Saturday, February 1, 2020

प्रेम पर मेरा विचार

शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है
प्रेम प्रेम न रहकर त्याग समर्पण हो गया है!
मोह, ममता, अशक्ति, प्रीति सबकुछ एकजैसे
ऐसा लगता है इन्हीं में प्रेम का तर्पण हो गया है !
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प्रेम.......
सतयुग में हरिश्चन्द्र का बच्चे और पत्नी सहित बिक जाना ।
पता है प्रेम क्या है ?
प्रेम था इसलिए न पत्नी ने सवाल किए न बच्चे ने ।
तुम जो निर्णय लो स्वीकार है
मेरी दृष्टि में यही प्रेम पारावार है ।
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त्रेतायुग में वनवास जाना कोई विरोध नही,सीता का चोरी होना रावण वध राजतिलक
फ़िर से त्याग और पलटकर न पूछना क्यों किया ऐसा ?
हां मेरी नज़र में यही प्रेम अपार है ।
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द्वापरयुग की हठखेलियों की बड़ी बात होती है।
राधा और कृष्ण की बड़ी बिसात होती है ।
प्रेम था कभी सोचा
वंशी के सहारे उम्र गुजार देना मेरी दृष्टि में प्रेम बलिहार है ।
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कलयुग में भी मीराबाई अच्छा पन्ना का अपने बच्चे को बनबीर के हाथों कटवा लेना 
प्रेम नही त्याग था किन्तु "उदय" को बड़ा कर गद्दी पे बिठा देना प्रेम की पराकाष्ठा !
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प्रेम पर बातें करते हैं पर यह सार्थक तब होगा जब हम अपने स्वरूप को ठीक से समझने लगें ।
भौतिक और अभौतिक दोनों का संयोजन जीवन बनाता है ।
मोह ममता अशक्ति राग द्वेष प्रीति ये सारी चीजें हमें बांधती है एक सूत्र में जोड़े रखती है।
किसी से जुड़ते ही जरूरतें बढ़ती है आप अकेले रहते हो कोई दो मित्र और आपके पास आ जाएं तो जरूरत बढ़ेगी ।
भूख भी और उन्हीं की पूर्ति में उम्रभर लगे रहना ।
"प्रेम" की अनुभूति कैसे हो जाएगी ?
यही नियम "ईश्वर" पर भी लागू होता है ।
भौतिकता से परे की वस्तु भौतिकता में प्राप्त होना सम्भव है क्या ?
मिठाई की दुकान पर जूते मांगों भई मिल तो जाएंगे पर 😀😀😀😂😁😁😀😀समझदार हो !
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नास्तिक फट से कह देते है ईश्वर नही है है तो बताओ !
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😁😁😁😂😁😀😀😁
मेरा एक मित्र ऐसे ही बोलता था एकबार मैंने "जमालघोटा" प्रयोग कर दिया ....एक दिन में मान गया कि ईश्वर होता है ।
😀😁😁😀😂😂🙏🙏☕☕☕☕🐦☕🙏😂😀😀
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#पंछी
#पाठक
#हरे कृष्ण
#शुभसंध्या मित्रो.............
आनंद लीजिये मेरा किसी को आहत करने का कोई मन नही है फिर भी अगर होता है तो स्वागत है स्वागत है स्वागत है ...........😊

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