सूने आकाश को जब भी देखा प्रिये
एक सितारा मुझे झिलमिलाता दिखा
था खड़ा मुद्दतों से प्रतीक्षा में वो
जाने कितना कोई उसको प्यारा लगा !
प्रेम की तुम परीक्षा न लेना प्रिये
हर हाल में पार कर जाऊंगा !
तुम अंधेरे में शम्मा जलाओगी तो
मैं पतंगे के मानिंद जल जाऊंगा !
जीवन प्रेम करने के लिए ही कम है फ़िर क्यों हम नफ़रतों को चुनते हैं !
हर खुशी ग़म में साथ रहने की कोशिश के पुलिंदे बुनते हैं !
साथ बैठकर सुलझा लें अपनी मुश्किलें धीरे धीरे से...
क्या पता है इसलिए हम मोहब्बत के धागे बुनते हैं !
तमाम ख़्वाहिशें जो हम करते हैं ढह जाती हैं
फ़िर किस तरह अपनी धड़कन की सुनते हैं !
कोई पता नही ?
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