Thursday, January 30, 2020

तुम्हारा प्यार मेरी चेतना

अंतर्मन के स्पंदन में
जब प्रेम प्रस्फुटित होता है
इक सुंदरतम वातावरण नया
उस वक़्त हृदय में होता है !
:
जब कल कल करता परम् द्रव्य
रग रग में प्रवाहित होता है !
मन के कोने कोने में
हर भाव सात्विक बीज यहां
होले से अंकुरित होता है !
:
तुम मेरी आत्मा हो
तुम्हारा प्यार मेरी चेतना 
अपनी आत्मा को चोट देकर
सुख प्राप्ति की कल्पना मूर्खता है !
वैसे भी बिना चेतना के
कोई जीवन नही होता !
:
सिंचित कर विश्वास आस से
बाढ़ लगा कर हर प्रयास से
जब पौधा बढ़कर पारिजात का
कल्पबृक्ष सा होता है !
तब घनी छांव में बैठ पथिक
नफ़रत की जलन मिटाता है
स्वयं समर्पित हो अभिन्न वह
अपने ही इष्ट सा होता है !

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