Friday, January 31, 2020

प्रेम क्या है ?

सुनो
मैं ईश्वर को प्रेम लिखता हूँ
क्योंकि वह भाव है देने का
उसी तरह जीवन दिया है 
बिना कुछ लिए दिया है ना !
इसे स्वीकारते हो या नही
हाँ तो कुछ भी छीना नही
अब तुम्हें प्रेम से ही इसे
विस्तार देना है !
:
कुछ को विशेष मानकर
स्वयं जोड़ लेता है आशाएं
अपने लिये कुछ उम्मीदें भी
महत्वकांक्षाएं लेकर पड़ता है
बंधन में और दोष प्रेम पर रख
स्वयं को निर्दोष साबित करता है !
प्रेम प्रदीप्ति हृदय में हो तो
क्या भूख क्या प्यास ?
जठराग्नि को बल ही नही
मधुरता के आभास से तृप्त
स्वयं की सुध रहती ही कब है !
:
प्रेम कभी रंग रूप अमीरी गरीबी
से कोई ताल्लुक़ नही रखता
लैला अपनी सांवली रंगत से भी
मजनूं को दिवाना बना दी !
हीर ने तोड़ी ग़रीबी की लकीरें
बदल दी अमीरी की तक़दीरें !
ढोला मारू लाखा बंजारा
शिरीन ख़ुशरों जैसे प्रमाण कम है क्या ?
:
आज भी कहीं न कहीं कुछ ऐसे किस्से सुनने को अचानक मिल जाते है और हम बरबस कह उठते है---
"प्रेम" अभी भी इंसानी बस्ती में बाक़ी है ।
☕💕💕🙏

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