मैं कविता मोहब्बत की लिखते हुए
बस तुम्हें सोचकर गुनगुनाने लगा
मैं काज़ल दवात-ए-मुरव्वत लिए
तेरी पलकों में पंक्ति सजाने लगा !
:
हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...
No comments:
Post a Comment