Thursday, January 30, 2020

मौसम का मिज़ाज

मौसम का मिज़ाज कुछ बदला सा है
जो कुहासा हुआ आज उजला सा है
चहकते हुए इन परिंदों का स्वर
मन्नतों में उठी उन दुआओं सा है !

शर्द रातों में जो बात ठिठुर सी गई
दिन सम्हलते हुए उन ख़यालों सा है
जो मोहब्बत में होकर थी निष्ठुर बनी
शोम्य होते हुए कुछ सवालों सा है ।

मैं दिवाना उसे ढूंढता ही रहा
आज पाया कि वो तो जमाने में है
जिसको देखा मुझे वो तुझी सा दिखा
मुझको लगता है "पाठक" मयखाने में है !

No comments:

Post a Comment

भावों की मुट्ठी।

 हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...