने दिए उनमें- भोज,महेंद्र,नाग,शिलादित्य,अपराजित,कालभोज,खुमान प्रथम,मत्तट,भरतभट्ट,सिंह,खुमान द्वितीय, महायक,खुमान तृतीय, भरतभट्ट द्वितीय, अल्लट, नरवाहन,शक्तिकुमार, अम्बाप्रसाद,उसके बाद 10 शासक ऐसे हुए जिनकी कोई जानकारी नहीं है।
:
आज के लिए इतना ही आगे आपको बताऐंगे कि बप्पा के वंशजों ने क्या किया।
🏵🗡🗡
अजमेर से प्राप्त सिक्के पर यज्ञ वेदी पर शिवलिंग के सामने बैठा नंदी और दण्डवत करते इंसान के साथ खड़ी गाय सिक्के के दूसरे पहलू में सूर्य और कुछ ऐसा ही साबित करता है कि बप्पा शिवभक्त थे और गौ-ब्राह्मण की सेवा सुरक्षा करने के लिए कृत संकल्प भी।
:
#पाठकपुराण के साथ बने रहिए और #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1 लेते रहिये #yqdidi #yqbaba #yqhindi #divyansupathak 

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 08

"बापा-रावल"
ईडर के राजा नागादित्य की भीलों ने हत्या कर राज्य छीन लिया तो उनकी पत्नी अपने तीन साल के बच्चे को किसी भी तरह बचाकर बड़नगरा में रहने वाले उनके कुल पुरोहित नागर ब्राह्मण जिन्होंने गुहदत्त की रक्षा की थी के वंशज "वंशधर" जी के पास ले गई।जब ब्राह्मणों को भीलों से खतरा हुआ तो वे बच्चे को लेकर भाण्डेर दुर्ग के जंगल में "नागदा" के समीप 'पराशर' नामक स्थान पर लेजाकर निवास करने लगे।इसी जंगल में गाय चराने वाले एक ग्वाले को 'बप्पा' के रूप में जाना गया। एक मज़ेदार बात ये है कि अभी तक कोई इतिहासकार ये पता नहीं लगा पाया है कि "बप्पा" किसी राजा का नाम था या 'उपाधि' और अगर यह उपाधि थी तो किसकी?
:
कनर्ल टॉड उसे 'शील' कहते हैं।श्यामलदास जी उन्हें शील का पोता 'महेंद्र' बताते हैं।डॉ. डी. आर.भण्डारकर उनको 'खुम्माँण' श्री ओझा जी ने उनको 'कालभोज' लिखा है।
:
नाम कुछ भी रहा हो लेकिन 'बप्पा'- मेवाड़ के इतिहास का एक शानदार पृष्ठ है।जन श्रुतियों के आधार पर आपको उनसे मिलवाते है-----
:
वंशधर रोज की तरह अपनी गायों का दूध निकाल रहे थे।कपिला गाय के नीचे बैठे तो उसके थनों में दूध ही नहीं था।उनको लगा बछड़े ने पी लिया होगा कोई बात नहीं लेकिन जब यह घटना रोज घटने लगी तो उनको आश्चर्य हुआ और अपने बेटे को बुलाकर कहा कि गाय को कहाँ दुहा लाते हो कई दिन से यह दूध नहीं दे रही अगले दिन गाय चराने जाओ तो ध्यान रखना।
:
जब अगले दिन ग्वाला अपनी सारी गायों को पराशर के जंगल में ले गया जब शाम का वक़्त हुआ तो उसने देखा कि कपिला झुण्ड से अलग होकर पहाड़ी की दूसरी तरफ़ जा रही है।वह भी पीछे पीछे चल दिए।गाय एक गुफ़ा में पहुँची और वहाँ स्थित शिवलिंग पर अपने दूध की धार छोड़ने लगी।शिवलिंग के सामने 'हारीत' ऋषि तपस्या कर रहे थे उनको भी दुग्ध प्रदान किया।ग्वाले बालक को न क्रोध आया न गाय को कभी रोका जब 'हारीत' की तपस्या पूर्ण हुई तो सामने एक लड़के को देखा और जब उनको पता चला कि इस लड़के के गुण तो राजा बनने लायक हैं तो उसे मेवाड़ का राजा बनने का आशीर्वाद दिया।नैणसी ने लिखा है कि - 'हारीत' ऋषि ने उस लड़के को 15 करोड़ रुपये के मूल्य की स्वर्ण मुद्राएं दी और सेना बना कर मोरियों से राज्य लेने के लिए कहा। उस ग्वाले ने ऐसा ही किया और चित्तोड़ का राजा बन गया।
🌸🌹🗡🗡
:
एक जनश्रुति है कि -  नागदा के सोलंकी राजा की कन्या अपनी सखियों के साथ 'पराशर' जंगल में खेलने गईं थी।उनको झूला झूलना था किन्तु रस्सी उनके पास नहीं थी जब वह इधर उधर रस्सी ढूंढ रही थी तो गाय चराता एक लड़का दिखाई दिया।राकुमारी ने उससे कहा कि म्हारे लिए रस्सी ला दे छोरे झूला झुलणो है।ग्वाले ने कहा ठीक है ला दूँगा पर तन्ने म्हारे संग ब्याह रचानो पड़ैगो।बचपन की अठखेलियों में जब वह रस्सी ले आये तो उनके साथ खेलने लगे।राजकुमारी की सहेलियों ने दोनों की गाँठ बांध दी और आम के पेड़ के चारो ओर घूम कर सात फेरे करवा दिए।सखियों ने मंगल गीत भी गाए।शाम को थककर सभी बच्चे घर चले गये और इस घटना को भूल गए कुछ बरसों बाद जब राजकुमारी बड़ी हुई तो शादी के लिए कुण्डली और हस्त रेखा दिखाई गई।राजा के राजपुरोहित ने राजकुमारी का हाथ देखा तो दंग रह गया और बोला कि इस कन्या का विवाह हो चुका है अब नहीं होगा।यह सुनकर राजा के पैरों तले ज़मीन न रही।पता लगवाया गया तो बात खुल गई।राजा अपमान न करे इसलिए ग्वाला भाग कर पहाड़ों में छुप गया।लेकिन राजा ने उनको दहेज में आधा नागदा देकर सामन्त बना दिया।
:
हालांकि यह बातें कल्पनिक लगती हैं किन्तु कहीं न कहीं ग्वाले के 'बप्पा' बनने का रहस्य भी इनमें ही छुपा है।
:
आज के लिए इतना ही काफ़ी है अगली पोस्ट में हम आपको 'बप्पा' की वीरता के किस्से सुनाएंगे.........
🌹🗡🗡
बप्पा रावल के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने गज़नी पर भगवा ध्वज फहराया।
🌹🗡🗡
जय भारत जय राजस्थान।
#पाठकपुराण के साथ पढ़ते रहिये #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1  और आनंद लीजिये हमारे गौरव और शान का। महसूस करिये....
#yqdidi #yqbaba #yqhindi 
Picture credit- #pintrest 

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 07

💠 'अतीत के पन्ने' 💠
राजस्थान के गौरवशाली अतीत का श्रेय गुहिल वंश को जाता है।इन्हें गुहिलोत,गोमिल,गोहित्य,गोहिल के रूप में भी पुकारा गया है।गुहिल जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय माने गए।उनकी पहचान को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं किन्तु महाराणा कुम्भा ने ढेर सारी छान-बीन के बाद अपने वंश के लिए स्पष्ट रूप से ब्राह्मण वंशीय होना अंकित करवाया था।बारहवीं शताब्दी के पहले किसी भी लेखक,कवि,या साहित्यकार ने उन्हें सूर्यवंशी नहीं लिखा।सूर्यवंशी लिखने की परिपाटी "चित्तोड़" के 1278 ई. के लेख के आसपास अपनाई हुई लगती है।
💠💠💠💠💠💠💠💠
कैप्शन--🗡
💠💠💠💠💠💠💠💠 टॉड ने विवरण दिया कि- 524 ई.में वल्लभी का राजा शिलादित्य विदेशी आक्रमणकारियों से युद्ध करते समय परिवार सहित मारा गया उस दौरान उनकी गर्भवती धर्मपत्नी पुष्पावती 'अम्बाभवानी' तीर्थ पर गई थी जो बच गई और गुहदत्त (गोह) को जन्म दिया।
:
गुहिल को जन्म देने के बाद रानी पुष्पावती अपने पुत्र "विजयादित्य" ब्राह्मण को देकर स्वयं 'सती' हो गई।
गुहिल ने युवा होते ही ईडर के भील राजा को मारकर उसका राज्य लिया।गुहिलों की सत्ता का प्रारंभिक केंद्र "नागदा" था जो कालांतर में 'चित्तौड़' हो गया।
:
डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है कि- 1869 ई.में 'आगरा' के पास 2 हजार चाँदी और 9 ताँबे के सिक्के मिले जो यह प्रमाणित करते हैं कि गुहिलों का एक बड़ा और स्वतंत्र राज्य था।यह सिक्के रोशन लाल सांभर के संग्रह में रखे हुए हैं।डॉ. ओझा गुहिलों के समय को 566 ई.के आसपास का मानते हैं।
:
गुहिलों के उत्तराधिकारियों के बारे में सटीक तो अभी तक पता नहीं चला पर कुछ साक्ष्य बताते हैं कि- शील,अपराजित,भर्त्तभट्ट,अल्लट, नरवाहन, शक्तिकुमार,विजयसिंह,और नागादित्य आदि उनके उत्तराधिकारी थे।
:
कर्नल टॉड ही लिखता है कि- गुहिलों की आठवीं पीढ़ी में नागादित्य हुआ जिसे भीलों ने मारकर अपना ईडर राज्य बापस ले लिया किन्तु आगे चलकर नागादित्य का पुत्र "बाप्पा" एक शानदार योद्धा निकला जिसे इतिहास- बप्पा,बप्पक,बाप्प,बापा-रावल के नाम से पहचानता है।
:
"बापा रावल" के बारे में आगे लिखेंगे आज के लिए इतना ही काफी है बने रहिये #पाठकपुराण के साथ #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1 देखिए पढ़िए आप सभी का स्वागत है।
#सुप्रभातम #yqdidi #yqbaba #yqhindi  

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 06

'राजपूत' ( अतीत के झरोखे से-02 )

अग्नि-पुराण के अनुसार- चन्द्रवंशी कृष्ण और अर्जुन तथा सूर्यवंशी राम और लव-कुश के वंशज राजपूत थे।स्वयं 'राजपूत' भी इस कथन को सहर्ष स्वीकार करते हैं।इसी आधार पर श्री गहलोत ने भी लिखा है कि- "वर्तमान राजपूतों के राजवंश वैदिक और पौराणिक काल के सूर्य व चन्द्रवंशी क्षत्रियों की सन्तान हैं।ये न तो विदेशी हैं और न ही अनार्यों के वंशज।जैसा कि कुछ यूरोपीयन लेखकों ने अनुमान लगाया।डॉ दशरथ शर्मा भी लिखते हैं कि राजपूत सूर्य और चन्द्रवंशी थे। दशवीं शताब्दी में चरणों के साहित्य और इतिहास लेखन में राजपूतों को सूर्यवंशी व चन्द्रवंशी बताया है।
1274 ई. का शिलालेख जो चित्तौड़गढ़,
1285 ई. का शिलालेख जो अंकलेश्वर से प्राप्त हुए विशेष महत्व के हैं।
इससे पहले तेजपाल मन्दिर से प्राप्त-
1230 ई. के शिलालेख में राजा धूम्रपाल को सूर्यवंशी लिखा है।
सीकर जिले में हर्षनाथ मन्दिर से प्राप्त शिलालेख में 'चौहानों' को सूर्यवंशी लिखा है।
महर्षि वेदव्यास ने भी सूर्य-पुत्र वैवस्वतमनु से लेकर रामचंद्र तक सत्तावन राजाओं के नाम का उल्लेख किया है।
🙏🌸🌷💐💐🙏🌸
:
एक मत यह भी है कि भारत की अधिकांश जातियाँ बाहर से आईं और फिर यहीं की होकर रह गईं। इसी के आधार पर कुछ भारतीय और कुछ विदेशी विद्वानों ने 'राजपूतों' को विदेशी मान लिया है।
कर्नल टॉड ने लिखा है कि - "राजपूत शक अथवा सिथियन जाति के वंशज हैं।"
टॉड तर्क देते हैं कि विश्व के सभी धर्म मध्य एशिया से उदय हुए और प्रथम पुरुष को किसी ने 'सुमेरु',किसी ने बेकस और किसी ने मनु कहा।
"इन बातों से सिद्ध होता है कि विश्व के सभी मनुष्यों का मूल स्थान एक ही था और वहीं से लोग पूर्व की ओर गए।
"यूनानी,शक,हूण, यूची (कुषाण) सभी विदेशी जातियाँ मध्य एशिया से आई थीं इसलिए राजपूत भी मध्य एशिया से आई हुई विदेशी जाति है।
टॉड महोदय ने राजपूतों को विदेशी शक व सिथियन प्रमाणित करने के लिए उनकी रीति रिवाजों को भी परस्पर जोड़ दिया जैसे- अश्व पूजा, अश्वमेध, अस्त्र पूजा,उत्तेजक सूरा के प्रति अनुराग,अंधविश्वास, भाटों की प्रथा समाज में स्त्रियों के स्थान के साथ साथ देवताओं को रक्त और सूरा अर्पित करना।
"खून बहाने में प्रसन्नता अनुभव करने वाले राजपूत शान्ति-प्रिय आर्यों की सन्तान कैसे हो सकते हैं?
:
प्रसिद्ध इतिहासकार वी.ऐ. स्मिथ ने लिखा है कि आठवीं या नवीं शताब्दी में राजपूत यकायक प्रकट हुए और इनको हुणों की सन्तान बता दिया। उनका कहना है कि विदेशी गुर्जरों ने गुजरात को जीतकर उसका नाम अपने नाम पर रख लिया क्योंकि उससे पहले यह क्षेत्र "लाट" कहलाता था। उसी प्रकार हुणों ने भारतीय परम्पराओं को अपनाकर राजस्थान को अपना घर बना लिया।
आज गुर्जर राज्य तो नहीं है पर जाति शेष अवश्य रह गई।जब राज्य नष्ट हो गए तो हुणों ने खुद को 'राजपूत' बनालिया।
इन्हीं बातों के आधार पर स्मिथ महोदय ने निष्कर्ष निकाला है कि - "हूण जाति ही विशेषकर राजपूताने और पंजाब में स्थायी रूप से आबाद हुई जो अधिकांश गुर्जर थे और गुर्जर कहलाए।"
विलियम क्रुक ने भी राजपूतों के कई वंशजों का उद्भव शक या कुषाणों के आक्रमण कालीन बताया।
डॉ भंडारकर ने भी चारो अग्निकुलों को गुर्जर सिद्ध करने का प्रयास किया है।उन्होंने अपने मत के समर्थन में कहा है कि-राजौर में पाए गए एक अभिलेख में आधुनिक जयपुर के दक्षिण -पूर्व में शासन करने वाले प्रतिहारों की एक गौण शाखा ने अपने आप को गुर्जर कहा है।कन्नौज के प्रतिहारों को राष्ट्रकूटों ने अपने अभिलेखों में तथा अरबों ने अपने यात्रा विवरणों में गुर्जर बताया है। अगर चालुक्य गुर्जर नहीं थे तो गुजरात नाम क्यों रखा?
डॉ.भण्डारकर ने राजपूतों को गुर्जर सिद्ध करने के अनेक तर्क दिए वो कहते हैं कि ये गुर्जर पाँचवी शताब्दी के प्रारम्भ में हुणों के साथ भारत में प्रविष्ट हुए गुर्जर विदेशी थे इसलिए राजपूत भी विदेशी जाति के वंशज हैं।
😂🌻🌺🙏🌸 ग़ज़ब है।
:
'राजपूतों' के विदेशी होने के मत को स्वीकार नहीं किया जा सकता।प्रथम तो राजपूतों ने स्वयं को कभी विदेशी नहीं बताया और वह अपनी उत्पत्ति सूर्य व चन्द्र से बताते हैं।
राजपूतों के रीति-रिवाजों को शक या सिथियन के साथ जोड़ना भी अनुचित है क्योंकि उनके रीति-रिवाज़ शक-कुषाणों के आने से पूर्व भी भारत में प्रचलित थे।सूर्य की पूजा और अश्वमेध यज्ञ यहाँ पहले से ज्ञात था।
कर्नल टॉड का यह कथन कि आर्य शान्ति से रहना पसन्द करते थे सत्य है लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि आर्य युद्ध को क्षत्रिय धर्म समझते थे।
श्री वैद्य महोदय ने डॉ भण्डारकर के  कथन का खण्डन कर राजपूतों को आर्यों की सन्तान बताया।उनका कहना है कि कन्नौज के प्रतिहारों ने कभी भी खुद को गुर्जर नहीं बताया। वत्सराज,नागभट्ट जैसे उनके आर्य नाम हैं।उन्होंने अपने अभिलेखों में स्वयं को सूर्यवंशी कहा है।'राजशेखर' ने जो उनके समकालिक था उनको "रघुकुलतिलक" कहा।
किसी जाति को गुर्जर कह देने से यह प्रमाणित नहीं होता है कि वह जाति उत्पत्ति से ही गुर्जर थी।जैसे कि -
"मुसलमान" आक्रमणकारियों को 'यवन' कहा है इसका मतलब यह नहीं कि मुसलमान नस्ल में यूनानी थे।
:
'लाट' का नाम गुजरात इसलिए नहीं पड़ा कि वहाँ पर चालुक्यों का शासन स्थापित हो गया वरन् ऐसा प्रतीत होता है कि यह नाम गुजराती भाषा के आधार पर पड़ा।
😃🌼🌼🙏🌺
अतः श्री वैद्य महोदय के निष्कर्ष यह प्रमाणित करते हैं कि -----

"राजपूत भारतीय मूल के आर्य और उनके वंशज ही हैं।"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
"राजपूत चाहे जिस रुप में जन्मे हों लेकिन सत्य तो यह है कि इतिहास में उन्होंने वेद और स्मृतियों के साथ महाकाव्य काल के क्षत्रियों की परम्पराओं को बनाये रखा है।
🙏🌺🌼🌼🌸🌸🌻🌹🌹🏵💐🌺🙏🌼🌼🌸🌻🌻🌻🌻😃😃🌼🌺🙏🌼🌼😃🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌻🌻🌻🌻🌻🌻
#पाठकपुराण के साथ #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1 
#yqdidi #yqhindi #yqbaba 

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 05

"राजपूत" ( अतीत के झरोखे से )

'राजपूत' अश्व और अस्त्र की पूजा करते हैं।
मुसलमानों से युद्ध करते समय उन्होंने महाभारत काल के क्षत्रियों के सिद्धांत व नैतिक आचरण अपनाए।वैदिक सभ्यता को बचाने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाते रहे।श्री सी.एम वैद्य व श्री ओझा जी ने राजपूतों को वैदिक आर्यों की सन्तान और भारतीय माना है।
'पृथ्वीराज रासो' में कवि चन्द्रवरदाई ने लिखा है कि विश्वामित्र, गौतम,अगस्त्य तथा अन्य ऋषिगण आबू पर्वत पर एक धार्मिक अनुष्ठान कर रहे थे तो दैत्य आकर उनकी यज्ञ में विघ्न डालने लगे।उन दैत्यों को ख़त्म करने के लिए वशिष्ठ मुनि ने यज्ञ से तीन योद्धा उत्पन्न किये - 1.परमार 2. चालुक्य 3. प्रतिहार।
किन्तु जब तीनों का बल कम पड़ा तो चौथा योद्धा 'चौहान' उत्पन्न किया गया तब उसने आशापुरी को अपनी देवी मानकर दैत्यों को मार भगाया। परवर्ती चारण और भाटों ने तो इस उत्पत्ति को सत्य मानकर अपने ग्रंथों में दुहराया है किन्तु इतिहास का कोई भी विद्यार्थी यह मानने को तैयार नहीं होता कि अग्निकुण्ड से मनुष्य रूपी योद्धा पैदा किये जा सकते हैं। श्री जगदीश सिंह गहलोत कहते हैं कि यह - 'पृथ्वीराज रासो' के रचयिता के दिमाग़ की उपज है। अग्निवंशी कोई स्वतंत्र वंश नहीं माना जा सकता।
पाश्चात्य विद्वान विलियम क्रुक ने लिखा है कि- अग्निकुण्ड से तात्पर्य अग्नि द्वारा शुद्धि से है।
:
अग्निकुण्ड से उत्पत्ति वाली बात आज के युग में निर्मूल सी है।इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
:
कुछ विद्वानों का मानना है कि 'क्षत्रियों' की उत्पत्ति ब्राह्मणों से हुई सर्वप्रथम डॉ.भण्डारकर ने राजपूतों की उत्पत्ति किसी विदेशी ब्राह्मण से बताई उसके बाद तो अनेक विद्वान इसे ही सच साबित करने में लगे रहे।
"जोधपुर" के 'प्रतिहार' ब्राह्मण वंश के थे।इनके पूर्वज ब्राह्मण हरिश्चंद्र तथा उनकी पत्नी मादरा की सन्तान थे।
"आबू" के प्रतिहार वशिष्ठ ऋषि की सन्तान थे।
कुछ विद्वानों का मत है कि 'राजपूत' अपने पुरोहित का गोत्र अपना लेते थे।यह सिद्धांत इसलिए दिया क्योंकि पहले ब्राह्मण भी राजा हुआ करते थे।रावण ब्राह्मण था लंका में राज्य करता था।कहीं कहीं तो ब्राह्मण राजा से भी श्रेष्ठ माने गए मिथिला नरेश जनक और अयोध्या के दशरथ के राज्य में ब्राह्मणों से हाथ जोड़कर विनम्रता से बात की जाती थी।प्राचीन साहित्यिक कृतियों में भी विशेषकर "पिंगलसूत्र कृति" में भी राजपूतों को ब्राह्मण की सन्तान बताया है।
"आधुनिक इतिहासकार डॉ गोपीनाथ शर्मा ने भी मेवाड़ के "गुहिलोतों" को नागर ब्राह्मण 'गुह्येदत्त' का वंशज बताया है।श्री ओझा ने भी इस मत को स्वीकार किया है।मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने भी जयदेव के 'गीतगोविन्द'की टीका में यह स्वीकार किया कि गुहिलोत नागर ब्राह्मण गुह्येदत्त की सन्तान हैं।
डॉ दशरथ शर्मा इस मत का तर्क सहित खण्डन करते हैं और अधिकांश राजपूत भी इसे स्वीकार नहीं करते।
😊💕🙏
आज के लिए इतना ही काफ़ी है- बने रहिए #पाठकपुराण के साथ सुप्रभातम-
#राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1 
#yqdidi #yqhindi #yqbaba #yqtales

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 04 जातियाँ ( समय के गर्त में और गर्भ में )

जातियाँ ( समय के गर्त में और गर्भ में )
1. राजपूत 🗡🏹

वेद,उपनिषद,स्मृति और हमारे प्राचीन ग्रंथों में 'जाति' को प्राथमिकता नहीं दी गई थी।'राजपूत' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'राजपुत्र' से हुई है।जब चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया तो उसने भी यहाँ के राजाओं को 'क्षत्रिय' लिखा और कहीं कहीं राजपूत कहा।श्री जगदीश सिंह गहलोत ने लिखा है कि- "मुसलमानों के आक्रमण से पहले यहाँ के राजा 'क्षत्रिय' कहलाते थे।बाद में इनका बल टूट गया तो स्वतंत्र राजा के स्थान पर सामन्त, नरेश बनकर रह गए।इसी समय में ही शासक राजाओं के लिए 'राजपूत' या 'रजपूत' शब्द सम्बोधन के लिए प्रयोग में लिया जाने लगा।आठवी शताब्दी तक इस शब्द का प्रयोग कुलीन क्षत्रियों के लिए किया जाता था।चाणक्य,कालिदास और बाणभट्ट के 'राजपुत्र' मुसलमानों के समय अपने राज्य खो कर 'राजपूत'बन गए। राजपूतों की उत्पत्ति का प्रश्न वैसे तो अभी तक विवादास्पद बना हुआ है फिर भी वे स्वयं को वैदिक आर्यों से जोड़कर सूर्य और चंद्रवंशी बताते हैं।कहीं न कहीं इन दोनों वंशों से उनकी हर एक शाखा जुड़ी हुई मिलती है। "प्रतिहार राजपूत" अपने आप को लक्ष्मण की सन्तति के रूप में सूर्यवंशी बताते हैं। चंदेलों की उत्पत्ति चन्द्रमा और ब्राह्मण गन्धर्व कुमारी से हुई। चालुक्यों को हारीत ऋषि के कमण्डल के जल से हुई। हम्मीर काव्य में चाहमानों को सूर्यवंशी लिखा।इन सब बातों से ये स्पष्ट है कि "राजपूत" वैदिक आर्यों से सम्बंधित हैं।प्रश्न ये है कि दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में "राजपूत" शब्द का कैसे और क्यों बढ़ा? इस सम्बंध में प्रसिद्ध विद्वान श्री सी.एम.वैद्य लिखते हैं---
"भारत में बौद्ध धर्म के पश्चात् जाति-व्यवस्था के बंधन धीरे-धीरे दृढ़ होने लगे और इतने दृढ़ हुए कि ये कट्टरता की सीमा तक पहुँच गए। प्रत्येक जाति अपनी-अपनी सीमा संकुचित करने लगी।"रोटी-बेटी" के सम्बंध के लिए वे ही कुल सम्मलित होते थे जो रक्त सम्बंध में शुद्ध समझे जाते थे। जो क्षत्रिय थे अधिकतर बौद्ध हो गए आर्य परंपराओं से उनका नाता टूट गया।ऐसे परिवारों को बुरी तरह बहिष्कृत किया गया।परिवारों की कुलीनता को निश्चित करना और भी कठिन हो गया।इसका असर ब्राह्मण ,वैश्य, और शूद्र वर्ण पर भी हुआ।इस तरह अपने अपने क्षेत्र तक सीमित हो गए। अतः ये कहा जा सकता है कि जो भारतीय आर्यों में क्षत्रिय थे वे ही सत्ता चले जाने के पश्चात राजपूत हो गए।
🗡🙏😊
कुछ विद्वान राजपूतों को - हूण, शक,सीथियन,गुर्जर और विदेशी जातियों की सन्तान भी मानते हैं!🤔 आज के लिए इतना ही काफ़ी है आगे की चर्चा फिर कभी.....
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
बने रहिये #पाठकपुराण के साथ #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1 
क्रमशः ----
#yqbaba #yqdidi #yqhindi 

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 03

            बंटबारे के बाद हड़प्पा और मोहनजोदड़ो पाकिस्तान का हिस्सा हो गए तो पड़ौसी ने दावा कर दिया कि सबसे प्राचीनतम सभ्यता की नींव उनकी धरती पर पड़ी।जब इसकी भनक भारतीय पुरातत्व विभाग को लगी तो पूर्वी पंजाब,राजस्थान और गुजरात में उत्खनन आरम्भ कर दिया।इसी के फलस्वरूप प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता 'अमलानंद घोष' ने कालीबंगा और ऐसे ही कई टीलों को खोज निकाला।खुदाई कर सिन्धु सभ्यता के समकक्ष ही नहीं वरन उससे भी पुरानी सभ्यता के प्रमाण निकाल कर पाकिस्तान का दम्भ चूर-चूर कर दिया।इस कार्य को व्रजवासी लाल और बालकृष्ण थापर ने जारी रखा।राजस्थान का यह ऐतिहासिक स्थान गंगानगर जिले के सूखी घग्घर ( प्राचीन सरस्वती )नदी के तट पर स्थित है।खुदाई में मिले अवशेषों से ज्ञात हुआ कि यहाँ की सभ्यता और संस्कृति बेहद समृद्ध एवं विकसित थी।दुर्भाग्यवश कुछ प्राकृतिक कारणों से सरस्वती नदी लुप्त हो गई और उसी के साथ एक शानदार सभ्यता का ह्रास हो गया। सरस्वती नदी के लुप्त होने का उल्लेख तो पुराणों में भी मिलता है।एक किवदंती के अनुसार श्रीराम ने जब समुद्र को सुखाने के लिए अग्निवाण खींच लिया तो समुद्र ने क्षमा याचना की लेकिन तीर कमान में बापस जाए ये किसी योद्धा के लिए अशोभनीय था इसलिए समुद्र का एक हिस्सा उससे काट डाला और जिस हिस्से में तीर लगा वहाँ समुद्र का पानी सूख कर शेष रेगिस्तान रह गया।
😊💕🙏☕
डॉ.गोपीनाथ शर्मा कहते हैं कि- "सम्भवतः भूचाल से या कच्छ के रन की रेत से भर जाने से ऐसा हुआ होगा जो समुद्री हवाएँ पहले इस ओर से नमी लाती थीं और वर्षा का कारण बनती थीं वे ही हवाएँ सूखी चलने लगी और कालान्तर में यह भू भाग रेत का समुद्र बन गया।
💕🙏☕😊
#पाठकपुराण के साथ
#राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1 क्रमशः- 03
सुभ अपराह्न साथियो।
#yqdidi #yqhindi #yqtales  

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ - 02

आहड़ युग का राजस्थानी पशु पालने, भाण्ड बनाने,खिलौने और मकानों के साथ व्यापार और वाणिज्य को भी जानता था।लगभग 6 हजार साल पहले तक राजस्थान की अत्यंत समुन्नत सभ्यता रही थी। कालीबंगा,आहड़,बागौर,रंगमहल, बैराठ,गिलुण्ड, नोह्,गणेश्वर, बालाथल,आदि की खुदाई से पता चला कि राजस्थान में अति प्राचीन "सिन्धु-सरस्वती" सभ्यता पनप चुकी थी।
💕😊🙏
#सुप्रभातम #yqdidi #yqhindi
#पाठकपुराण के साथ #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1-02
क्रमशः--   

राजस्थान के इतिहास की झलकियाँ -01

हम अपनी स्वाधीनता संस्कृति और प्रेम के लिए प्राणों की आहूति देने वाले लोग हैं। हमारी मिट्टी में सिन्धु सभ्यता से काफ़ी पहले जीवन की हिलोर उठ चुकी थी।
:
 कर्नल टॉड लिखते हैं कि - "राजस्थान में कोई भी ऐसा छोटा राज्य नहीं है जिसमें थर्मोपॉली जैसी रणभूमि न हो और शायद ही कोई ऐसा नगर मिले जहाँ लियोनीयस जैसा वीर पुरुष पैदा न हुआ हो।"
क्रमशः- अगली कड़ी में लेख को आगे बढ़ाएंगे।
#cinemagraph #पाठकपुराण  के साथ #राजस्थान_के_इतिहास_की_झलकियाँ_1

Tuesday, September 8, 2020

त्योहारों का देश हमारा ( भादों माह विशेष )

#हुलस_रहा_माँटी_का_कण_कण_उमड़_रही_रसधार_है_त्योहारों_का_देश_हमारा_हमको_इससे_प्यार_है_।
भादों माह लगते ही हर दिन व्रत, पर्व, और उत्सव के रूप में हम मनाते हैं।कल #ऋषिपँचमी के बारे में बताया और आज आपको बतायेंगे #देवछठ के बारे में।
भादों माह के शुक्ल पक्ष की छठमीं तिथि को हम "कालियावन" वध की ख़ुशी के रूप में मनाते हैं।इससे जुड़ी एक कथा विष्णु पुराण के पंचम अंश के तेईस वें अध्याय में मिलती है और उसे विस्तार से श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कन्द के अध्याय इक्यावन में दिया गया है।
:
कथा इस प्रकार है कि- जब भगवान श्रीकृष्ण  कंस का वध कर अपने राज्य का विस्तार कर रहे थे तो यवन का एक अति महत्वकांक्षी "कालयवन" नाम का आक्रमणकारी मथुरा पर चढ़ाई कर बैठा । श्री कृष्ण ने उसका युद्ध में डट कर सामना किया और उसे भगा दिया। चोट खाया कालयवन अब उपाय ढूंढने लगा कि कृष्ण को कैसे हराये उसने अपने मंत्रियों से सलाह-मशविरा किया तो पता चला कि भारतीय राजा ब्राह्मणों का वध नहीं करते न उन पर शस्त्र उठाते हैं।इसलिए उसने ब्राह्मणों का अपहरण करना प्रारम्भ कर दिया और उन्हें आपनी ढाल बनाकर पुनः मथुरा पर चढ़ाई कर दी। जब इस बात की भनक कृष्ण को लगी तो वो निहत्थे और अकेले ही रण-क्षेत्र में पहुँच गए।कृष्ण को अकेला देख कालयवन दंग रह गया।कृष्ण मुस्कुराकर बोले मुझे तो लगा तुम बहुत बड़े योद्धा हो तुम तो निपट कायर और डरपोक निकले।द्विज श्रेष्ठों के पीछे खड़े होकर लड़ोगे मुझसे असली योद्धा हो तो आओ सामने और उन्हें मुक्त कर दो, देखो आज में अकेला हूँ और वचन भी देता हूँ सुदर्शन चक्र का प्रयोग नहीं करूँगा।इतना सुनते ही वह कृष्ण की ओर लपका तो कृष्ण मुस्कुराए और रण छोड़ कर भाग खड़े हुए---😊 कालयवन चीख़ता हुआ बोला "रणछोड़" कर कहाँ भागते हो तो कृष्ण ने मुस्कुराते हुए बोला पकड़ कर दिखाओ तो तुम विजयी घोषित कर दिए जाओगे और यवन के सैनिकों को विपरीत दिशा में भागने का इशारा कर फिर दौड़ लगादी।कृष्ण आगे आगे कालयवन पीछे पीछे दौड़ते दौड़ते कृष्ण भगवान सीधे हमारे धौलपुर की धौलागिरी पर्वतीय गुफाओं में उसे ले आये। धौलागिरी पर्वत की एक गुफ़ा में कृष्ण ने मचकुण्ड महाराज को सोते देखा तो उनके ऊपर अपना पीताम्बर उढ़ाकर वहीं छुप गए। जब कालयवन हांफते हांफते वहाँ पहुँचा तो सोते हुए मचकुण्ड महाराज को कृष्ण समझ कर लात देदी और कहा कि यहाँ आ सोया है उठ "रणछोड़" अचानक से नींद में भंग पड़ते ही मचकुण्ड महाराज उठे और उसको पकड़ कर जिन्दा जला दिया। इस प्रकार दुष्ट कालयवन का अंत हुआ और भगवान कृष्ण मचकुण्ड महाराज को सारा वृतांत बताकर उनसे क्षमा याचना कर वापस मथुरा आ गए।
:
मचकुण्ड महाराज के बारे में किवदंती है कि वह मांधाता के पुत्र देवासुर संग्राम के शानदार योद्धा थे युद्ध विजय करने के बाद धौलपुर में विश्राम करने के लिए आये थे। चार धाम की यात्रा करने के पश्चात इनका आशीर्वाद लेने के लिए आना अनिवार्य है ये तीर्थों का भान्जे के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
:
वर्तमान में मचकुण्ड महाराज के तीर्थ स्थल का जो सुंदर स्वरूप है उसे 1856 में राजा भगवन्त सिंह जी ने निर्माण कराया था।
#पाठकपुराण की ओर से आप सभी का स्वागत है आपको ये जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बतायें।
जय श्री कृष्ण।😊🙏
#yqhindi 

भादों माह ( व्रत पर्व उत्सव के दिन )

#भादोंमाह_शुक्लपक्ष_की_दशमी का दिन राजस्थान के इतिहास में विशेष स्थान रखता है। नर-नारी के शौर्य और बलिदानों के लिए जाने वाली इस पावन भूमि की महानता को सारा विश्व जानता है। आओ आपको ऐसे ही कुछ किस्सों से रुबरु कराते हैं-----
सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण” और अमृता देवी गुरू जांभोजी महाराज की जय बोलते हुए सबसे पहले पेड़ से लिपट गयी, क्षण भर में उनकी गर्दन काटकर सिर धड़ से अलग कर दिया। फिर तीनों पुत्रियों पेड़ से लिपटी तो उनकी भी गर्दनें काटकर सिर धड़ से अलग कर दी गई।
1. #खेजड़ली

सन् 1730 में जोधपुर के राजा अभयसिंह को युद्ध से थोड़ा अवकाश मिला तो उन्होंने महल बनवाने का निश्चय किया।नया महल बनाने के कार्य में सबसे पहले चूने का भट्टा जलाने के लिए इंर्धन की आवश्यकता बतायी गयी।राजा ने मंत्री गिरधारी दास  भण्डारी को लकड़ियों की व्यवस्था करने का आदेश दिया।
:
खेजड़ली में राजा के कर्मचारी सबसे पहले अमृता देवी के घर के पास में लगे खेजड़ी के पेड़ को काटने आये तो अमृता देवी ने उन्हें रोका और कहा कि “यह खेजड़ी का पेड़ हमारे घर का सदस्य है। यह मेरा भाई है इसे मैंने राखी बांधी है, इसे मैं नहीं काटने दूंगी” इस पर राजा के कर्मचारियों ने प्रश्न किया कि “इस पेड़ से तुम्हारा धर्म का रिश्ता है,तो इसकी रक्षा के लिये तुम लोगों की क्या तैयारी है”? इस पर अमृता देवी और गांव के लोगों ने अपना संकल्प घोषित किया- “सिर साटे रूख रहे तो भी सस्तो जाण” अर्थात् हमारा सिर देने के बदले यह पेड़ जिंदा रहता है तो हम इसके लिये तैयार है।उस दिन तो पेड़ कटाई का काम स्थगित कर राजा के कर्मचारी चले गये, लेकिन इस घटना की खबर खेजड़ली और आसपास के गांवों में शीघ्रता से फैल गयी।
:
कुछ दिन बाद मंगलवार 21 सितम्बर 1730 ई. (भाद्रपद शुक्ल दशमी, विक्रम संवत 1787) को मंत्री गिरधारी दास भण्डारी लावलश्कर के साथ पूरी तैयारी से सूर्योदय होने से पहले आये,जब पूरा गाँव सो रहा था।सबसे पहले अमृता देवी के घर के पास में लगे खेजड़ी के हरे पेड़ो की कटाई करना शुरु किया तो,आवाजें सुनकर अमृता देवी अपनी तीनों पुत्रियों के साथ घर से बाहर निकली।
:
हरे भरे पेड़ों को कटते देख उनसे नहीं रहा गया और वे ....
“सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण” और अमृता देवी गुरू जांभोजी महाराज की जय बोलते हुए सबसे पहले पेड़ से लिपट गयी,क्षण भर में उनकी गर्दन काटकर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर तीनों पुत्रियों पेड़ से लिपटी तो उनकी भी गर्दनें काटकर सिर धड़ से अलग कर दिये।
:
चीत्कार सुनकर आस-पास 84 गांवों के लोग आ गये।उन्होनें एक मत से तय कर लिया कि एक पेड़ के एक विश्नोई लिपटकर अपने प्राणों की आहुति देगा। सबसे पहले बुजुर्गों ने प्राणों की आहुति दी।तब मंत्री गिरधारी दास भण्डारी ने बिश्नोईयों को ताना मारा कि ये अवांच्छित बूढ़े लोगों की बलि दे रहे हो। उसके बाद तो ऐसा जलजला उठा कि बड़े,बूढ़े, जवान, बच्चे स्त्री-पुरुष सबमें प्राणों की बलि देने की होड़ मच गयी।
:
बिश्नोई जन पेड़ो से लिपटते गये और प्राणों की आहुति देते गये।आखिर मंत्री गिरधारी दास भण्डारी को पेड़ो की कटाई रोकनी पड़ी।ये तूफ़ान थमा तब तक कुल 363  बिश्नोईयों (71 महिलायें और 292 पुरूष) ने पेड़ की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दे दी।खेजड़ली की धरती बिश्नोईयों के बलिदानी रक्त से लाल हो गयी।यह मंगलवार 21 सितम्बर 1730 (भाद्रपद शुक्ल दशमी, विक्रम संवत 1787) का ऐतिहासिक दिन विश्व इतिहास में इस अनूठी घटना के लिये हमेशा #चिपकोआन्दोलन के रूप में याद किया जाता है। खेजड़ली गाँव में प्रतिवर्ष आज के दिन विशाल मेले का आयोजन होता है। मैं इन शहीदों को सत सत नमन करता हूँ। पर्यावरण के महत्व को विश्व अब समझा है पर हमें गर्व है कि हमारे पूर्वजों ने इसे 231 साल पहले ही जान लिया था।
🙏💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
शूर न पूछे  टिप्पणो,   शुगन न पूछे शूर।
मरणा नूं मंगल गिणै समर चढ़े मुख नूर।।
2. #वीर_तेजाजी
मारवाड़ के खरनाल गाँव जो राजस्थान नागौर जिले में 29 जनवरी 1074 में हुआ उनके पिता गाँव के मुखिया थे।
:
पत्नी पेमल को लेने ससुराल गए तो उनकी साली मतलब पेमल की सखी लाछा गूजरी ने बताया कि उसकी गायों को मीणा गिरोह के डाकुओं ने चुरा लिया है। फिर क्या था सुनकर वीर तेजाजी निकल लिए और लुटेरों से लड़ाई लड़कर गायों को बापस ले आए।
:
इन्हें शिव के रूप में पूजा जाता है और नाग या सांप के काटने पर इनके नाम या भभूति से इलाज किया जाता है। इनके साथ ही इनकी पत्नी पेमल सती हो गईं और बहिन राजल यह सुनकर धरती में समा गई।
इन्हें सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। आज के दिन इनका भी मेला लगता है।
:
मोती सम ना ऊजला ,

चन्दन सम ना काठ ,

तेजा सम ना देवता ,

पल में करदे ठाठ ।।
💐💐💐 💐💐💐💐💐
आपको यह जानकारी कैसी लगी मुझे जरूर बताइये बहुत बहुत स्वागत है आपका......
शुभरात्रि
#पाठकपुराण के साथ #लोकदेवता राजस्थान।

    

श्राद्ध ( पितृ तर्पण )

कुछ लोगों को ब्राह्मणों से तो विशेष समस्या है ही।उनका यह प्रश्न भी है कि श्राद्ध में कौए की खाई हुई खीर हमारे पूर्वजों के पेट मे कैसे पहुँच जाएगी। तो सबसे पहले तो मैं आपको याद दिला दूँ की ब्राह्मण कभी बिना बुलाए आपके घर नहीं आते हैं। मेरा आपसे निवेदन है कि आपके घर मे बच्चे का जन्म होने पर कृपया आप कुंडली बनवाने, प्रसूति स्नान का महूर्त पूछने या नामकरण के लिए ब्राह्मण के पास ना जाएं।आप डॉक्टर के पास जाते हैं कंसल्टिंग फीस देनी ही पड़ती है। ब्राह्मण से महूर्त पूछने जाएंगे तो दक्षिणा भी देनी होगी। विवाह के लिए आप कोर्ट की शरण मे जाएं ।ना ब्राह्मण को दक्षिणा देनी होगी ना ही भोजन कराना पड़ेगा।आपके घर मे किसी की मृत्यु होने पर आप अपने हिसाब से उसे अग्नि में भस्म करने के लिए स्वतंत्र हैं।ब्राह्मण आपसे नहीं कहेंगे कि आप विधिवत दाह संस्कार कीजिये या पिंड दान दीजिये। और इसके बाद श्राध्द आदि का तो प्रश्न ही नहीं उठता। इसी तरह आप ब्राह्मणों के अत्याचार और लूटपाट से पूरी तरह बच जाएंगे।यह मेरा दावा है कि जब तक आप स्वयं चल कर ब्राह्मण को बुलाने नहीं जाएंगे, ब्राह्मण आपके घर नहीं आएगा! 
अब बात करते हैं श्राध्द की।तो बिल्कुल सरल और कम शब्दों में कहने का प्रयास करती हूँ। श्राध्द में दिए जाने वाले भोजन का आयुर्वेदिक महत्व तो पहले बता ही चुकी हूँ। तो स्वाभाविक है कि वह भोजन केवल हमारे पेट मे जाता है ना कि पितरों के। शास्त्रों के अनुसार जब हम पितरों के निमित्त भोजन देते हैं तो वे यदि सूक्ष्म रुप उपस्थित है तब वे भोजन की गन्ध को ग्रहण करके तृप्त होते हैं। यदि वे किसी पशु की योनि में है तो वह भोजन उन्हें चारे या भोजन के रूप में वहाँ प्राप्त होता है। यदि इंसान के रूप में है तब भी दिया गया दान उन्हें किसी न किसी रूप में प्राप्त होता है।आपने कई बार अनुभव किया होगा अचानक ही आपको कोई ऐसा लाभ हो जाता है जिसकी आशा नहीं थी।कई लोगों को सड़क पर पड़े हुए नोट मिल जाते हैं।कोई आपको बेवजह उपहार या कोई पकवान दे जाता है! ब्राह्मण आपसे कभी नहीं कहते कि आप स्वयं भूखे रह कर उन्हें भोजन कराएं। श्राद्ध अपनी क्षमता के अनुसार किया जाता है। आप चाहें तो पकवान खिला सकते हैं, सीधा दे सकते हैं। अगर उतनी हैसियत नहीं है तो गाय को चारा डाल सकते हैं।अगर उतना भी सम्भव न हो तो जौ और तिल की आहुति देने से भी काम चल जाएगा। अगर वह भी सम्भव ना हो तो सूर्य नारायण को जल चढ़ा कर कहें- "मैं(अपना नाम), (पिता का नाम),(जिनके निम्मित श्राध्द है) का पूर्ण श्रध्दा भाव से श्राद्ध करता हूँ। हे सूर्यनारायण मेरे (पित्र) को संतुष्ट करने की कृपा करें।" 
अरहर: स्वधाकुर्यादोदपात्रात्तथैतं पितृयज्ञं समाप्नोति ।
         श्रीशुक्लयजुर्वेद शतपथब्राह्मणम् ११/३/८/२
'नित्य-नित्य अन्न व फल मूलादि के अभाव में जलमात्र से भी (पितृभ्य: स्वधानमः) बोलकर पितरों के लिये जल छोड़ने मात्र से भी पितृयज्ञ पूर्ण हो जाता है ।'
उदाहरणार्थ सीताजी का रेत के लड्डू पिंड दान में देने का प्रसंग है।
एक छोटी सी बात और.. अपने केस के बारे में सबकुछ जानते हुए भी अपनी बात प्रभावशाली ढंग से न्यायाधीश तक पहुँचाने के लिए आप पैसे देकर वकील का सहारा लेते हैं।कोई कारण होगा! अब इस बात को आप ब्राह्मण से जोड़ कर देखेगे तो शायद समझ आजाए की हर व्यक्ति  ब्राह्मण को ही भोजन क्यों कराना चाहता है।
पित्र पक्ष में कौए को खीर या घी शक्कर वाली रोटी देने का वैज्ञानिक कारण है।भादो मास में कौए के अंडे से नए बच्चों का जन्म होता है।इसलिये माँ-बच्चों को पौष्टिक भोजन की आवश्यक्ता होती है।अब प्रश्न यह कि इससे हमें क्या लाभ! दुनिया जानती है पीपल और बरगद दो ऐसे पेड़ हैं जिनका वैज्ञानिक महत्व बहुत ही अधिक है।इनका धरती पर होना हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं। लेकिन ये पेड़ उगते कैसे हैं?कौआ इन पेड़ों के फल खाता है फिर कौए के पेट मे इस बीज की प्रोसेसिंग होती है।इसके बाद कौआ जब बीट करता है तो यह प्रोसेस्ड बीज बाहर आता है और उस स्थान पर ये पेड़ उगते हैं!यानी कि कौए की सहायता के बिना ये जीवनदायी पेड़ उगाना सम्भव नहीं है। इसीलिए हम इनकी नई पीढ़ी की रक्षा के लिए श्राद्ध में 16 दिन इन्हें भोजन देते हैं।वैसे इस भेद को जानकर यह व्यवस्था बनाने वाले हमारे ऋषि मुनि भी ब्राह्मण ही थे।
अंत मे एक बार फिर आपको याद दिला दूँ जब तक आप स्वयं चलकर ब्राह्मण को बुलाने नहीं जाएंगे वे आपके घर नहीं आएंगे। आत्मनिर्भर बनें! निश्चिंत रहे!!
जय परशुराम🙏🚩⛏️
✍️रेणुका व्यास #YourQuoteAndMine
Collaborating with Renuka Vyasजी की लेखनी शानदार है इसी कड़ी में मैं आपके साथ कुछ बातें साझा करूँ .....😊💐 सभी पाठक गणों को नमन।
😊🙏
:
भारतीय संस्कृति जो कि वैदिक जीवनशैली पर आधारित है।हमारे शास्त्र और धार्मिक ग्रंथ - प्रकृति,परमात्मा और जीवात्मा के मिश्रित स्वरूप को सृष्टि के रूप में व्यक्त करते हैं।
जीवात्मा ईश्वर का अंश और अमर माना गया है जो प्रकृति के माध्यम से पृथ्वी पर आता है। स्वतंत्र जीवन का आनंद लेने।यहाँ आकर कर्मों का संचय करता है।अपनी इच्छा और उद्देश्य  निर्धारित करता है। उन्हें पूरा करने के लिए पूरा जीवन लगा देता है।लेकिन कुछ अधूरी इच्छाओं को वह अपनी नई पीढ़ी के लिए छोड़ जाता है। जिसे उसकी सन्तति पूरा करती है।यह क्रम चल पड़ता है जिसे "पुनर्जन्म" की अवधारणा या सिद्धांत के रूप में हमारे मनीषियों ने प्रस्तुत किया।
:
मृत्यु के पश्चात अधूरी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए "पितृ-प्राण" के रूप में जीवात्मा का एक अंश अपनी नई पीढ़ी के पास ही रह जाता है। उस पितृ प्राण की इच्छाओं को और उसके पुनर्जन्म की उम्मीद को पूरा करने के लिए श्राद्ध- या तर्पण का विधान पितृ पक्ष में अपनी स्थिति के अनुसार किया जाता है।
:
हम अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देकर उनके द्वारा दी गई सीख और उनके द्वारा बनाये गए रास्तों पर चल रहे हैं की भावना स्वरूप आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
:
ब्राह्मणों से इसका क्या लेना देना है---?
😊
यह प्रश्न आजकल बहुत लोग करते हैं तो सुनो..... साधारण सी बात है।
:
प्रकृति- परमात्मा और जीवात्मा का सिद्धांत ब्राह्मणों ने दिया।
:
पुनर्जन्म का सिद्धांत भी ब्राह्मणों ने दिया आज विश्वभर में इसे स्वीकार भी किया जाता है।
:
इन विशिष्ट सिद्धान्तों के प्रणेता ब्राह्मणों के ऋण को चुकाने के लिए पुरातन काल से ही सुसंस्कृत लोग कृतज्ञता प्रकट करने के लिए उन्हें निमंत्रण देकर भोजन और दक्षिणा स्वेच्छा से करते आये हैं।
:
😊💐
कहने को और भी बहुत से कारण हैं किंतु बात को लंबी न खींचते हुए यही कहूँगा कि समझदार के लिए इशारा ही काफ़ी होता है।
😊🙏जय श्री कृष्ण। जाते जाते एक बात और--- 😁🙏
आज कोई नए सिद्धांत और शोध कर कुछ बनाकर राष्ट्र या समाज को देता है तो उसे रॉयल्टी मिलती है ना ये दक्षिणा और सम्मान उन हमारे पूर्वजों की रॉयलिटी है जिसे रॉयल लोग आज तक देते आ रहे हैं और आगे भी देते रहेंगे।😁
#पाठकपुराण की एक बात और 

शब्दों के उस पार

अपनी अपनी धुन पर नाचने वालों को छोड़,
जहाँ सुन सकूँ प्रकृति की साश्वत ध्वनियों को।
:
#पाठकपुराण की ओर से शुभरात्रि साथियो.....😊💐💐💐💐💐
#yqdidi #yqbaba #yqhindi
    

समय के उस पार देखने की दृष्टि गुरु ही दे सकते हैं।

संस्कृति और संस्कार का ज्ञान वक़्त के माध्यम से आ सकता है क्या?
एक बेहतर शिक्षक अपने द्वारा दिये गए शानदार प्रशिक्षण से ही साधारण प्रतिभा को निखार सकता है।
सोचिये-- चंद्रगुप्त मौर्य को चाणक्य वक़्त के हाथों सीखने छोड़ देते तो क्या आज हम एक महान सम्राट के बारे में पढ़ रहे होते!
:
वक़्त और ज़िन्दगी हमें स्वाभाविक ज्ञान और पिछले किये गए अपने कर्मों के अर्जित प्रतिफलों को अनुभव के आधार पर भविष्य के लिए बेहतर करना सिखा सकता है लेकिन जीवन भर हमें अपने शिक्षकों के द्वारा प्राप्त ज्ञान ही मार्ग दिखायेगा।
:
शास्त्रों में समय के महत्व को समझने पर जोर दिया है।
और गुरुजनों ने समय के उस पार देखने की क्षमता।
:
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूँ पाँय।
बलिहारी गुरु आपणी गोविंद दियो मिलाय।
:
गुरूर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वराय।
गुरुरसाक्षतः परम् ब्रह्म तस्मई श्री गुरुवे नमः।
😊🙏
वक़्त और ज़िन्दगी उनके शानदार होते हैं जिनके पास सुयोग्य शिक्षकों का सानिध्य प्राप्त होता है।
:
चॉकलेट खिलाओ मत खिलाओ लेकिन अपने शिक्षकों के प्रति आस्था और श्रद्धावनत जरूर रहो।जो अपने गुरुजनों का सम्मान करते हैं वही लोग समाज के विकास में सहायक होते हैं। ऐसे लोग कभी किसी का अहित भी नहीं करते।
:
जय श्री कृष्ण.....😊😊🙏
#पाठकपुराण 
#teacher's day
#yqdidi #yqbaba #yqhindi  

शिक्षा का अधिकार एक मनुस्मृति का विचार।

शिक्षा के अधिकारों को लेकर देश में सबसे पहले 18 मार्च 1910 में ब्रिटिश विधान परिषद के समक्ष निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रस्ताव गोपाल कृष्ण गोखले जी ने रखा था जो उस समय ख़ारिज कर दिया गया था।
:
इसके  बाद आज़ाद भारत के संविधान में इसके लिए कई प्रावधान और संशोधन हुए जो -आगे चल कर निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के रूप में पारित हुआ और 1 अप्रैल 2010 से लागू हो गया। इसे हम आज (RTE) 06- 14 बर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य रूप से विद्यालय से जोड़ कर पढ़ाया जा रहा है।
:
मैं तो बस यह बताना चाहता हूँ कि यह शिक्षा के अधिकार का मूल विचार मनुस्मृति के एक श्लोक के सूत्र में निहित है--
😊

कन्यानां सम्प्रदानं च कुमाराणां च रक्षणाम।।
:
5 वर्ष के बाद कन्याओं और कुमारों अर्थात लड़कीयों और लड़कों को घर में न रख कर उन्हें विद्याध्यन के लिए अनिवार्य रूप से भेज देना चाहिए। इसके लिए राजनियम (सरकार) की व्यवस्था जातिनियम के अनुरुप होनी चाहिए।
:
😀
जातिनियम- मतलब कन्याओं के लिए अलग और कुमारों के लिए अलग पाठशाला की व्यवस्था हो।
:
अब इसमें गलत क्या है ?
:
"जातिनियम"- मनुस्मृति के दौर में समाज जातिगत आधार पर विभाजित न होकर वर्ण व्यवस्था के अनुरूप चलता था। उसी अनुरूप शिक्षा का विधान था। शिल्पकार, स्वर्णकार, कृषक, सैनिक,व्यापारीयों, पशुपालकों आदि को उनकी रुचि अनुरूप शिक्षित किया जाता था। लेकिन आज़ादी के बाद जब बचे कुचे ग्रंथों और स्मृतियों को टटोला गया तो उनमें सदियों की गुलामी और अज्ञान के बढ़ जाने से अर्थ का अनर्थ कर दिए। फलस्वरूप हम शास्त्रों से दूर होकर श्वेच्छाचार के शिकार हो गए। समय ने भी पलटी ली और तकनीकी विकास हुआ। जंगल खेत मिटते गए पेड़ कटते गए कंक्रीट बिछती गई और आज हम विकास के चरम पर इतराने में लगे थे कि- समय ने फिर करवट बदल ली।
इस बार बहुत कुछ सीखने को मिला आयुर्वेद और अपनी पुरातन परंपराओं को पहचाना। नमस्ते का प्रचलन बढ़ा। छुआ छूत का महत्व समझ आया।और प्रकृति के सानिध्य की उपयोगिता को स्थान मिला। भविष्य के लिए बेहतर संकेत हो सकते हैं क्योंकि हमारे देश की आपदा को अवसर में बदलने की क्षमता अद्भुद है।
😊🙏
बात को यहीं विराम देता हूँ जय श्री कृष्ण-----
:
#पाठकपुराण  #yqdidi #yqhindi #सार्वजनिक_अनुशासन_की_कमी_एवं_अशिक्षा #विज्ञान_का_ताण्डव 

Thursday, May 21, 2020

आदर्श पत्रकार

आदर्श पत्रकार।

सत्य का संधान करने जो निकलता।
नित्य अपने मार्ग में मिथ्या कुचलता।
राष्ट्रहित में हर क़दम निर्भीक होकर!
न्याय की जो तर्कसंगत बात करता।

वर्जनाओं से न डर डर मुह छिपाता।
सर्जनाओं की क़लम रखता हमेशा।
लोकहित में जो बनाता क्रान्ति पथ!
घृष्ट से लड़ता उजागर भ्रष्ट करता।

ये सिपाही तो क़लम हाथों में लेकर।
चौकसी करता है जो प्रतिक्षण हमारी।
भूकम्प,आँधी,बाढ़,बारिश में भी बाहर!
जो युद्ध के मैदान में पल पल उतरता।

हर घटी घटना को लाकर हमको देता।
जो है जरूरी हित हमारे हमसे कहता।
नव स्वरों की रागिनी सबको सुनाकर!
जो हृदय के घाव को सिलता ही रहता।

Tuesday, May 19, 2020

सत्तर साल से अब तक

पर्पटी जम गई ज़मीन बड़ी प्यासी है।
नमी रुकती नही ज़मीर में उदासी है।

वात, पित्त,कफ़ तीनों बढ़े हुए दिखते!
जाँच हुई तो हर तीसरे को खाँसी है।

बच्चे क्या बूढ़े और ये नौजवान भी!
चूल से सभी ने ऐनक लगा राखी है।

चिकित्सा और विज्ञान के हवाले से!
कागज़ी औसत उम्र बढ़ा दिखाती है।

यहाँ अस्पतालों की भीड़ बताती है!
सत्तर साल से बड़ी मारा-मारी है।

भुखमरी,बेरोज़गारी, मुफ़लिसी है!
कैसी विकसित होने की तैयारी है?

लूट,चोरी,डकैती,हत्या मक्कारी है!
बे-शर्म कोने कोने में बलात्कारी है।

ये कैसा शोर हर तऱफ मच रहा है?
मानवता का ह्रास कबसे जारी है।

एक बात हो तो ध्यान जाता उस पर!
जुमलों, बातों की ख़ूब भरमारी है।

सरकार तो बस आँकड़ों से चलती है!
सच्चाई तो फाइलों में दफ़्न सारी है।

"पाठक" तू तो मीठा बोल काम चला!
दुनिया में अब दिखावे की खुद्दारी है।

मैं ( मंथन)

मैं तो शब्दों को तीर बनाता गया।
अपनों के दिल में ही चुभाता गया।

इंसान हूँ सभी बेजुबां की नज़र में!
मैं उन्हें बस जानवर बताता गया।

बाँधकर परिंदे ख़ूब ली वाह वाही!
भूख लगी तो उनको चबाता गया।

जीव जीवस्य भोजनम् पढ़ लिया!
बिन समझे इसे ही भुनाता गया।

देता रहा क़ानून की दुहाई अक़्सर!
संविधान का मख़ौल उड़ाता गया।

मैं ज़र ज़ोरू ज़मीन की लड़ाई में!
मुद्दतों से अब तक रक्त बहाता गया।

आधुनिकता का फ़ितूर पाल कर!
विरासतों को क़हर दिलाता गया।

विज्ञान के विमान में बैठ भरी उड़ान!
गाड़ी ज़मीन की शौक़ में छुड़ाता गया।

भाजी,तरकारी, दूध-दही ख़ूब खाए!
पैकेट में बंद कर ज़हर मिलाता गया।

जिम,कोचिंग, ट्यूशन भी ख़ूब लिए!
ज्ञान की मौलिकता को भुलाता गया।

दौलत शौहरत के लिए भटकता है पंछी!
जब भी मोड़ मिला शॉर्टकट बनाता गया।

जान पर बन आई ख़ुद के तो रोता है "पाठक"!
पहले क्यों तू निर्दोषों को रुलाता गया।
🙏

Monday, May 18, 2020

मेरी माँ और लॉक डाउन

मेरी माँ और लॉक डाउन।

रोज़ सुबह के तीन बजे ही उठ जाती है मेरी माँ।
घर को स्वर्ग बनाने की मशक्कत में मेरी माँ।

मवेशियों के लिए चारा,सानी,पानी करते!
पाँच बजे सबके लिए चाय बना लेती है मेरी माँ।

लेकर चार चुस्कियाँ रसोई आँगन को करती पवित्र!
फिर कमरे बिस्तर पखारकर साँस लेती मेरी माँ।

देश भर के गाँव में आठ बजे नहाती कपड़े धोती!
और फिर मंदिर में पूजा करने जाती मेरी माँ।

भगवान भी तो उसी के हिस्से में आते हैं सारे।
उनकी सेवा कर भोग लगाते ग्यारह बजा लेती मेरी माँ।

तब तक कोई सूचित करता चूहे दौड़ रहे हैं पेट में!
सुनते ही अन्नपूर्णा बन सबको खाना खिलाती मेरी माँ।

खुद को खाने का वक़्त तीन बजे मिलता है!
कभी किसी से कोई शिक़ायत नही करती मेरी माँ।

पलभर आराम फिर पाँच बजते ही फिर से वही!
सुबह से शाम तक घड़ी की सुई सी घूमती मेरी माँ।

सासु माँ के ताने देवर जी के उलाहनों के बीच!
पति की नोंक-झोंक से तमतमा जाती मेरी माँ।

मन को ठेस लगे तो छुपके अकेले में रोती है!
हाथ से छूटे आईने सी बिखरी बिखरी मेरी माँ।

बिखरी हुई हर किंच को चुन चुन कर बीनती,
गाँव या शहर की प्रत्येक ममत्व भरी मेरी माँ।

घर की लक्ष्मी प्रकृति तो कोई इसे माया कहता है!
सातों दिन बारह माह तक लॉक डाउन में रहती मेरी माँ।

Sunday, May 3, 2020

क्या यह जरूरी है?

Divyansu pathak (पंछी) on May 3, 2020 at 7:00
Your comment is awaiting moderation
लॉक डाउन के साथ शुरू हुई कोरोना के साथ जंग
हमको पहले एक माह के अंत में ही बीस साल पीछे धकेल कर ले गई।
देश के गाँव की आबादी मंहगाई के साथ अपने उत्पाद
(अनाज,दूध,सब्जियाँ, दालें,)
सस्ती क़ीमत पर बेचने को मजबूर हुए।
मुझे आश्चर्य तो दूध की क़ीमत को लेकर हुआ जो
25 रुपये प्रति लीटर के भाव स्थानीय दूधियों द्वारा ख़रीदा जा रहा था।
गेहूँ,सरसों,बगैरह भी और चक्की या मिल वाले स्टॉक करने में व्यस्त थे।
किराने से लेकर फलवाले तक 6 गुनी क़ीमत वसूल रहे थे।
जर्दा तंबाकू सिगरेट बगैरह के 15 से 20 गुना। हद है।
समाज में नए वर्ग भी देखे जो, स्वयं के लाभ से आगे कुछ नही सोचते।तो वहीं नशे की गिरफ़्त में बच्चों से लेकर युवा और हर उम्र के लोगों को तड़पते देखा।हद तो ये थी कि शराब की माँग को लेकर मोदी जी तक के लिए अनुरोध वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा किए गए।
देश किधर जा रहा है किसी को नहीं पता बस सब अपने फायदे की बात को ध्यान में रख कर निर्णय ले रहे हैं। जब मादक पदार्थों पर महीनेभर से रोक लगा रखी है तो अब क्या जरूरत है बैन हटाने की। शराब के ठेके खुलने से मुझे लगता है अपराधों में बढ़ोतरी होगी।
इसलिए शीर्ष को सोच समझकर ही फैसले लेने चाहिए। इस संकटकालीन स्थिति में तो बहुत ही सतर्कता के साथ।
:
🙏😊🙏

Tuesday, April 21, 2020

तेरे अनुबंध

वो ख़्वाब मख़मली जो देखे थे।

सपने अपने हुए क्या तेरे ?

अल्हड़ मस्त जवानी के जो,

वादे किए हुए क्या पूरे ?

कुछ चाहत तो 'पिता' कीए थे।

कुछ ख़्वाहिश 'माँ' के भी दिल की,

कुछ अरमां 'परिजन' रखते थे।

कुछ 'जज़्बे' सामाजिक बोलो!

ऋण चुकता कर दिए क्या तुमने ?

या हैं अनुबंध अधूरे तेरे!

तुम कहाँ खड़े हो?

हो हासिल में या युहीं पड़े हो!

'कल' से तुमने क्या सीखा है?

'आज' तुम्हे 'कल' सिखलायेगा।

क्या खोया क्या पाया तुमने?

या दिग्भ्रमित से ही उलझे हो।

कुछ तो सोचो!

कट्टरता के नशे में धुत्त

अंग्रेजियत के साथ

राजनीतिक अराजकता का

जो वातावरण बना है,

उसने स्वतंत्र भारत के,

सपनों को चूर-चूर कर दिया।

हम बात करते रहे विश्व बंधुत्व की,

बाँटते रहे ज्ञान गीता का।

उन्हें मौका मिला तो,हमारी मर्यादा को

तार-तार कर दिया।

वाह रे लोकशाही,ये कैसा?

लोकतंत्र! कौनसा मानव धर्म?
:
#विज्ञान_का_ताण्डव देख कर अभी लोगों की आँखें नही खुली शायद। इसलिए अभी भी #कट्टरता_के_नशे_में_धुत्त मूर्खों ने विष के बीज बो दिए। तुम्हें वक़्त तो माफ़ नहीं करेगा रही बात धार्मिकता की तो उस सत्ता का विनाश निश्चित हो जाता है जिसमें निर्दोष की हत्या की जाती है। अवध्य की हत्या तो सबसे बड़ा अनर्थ है। ये अनर्थ की आग लगाकर तुम शुकून से जी पाओ संभव नहीं। मैं उन तमाम ज्यादा पढ़े लिखे लोगों से यही कहूँगा कि---
शिक्षा के द्म्भ में ज़्यादा मग़रूर मत होइए आज के समाज को मर्यादा हीन करने में तुम्हारा ही हाथ है। चारो ओर आक्रमण ,प्रकृति को शत्रु बनाने में तुम्हारा हाथ है। जीवन को आक्रांत करने में भी आपका ही हाथ है। हाँ मैं भी इसका हिस्सा हूँ। किन्तु ये खत्म करने के लिए अब उठ खड़ा होना होगा। जी चुराने से नही अब काम चलता।
मत भूलना--- राम,कृष्ण भगतसिंह,चंद्रशेखर आजाद, लक्ष्मी बाई,महाराणा प्रताप का अंश इस देश की मिट्टी में है। इसी मिट्टी का अन्न खाकर बड़े हुए हैं। उनका अंश हमारे भीतर भी व्याप्त है। शीर्ष इस आग को रोकने के लिए कड़े क़दम उठाये अन्यथा भुगतान करने के लिए तैयार रहे।
मेरे देश के युवा जाग्रत हो गए है। निरापराध साधुओं की हत्या जाया नही जाएगी।
जय श्री कृष्ण।
:
#पाठकपुराण के साथ #पंछी ।

पुनर्विचार ( आओ देश गढ़ें )

देश में हिंसात्मक गतिविधियों का बढ़ना चिंताजनक है।
अपराध,भ्रष्टाचार,दुराचार के बीज बढ़कर दरख़्त हो चुके हैं।
आजादी के बाद जिस भारत की कल्पना की थी।
मुझे तो नही लगता वह ऐसा होगा।
संविधान बना,क़ानून भी बने,
किन्तु न संविधान को व्यवहार में उतारा,
न ही क़ानून को।
धर्मनिरपेक्षता बस बयानबाजी तक ही सीमित रही।
जातिवाद, धार्मिक उन्माद, और कट्टरता बढ़ती गई।
हम भले ही कहते फिरते हों कि हम नही मानते जातिवाद,
हम सभी धर्मों का समान सम्मान करते है।
मुझे तो लगता है यह सब बातें स्कूल तक ही सीमित रह गईं।
:
धर्म निरपेक्षता और जातिवाद न मानने वालों की पोल तो इसी बात से खुल जाती है कि ...
देश मे प्रत्येक जाति का या समाज का अपना एक संगठन है।
अब जो लोग अपनी जाति को ही बस समाज मानते हों उनके लिए "जातिवाद" को नकारने की हिम्मत कहाँ से आएगी।
क्या ऐसा नही है--- है तो जाती वाद कैसे ख़त्म करोगे?
:
धर्म निरपेक्षता- विचार अच्छा है किंतु है कहाँ ? सबके अपने अखाड़े अपने संघटन अपने क़ानून। संविधान तो दूर की बात है। साथ में रहने वाले लोग भी आपस में आत्मसात करते नही दिखते।
कैसे साबित करोगे सेक्युलरटी ? नही करोगे तो ये सब चलता रहेगा जैसे पिछले 72 सालों से चलता आ रहा है।
:
अधिकारों की तो बात छाती पीट पीट करते है लोग पर जब कर्तव्यों की बात आती है तो आँखे नटेरने लगते है।
कैसे कर पाओगे न्याय?
:
ये तो शुक्र है उन संस्कारों का जो हमारी संस्कृति ने हमें दिये।
और उन भामाशाहों का जो इस बिकट परिस्थिति में देवता बनकर सामने आए अन्यथा अब तक तो निपट लिए होते। बस यह अच्छाई ही हमारे लिए उम्मीद की किरण है। इसी की बदौलत देश को बचाया जा सकता है।
मेरा उन सभी प्रबुद्ध जनों और देवतुल्य आत्माओं से निवेदन है कि राष्ट्र को नई दिशा देने के लिए पुनर्विचार करें और एक बार सम्पूर्ण भारत को भारत वर्ष बनाने में मदद करें।
:
कृष्ण बन कर इस युद्ध में सारथी की भूमिका निभाएं और देश का बंटाधार होने से बचायें। अन्यथा कई तरह के संघर्ष मुहबाएँ खड़े है।
:
#पाठकपुराण  #कट्टरता_के_नशे_में_धुत्त 
#पंछी #पाठक  #हरे_कृष्ण 
#शुभरात्रि ।

Friday, April 17, 2020

ये इश्क़ - 02

#येरंगचाहतोंके  साथ हम बात कर रहे थे #इश्क़ की पिछली कड़ी में आप पढ़ ही चुके है। "इश्क़ की गली विच नो एंट्री"
सुनने के बाद भी आप और जानना चाहते है तो सुनो...
ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़.....
😂😂😂
ये इश्क़ डंक बिछुआ का लगजाये हो रामा तो
ना दवा लगे ना दुआ लगे रोगी सिर पटक पटक मर जाये"
😂😂सावधान रहना ही ठीक है । और इश्क़ में हम तुम्हें क्या बतायें किस क़दर चोट खाये हुए है। भाई बताने लायक रहता ही कहाँ है #इश्क़िया वह तो बस उ ला ला उ ला ला उ ला ला करने लायक ही बच पाता है।😝😝😂😂 इसके अलावा और क्या करे बिचारा...
ये इश्क़ है बड़ी गज्जब की चीज़ क़सम से जब भी किसी को होता है पानी वाला डांस कराके ही छोड़ता है। अच्छा एक बात और इश्क़ में एक पल की भी जुदाई लगती है सौ साल।
तेरी क़सम तेरे सिर की क़सम मेरा होगया बड़ा बुरा हाल। मतलब ये है कि इश्क़ बुद्धि भी खिसका देता है।😝😂😂😂
अब बस इतना ही काफ़ी है ... #1_मई_तक_लॉकडाउन_के_साथ_राजस्थान_सतर्क_है  आप भी हो जाओ और इश्क़ विश्क के चक्कर में मत पड़ो। #पाठकपुराण  का तो युहीं मस्ती करने का मूड रहता है।इसलिए तो ....
"दिल दिवाना कहता है कि प्यार कर"
जाना नही है अपनी छत से ही आँखे चार कर।
गया तो तेरी ही छतरी बन जाएगी।😂😂😝😝🙏🙏💕🍁🍁😂🍁💕🙏😝😝😂😂😂😂🙏💕💕🍁🍁
सलामत रहें दुआ है मेरी...
फिर मिलेंगे...😊👍💐💐💐💐

ये इश्क़ - 01

#येरंगचाहतोंके साथ आज हम बात करते है इश्क़ की ।
ये इश्क़ बड़ा बेदर्दी है रात दिन सताए। बेदर्दी के साथ निगोड़ा भी और तो और कमीना भी है।
अनुभवियों के अनुभव बताते हैं कि यह कभी भी किसी को ख़ुश नही रहने देता। वह सलाह भी देते है -- इश्क़ कभी करियो ना मरगये कितने आशिक़ इसमें तू भी मरियो ना।"
😂😝🍁🙏💕💕💕🙏🍁
इश्क़ का शुरुआती दौर शानदार होता है ---- मासूका से मिलते ही कह देते है---
ना शहद न सीरा न शक्कर--😂😂😝😝
"तेरे इश्क़ से मीठा कुछ भी नही"
धीरे धीरे आगे बढ़ते है और
इश्क़ ख़ुदाई रव ने बनाई, और फिर कुछ दिन ठीक ठाक चलने के बाद--😂😂😝😝😝😂
रब्बा इश्क़ न होबे रब्बा इश्क़ न होबे। ये समझिए कि इश्क़ में कभी स्थिरता नही देखी गई जैसे ही कड़ाई से पेश आये इश्क़वाज बिलबिलाने लगते हैं।😝😝😂😂😂😂🍁🙏💕💕💕🙏😝😂😂😂😂
 इश्क़ हँसाता है इश्क़ रुलाता है  तक पहुँचने में देर नही लगती।😝😂😂
आपको बड़ा मज़ा आ रहा है...
अंत में फिर उनको एक मेरे जैसा सलाह दे देता है....

"इश्क़ की गली विच नो एंट्री"
#शुभसंध्या साथियो आनंद लें इश्क़ से दूर रहें याद रखें #1_मई_तक_लॉकडाउन_के_साथ_राजस्थान_सतर्क_है आप भी हो जाओ।घर पर भी "प्रेम" से रहिये अन्यथा लेने के देने पड़ सकते हैं।
:
आगे का ज्ञान अगली पोस्ट में दिया जाएगा।
बने रहिये #पाठकपुराण के साथ ।
जय श्री कृष्ण 😝😂😂😝🙏💕💕🍁🍁🍁🍫🍹🍹☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕👏👏👏🙏💕💕💕🍁💕💕💕🙏🙏
      

Thursday, April 16, 2020

दिल कहता है

तेरी पायल की रुनझुन में,शब्द हमारे मौन हुए।
घायल होकर तरकश टूटा,तीर हमारे गौंण हुए।
कत्थई आँखों की कटार से,तुम जीते हम हारे!
एकलव्य बन गए हम उस क्षण,
तुम जैसे ऋषिवर द्रोण हुए।

तुम जीते हम हारे

तेरी पायल की रुनझुन में,शब्द हमारे मौन हुए।
घायल होकर तरकश टूटा,तीर हमारे गौंण हुए।
कत्थई आँखों की कटार से,तुम जीते हम हारे!
दिल के दर्पण में देखा तो,भाव प्रेम के प्रौण हुए।
टुकड़े बीन रहा हूँ,घायल हाथों से अपने।
बे-दम ख़्वाब ख़्वाहिशें,पलकों के सपने।
सूख चुकी मन की सतहें,बनती रेगिस्तान!
रोपित नव पौधों का,दिखता नही निशान।

रोपित नव पोधों को तुम,अब तो देदो प्राण।
अँगड़ाई ले मौसम बदलो और लौटाओ जान।
नभ से अमृत बन बरसो तुम,रिमझिम प्रेमभरी।
बंजर में फिर फूल खिलाकर लौटा दो मुस्कान।
#पाठकपुराण के साथ #येरंगचाहतोंके 💕

प्रेमालय में हम दोनों

पलकों में कुछ ख़्वाब सजाकर।
कुछ उम्मीदों के पँख लगाकर।
हम तुम नदी किनारे घूम रहे हैं!
एक दूजे को जान बनाकर।
प्रेमालय में हम दोनों मिलकर,
खुशियों का माथा चूम रहे है।

गुण वाचक ग्राही

एहसासों की सरगम बजती,
फ़िर भी आहें भरते हैं।
कुछ लम्हो में जी लेते हैं,
बस पल भर में मरते है।
छुईमुई सी शर्माती हूँ जब,
छूने की कोशिश करते हैं।
सौंदर्य देखती दुनिया सारी,
शब्द,रूप,रस,गंधो में!
पर हम गुण वाचक ग्राही हैं,
बस बातें दिल की करते हैं।

Sunday, April 5, 2020

मेरा अख़बार

लोकतंत्र के अभियानों की हलचल लेकर आता है।
जन-जन का उन्नायक बनकर मन से जो जुड़ जाता है।
संवाद सेतु का हेतु बनकर जो निर्भीक लिखे हरपल!
विचार क्रांति का वाहक बनकर सत्य हमें दिखलाता है।

अपराध निवारण करने में सहयोग सदा जो करता है।
कठिन घड़ी में प्रहरी बनकर ये सबको अवगत करता है।
सैनिक सा अख़बार मेरा यह चौकस रहता है हरदम!
साधक बनकर यह पाठक का,उत्साह दिलों में भरता है।

परिवर्तन का ज़रिया बनता!नहीं दिखावा करता है।
जीवन के हर पहलू को सामने सबके रखता है।
गाँव-शहर को जोड़ रहा जो शब्दों की पगडण्डी से!
नित नूतन संस्कारों का, यह बीजारोपण करता है।
शब्दों की लहरों में, सच्चाई जिसके बहती है।
होता नही दिखावा कोई,सिर्फ़ हक़ीक़त होती है।

दुनियां को बदला है जिसने,इतिहास गवाही देता है।
संस्कार का दीप जलाकर,जो अंधकार को खोता है।

जाति धर्म का भेद न जाने सबकी बातें सुनता है।
अख़बार मशीहों सा बनकर के,सबकी पीड़ा हरता है।

अद्भुद शक्ति समाहित इसमें ये विचार का वाहक है।
सामाजिकता का पोषक और लोकतंत्र का धावक है।

दुनिया भर की हलचल लिखता लिखता मन की पीड़ा को।
ये ऐसा जन सेवक है जो हर क्षण तत्पर रहता है।
:

Saturday, March 28, 2020

ज़िन्दगी का तराना

नमस्कार!
टीम 'गुलिस्ताँ' सुनाती हैआपको-
"ज़िन्दगी का तराना"
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
"ज़िन्दगी का तराना,जब भी हो गुनगुनाना!

मेहनत और हिम्मत के गीतों से सजाना।

मुमकिन नहीं हैं,आसाँ भी न इतनीं कि-

मंज़िलें मस्तमौला,मुश्क़िल है निभाना।

कोशिश के तीरों को तरकश में रखना।

फिर धैर्य और साहस से लक्ष्य मनाना।

जीवन के सागर में भँवर जब मिलेंगें। 

मिलेगा किनारा- कि हौंसलों को जगाना।

ज़िन्दगी का फ़साना कभी उदास कभी थोड़ा शायराना।

कभी तैरना है डूब कर इसमें,तो कभी किनारा है बनाना।

मुश्किलें बेइंतेहा आती हैं मंज़िल के हसीं रास्तों में-

कभी यहाँ खुशी की मरम्मत कि ग़म को है छुपाना।

कोशिश करो तुम हर रोज़ कुछ नया सीखने की,

कि अगले दिन तुमको पुराना कर देगा नया ज़माना।

ज़िन्दगी का फलसफा तो बारिश की बूंदों से सीखो प्यारे!

यूँ अम्बर से ज़मीन पे गिरना और मिट्टी में मिल जाना।

कुछ औऱ भी मकसद हो ज़िन्दगी का तो कुछ बात है!

वरना सब इनके पीछे हैं- कपड़ा,मकान औऱ आबोदाना।

हकीकत में रहकर ही सपनों को सजाना।

मंज़िल के लिए ज़रूरी है कदम बढ़ाना।

ज़िन्दगी लेगी इम्तेहान हर एक मोड़ पर,

मग़र ऐसे हालातों में तुम न घबराना।

किनारा कर लेना हर निराशावादी सोच से,

आशाओं की किरणों से रास्तों को सजाना।

मुश्किल है माना यह सफ़र क़ामयाबी का-

कोशिश के दम पर तुम अपना मुक़ाम पाना।

ज़िंदगी के हर दौर में मिला इक नज़राना 

करता रहा कोशिश बेइंतिहा,बुनता गया फसाना।

अरमान था मुश्किलों को चीरकर,बुलंदियों को छू जाऊँ!

काँटो भरी राह में भी,वक्त ने सिखाया मुस्कुराना।

मंज़िल की राह में भटका मैं,जैसे हो बेगाना सफ़र!

शायद चाहता था ख़ुदा मुझे इस तरीके से आज़माना।
 
दौर ऐसा भी आया कि,अपनों ने किनारा कर लिया!

मग़र मिली सफलता,कि जीवन की गहराइयों को मैंने जाना।।

जब भी नए सिरे से जिन्दगी को हो सँवारना!

मुश्किल होगी मगर ऐ इंसान!तू कभी न हारना।

कोशिश सभी करते हैं अपने हालात बदलने की-

पर कैसे मुमकिन है सब मुसीबतों से लड़ जाना!

मुश्किल है किस्मत एक रात में बदल पाए-

कि मझधार में फँसे को भी संभव,किनारे का मिल जाना।

सपनें पूरे करने के लिए ज़रूरी,उम्मीदों की अग्नि भी!

हो लगन सच्ची तो मुमकिन है गगन का क्षितिज छू जाना।

ज़िन्दगी का फ़साना,जब हो बतलाना ,

थाम लो धड़कनें और फ़िर जुट जाना!

कोशिश अगर तुमने की टूटकर तो,

मुश्किल कहाँ!कोई किनारा छूट पाना।

तय करनी अगर,तुमको मंज़िल सुनो फिर!

चलते चलते सफ़ऱ में,न कभी डगमगाना।

रास्ते में कईं तुमको पत्थर मिलेंगे-

लाँघना तुम उन्हें,लेकिन ठोकर न खाना।

ज़िन्दगी का तराना,जब भी हो गुनगुनाना!

मेहनत और हिम्मत के गीतों से सजाना।"
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
कविवृन्द- shelly jaggi
Divyanshu pathak
dheerika sharma
Vishal vaid
Shaina ansari
Pragati k.shrivastava
 
🌹हम लिखते रहेंगें🌹
#collabwithकोराकाग़ज़
#कोराकाग़ज़
#हमलिखतेरहेंगे
#गुलिस्ताँ
#yqdidi
#yqbaba       

Friday, March 20, 2020

खो बैठे

व्यवहारिकता भूल गए सब
सहनशक्ति को खो बैठे !
पर्व और अब उत्सव सारे
अपने मूल रूप को खो बैठे !

होली के हुड़दंग मिटाकर
गीत गोठ सब खो बैठे !
प्यार भरे दिल सूख गए सब
और अपनापन खो बैठे !

भाव मनभरे भूल गए सब
जीवन रस को खो बैठे !
यंत्र बने फ़िरते दिखते सब
मूल चेतना खो बैठे !

श्याम रंग में जो मीरा ने चूनर रंगी

मैं रंग दूं तुम्हें इश्क के गुलाल से
तेरे गोरे गालों को रंग दूं लाल से
आओ जरा मेरे साथ तुम खेलो
मैं रंग डालूं प्यार भरे एहसास से

मैं अपनेपन का रंग मिलाकर
अब ज़ज़्बातों को एक करें हम
जो शिक़वे गिले दिलों में पनपे
अब आओ मन से दूर करें हम

होकर मतवाले हम झूमें प्यार से
आओ रंग डालूं मैं तुमको
प्यार भरे एहसास से ।
छुप करके मत बैठे गोरी
मत बन कर बैठे तू भोरी
तन मन मेरे रंग में रंगजा
होली में तू मेरी बन जा।
मार कोई पिचकारी छोरी
मुझको अपने प्रेम से रंगजा ।
:
ऐसी मारी उसने पिचकारी
मैं अपना दिल गई हारी !
दईया रे दईया रंग डारी
मैं पूरी ही रंग डारी !
मैं तो जोगन बन बैठी हूँ
सब सुध बुध अपनी हारी !
प्यारी सी चितवन श्याम जू
मैं हो गई हूँ बलिहारी !
:

तन पर रंग लगाया तुमने
मन मेरा रंगीन किया
आँखों को मेरी इक उम्दा
उड़ता उड़ता ख़्वाब दिया !
:
आज धूल माटी से खेली खेली कीच ग़ुलाल से
कल लेकर के यारा आना तुम रंग क़माल के ।
:
लाल रंग बलिदानी लाना हरा रंग खुशहाली का
श्वेत रंग पावनता तेरी,पीला भक्ति उदारता !
:
नीला गहराई है मन की काला शक्ति प्रधानता
प्रेम रंग में होकर के गुलाबी
जीवन की अभिलाषाओं को
रंग बैंगनी मानना ।
:

भावों की मुट्ठी।

 हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...