अपने विचारों में कृष्ण को लिपटते देखा है
मैंने अपने भावों में कृष्ण को सिमटते देखा है !
होठों पे छाई मुस्कुराहट तो कभी
जिह्वा पे आई मिठास के रूप में !
"राधा" का विचार मन में जब भी आता है
मन का कुमलाया कमल विकसित हो जाता है !
पंखुड़ियों को पल्लवित होते देखता हूँ
कृष्ण को बदलता देख कमल के रूप में !
हृदय सरोवर के स्थिर जल में
कंकर मार कर देखता हूँ जब भी
लहरें बलखाती "राधा" बन जाती हैं
कृष्ण तल में दिखते कंकर के रूप में !
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