मैं मोहब्बत की गलियों में फ़िरता रहा
वो शराफ़त से नज़रें चुराते रहे!
देख उनको हुए हम तो गुमसुम खड़े
वो फ़िर भी बहुत मुस्कुराते रहे !
दिल की गहराइयों में उतर सी गई
वो मुस्कान उस वक़्त महबूब की
लाल होठों की शोख़ी जलाती रही
फ़िर भी नज़रों से नज़रें मिलाते रहे !
धड़कनो की रवानी का क्या हम कहें
बेसबब बे मुरब्बत सी होने लगीं
वस मेरा ना रहा छाई बेचैनियां
वो अदाओं से फ़िर भी बनाते रहे !
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