मौसम का मिज़ाज कुछ बदला सा है
जो कुहासा हुआ आज उजला सा है
चहकते हुए इन परिंदों का स्वर
मन्नतों में उठी उन दुआओं सा है !
शर्द रातों में जो बात ठिठुर सी गई
दिन सम्हलते हुए उन ख़यालों सा है
जो मोहब्बत में होकर थी निष्ठुर बनी
शोम्य होते हुए कुछ सवालों सा है ।
मैं दिवाना उसे ढूंढता ही रहा
आज पाया कि वो तो जमाने में है
जिसको देखा मुझे वो तुझी सा दिखा
मुझको लगता है "पाठक" मयखाने में है !
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