Friday, January 31, 2020

प्रेम बुद्धी की पकड़ से बाहर की चीज है !

जीवन बहुत सारे घटकों से
मिलकर ही पूर्ण होता है !
जैसे हवा पानी अग्नि
आकाश पृथ्वी होता है ना !
इन्हीं सारी चीजों को हम
धीरे-धीरे बढ़ाते हैं !
आवश्यकता के अनुसार
धीरे-धीरे खर्च भी करते हैं !
मन बुद्धि और आत्मा
इनके विस्तार के लिए भी
कुछ खास इनमें होता है !
मन में भावनाएं सकारात्मक,
नकारात्मक भी !
बुद्धि में बोध समझदारी,
यह कहा जाए कि "जागरूकता"
"आत्मा" प्रेम के स्वरूप को
समाहित किए होता है !
इसलिए - प्रेम आत्मा का विषय है -
हम इसे मन और बुद्धि से
जोड़कर समझ नहीं पाते !

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