शब्द रूप रस गंध और स्पर्श
अब इनका प्रभाव चरम पर है !
चेतना का स्तर अहंकार ग्रस्त
अब मन में तनाव चरम पर है !
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मुझे कुछ भी पता नही अपने ठौर का
मैं युवा हूँ भई इस आज के दौर का !
देश दुनिया गीत मीत संगीत सब है
जब तक कि पत्थर फ़िके ना औऱ का !
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मैं स्वयं से इतर कुछ देख नही पाता हूँ
तर्क वितर्क की उलझनों में फंस जाता हूँ !
इनसे निकलने का रास्ता नहीं मिलता
मैं स्वयं ही स्वयं से कुतर्क कर जाता हूँ !!
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मेरे जीवन का लक्ष्य प्रतिस्पर्धा बन गया है
मैं सिलेबस के भरोसे बड़ा जोर आजमाता हूँ
जब बात बन आती है कोई सामाजिक मुद्दे की
मैं दौड़कर इंटरनेट की शरण में आता हूँ !
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बात क्या है क्यों है कैसे विचार करूँ
मैं भी उसी भीड़ में मिल जाता हूँ !
आज के दौर में जकड़ा हुआ मैं
बस आज़ादी आज़ादी चिल्लाता हूँ !!
:
अकर्मण्यता के शिकार हुए हम
वाद विवाद तक सिमटकर रह गए !
संस्कृति संस्कार सारे अश्क़ बनकर बह गए
अब तो बस यही है कि हम वफ़ा करके भी तन्हा रह गए !
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