फ़ेरकर आंख तुम रूठ बैठी हो यूं
छिनगई मेरी दुनियां की रंगीनियां
नफ़रतों की हवाएं हैं बहने लगी
बढ़ गयी बादलों में भी वीरानियाँ !
देख कर बादलों की ये वीरानियाँ
शाम तन्हाई में दामन भिगोने लगी
ना सितारे दिखे चाँद भी जा छुपा
रात आकर के आँगन में रोने लगी !
रातरानी उगाई थी गमलों में जो
आज घबराई घबराई मुझको लगी
इन अंधेरो का जबसे है मेला लगा
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