Saturday, February 29, 2020

मेरा धौलपुर कुछ ख़ास

21 फ़रबरी 1864 
स्वामी दयानंद सरस्वती अपनी शिक्षा संपन्न कर गुरु विरजानंद जी के मथुरा स्थित आश्रम से विदा होकर "सत्य विद्या" का प्रचार प्रसार करने के लिए पहली बार बाहर निकले थे वह आगरा बिना रुके ही धौलपुर आये और प्रसिद्ध शिवजी के चौपड़ा मंदिर पर आकर प्रथम उद्बोधन दिया ।
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यह अपने आप में एक अनोखी घटना थी कि लोगों के सामने भविष्य का एक असाधारण इंसान खड़ा था किन्तु ये धौलपुर वाले ना ग़ज़ब हैं ।
स्वामीजी को बिल्कुल भी गम्भीरतापूर्वक नही लिया और मज़ाक़ बना दिया इसी कारण क्रुद्ध होकर वह कह गए कि #धौलपुर" में तो धूल ही धूल है और चले गए आर्यसमाज की स्थापना की और मृत्युपर्यन्त तक धौलपुर लौटकर नही आये ।
😊
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ये धौलपुर वाले भी क़माल हैं 1947 में पूरा देश आज़ादी का जश्न मना रहा था और यहां के राजा उदयभान सिंह अपना स्वतंत्र राज्य चलाने के चक्कर में थे अलग रियासत के रूप में किन्तु धौलपुर की जनता अब भी ग़ज़ब है बैसे ही तब भी अजब थी उनके दिलों में भी आज़ादी का शोर चरम पर था इसलिए अपने राजा का ही विद्रोह कर #तिरंगा लहरा दिया ।
इतिहास में यह दिन देश के आखिरी सैनिक विद्रोह के रूप में अंकित हो गया ।
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22 फ़रबरी 1948 को तीसरा सैनिक विद्रोह धौलपुर में हुआ
1946 मुम्बई में दूसरा हुआ
1857 में पहला सैनिक विद्रोह हुआ जिसे सब जानते हैं ।
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देश का यह आख़री सैनिक विद्रोह अभी तक इतिहास के अंदर छुपा हुआ था जो इस बार निकल आया और राजस्थान GK का एक शानदार प्रश्न बन गया है ।
आपको यह जानकारी कैसी लगी मुझे जरूर बताएं आपसे फिर मुलाक़ात होगी इसी के साथ नमस्कार मित्रो भाई बहनों और ...😁समझ ही गए होंगे👻👻🍫🍁🍁😁😁😁जाते जाते एक बात और -----
यह सैनिक विद्रोह तीन दिन चला और सरदार वल्लभ भाई पटेल के हस्तक्षेप से सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया उसके बाद उन लोगों पर कोर्टमार्शल की कार्यवाही हुई और धौलपुर रियासत राजस्थान में विलय हो गई ....

भाव

भक्ति में शबरी हो जाना वात्सल्य में सूर
प्रेम बाबरी मीरा बनकर सबकुछ जाना भूल
राधा का अनुराग अनूठा विरह सहित अनुकूल
मन मंदिर तन तीर्थ बनाकर जाना ईश्वर मूल !
कविताएं कुण्ठित होती तो क्या मन के भाव दिखाई देते ?
पढ़कर सुनकर पाठक श्रोता फ़िर न ऐसे मुग्ध हो जाता !
अगर कवि पूर्वाग्रह करता तो क्या कोई ग्रंथ बनाता ?
इतिहासों के अमिट फ़लक पर फ़िर ना वह अंकित हो पाता !

साथिया

दोस्ती और इश्क़ का शानदार आगाज़ है 
ये तो तमाम रिश्तों की जानदार आवाज़ है !
"साथिया" महज़ एक जज़्बाती शब्द ही नहीं
रूह में वफ़ाओं को शामिल कर लेने का रियाज़ है !

प्यार नही होता

बैसे मुझे कभी किसी से प्यार नही होता
पर कुछ चेहरे हैं जो दिल को बहुत भाते हैं !
मैं कभी उनसे मिला नही मिलना भी मुश्किल है
पर जाने क्यों उनके ख़्याल मन में बहुत आते हैं !

मैं चाहता हूँ उनके बारे में जानलूँ सब कुछ
जो अजनबी होकर भी क़रीब आते हैं
बातें करूँ कुछ अपनी कहूँ कुछ उनकी सुनूँ
जाने क्यों वो मेरी रूह से जुड़ जाते हैं !

चार क़दम

सफ़ऱ में मुनासिब सुकूँ कभी होता है क्या ?
ज़िंदगी का हो या जिंदगानी का !
चार क़दम चल कर थक जाते है हमराही जब
जिंदादिली से कुछ होता है क्या ?
सुब्ह की मुलाकात भी ग़नीमत है
तमाम उम्र हर कोई साथ चलता है क्या ?
जो ज़िस्म और ख़्वाहिश की ख़ातिर जी रहे वाइज
इन वाइजों से बुरा कोई होता है क्या ?
चहल कदमी कभी "पाठक" न करना चार क़दमों की
सफ़ऱ मंज़िल का तय करना है जिसे वह थककर सोता है क्या ?

पथिक

मैं अपने ख्वाबों को लेकर, दिन रात अंधेरे चलता हूं
सृष्टि में आते ही उसके, रथ का पहिया बनता हूं !
आसक्ति और इच्छाओं का, मैं आजीवन पथिक बना
अपने मन की पूरी करने, घर से रोज निकलता हूं !

इतिहास दोहराए जाएंगे

इतिहास हुए और जो युग बीते सबके आगे आएँगे
एकबार फ़िर काले पन्ने अब लिखवाए जाएँगे !

फ़िर से सारी कौम लड़ेंगी आपस में पागल होके
मज़हब की अग्नि में जलकर अब फ़िर मानव पछताएँगे !

क़लम करिश्मा तो करती है क्रान्तिवीर बनकर योद्धा
आज़ादी के लिए दिए जो लम्हें दोहराये जाएँगे !

आध्यात्म की ओर जाने से पूर्व

जीवन के दो आयाम है भौतिक एवं आध्यात्मिक यदि हम भौतिक रूप से पूरी तरह पुष्ट हैं विकसित हैं तो ही हमें आध्यात्मिक उन्नति का एहसास समझ आता है ।
और यदि नही है तो हम दौनों में उलझ कर रह जाते हैं !
"बुद्ध" जन्म से ही भौतिक उन्नति को देख चुके थे ।
इसलिए उन्होंने सबकुछ त्याग कर आध्यात्मिक मार्ग चुना और सफ़ल भी हुए ।
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इसलिए मैं आपसे भी यही उम्मीद करता हूँ कि आप प्रथम भौतिक उन्नति को प्राप्त करें उसके साथ ही आध्यात्मिक विकास के लिए अग्रसर हों ।
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आपके विचारों में मुझे भविष्य का "बुद्ध" नज़र आता है किञ्चित कहीं न कहीं वर्तमान की पीड़ा भी सताती है ।
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कैसे इस दौर में संत ही असंत बनकर जीवात्मा,परमात्मा, ज्ञान, वैराग्य , सभ्यता,संस्कृति, को तार तार कर देते हैं ।
कोई कृष्ण, कोई कबीर, कोई राधे, कोई शिव बनने के पाखण्ड करते है और बेटा उनका मूल उद्देश्य अध्यात्म के सहारे भौतिक उन्नति का सुख भोगना मात्र होता है ।
इन्ही के कारण हम अपने आपको अपमानित महसूस करते हैं ।
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बुद्धिमान हो जो कहना चाहता हूं समझ लोगे इसी आशा के साथ विदा लेता हूँ ।
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"भौतिक उन्नति के बाद ही आध्यात्मिक उन्नति संभव है 
यदि थोड़ी भी कमी रहती है तो यही आध्यात्म से हमें दूर कर पतन की ओर ले जाती है ।"
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यह मेरे अपने निजी विचार है आपको कहीं भी कोई आपत्ति हो तो बे जिझक कहना आपके साथ आपके पढ़ने वालों को भी कोई आपत्ति हो तो वो भी अपने विचार रख सकते हैं।
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ऋषि मुनियों की पुण्य धरा ये पावन और पुनीत है
भक्ति त्याग और प्रेम समर्पण शौर्य यहाँ अभिनीत है !
समरसता में गुथी हुई ये "सभ्यता" अनमोल सी
भारत माता के आँचल में अद्भुद शक्ति प्रणीत है !

महाशिवरात्रि

इन चरणों में फूल चढ़ाएं
दीप जलाएं आरती गाएं
जब भी तेरे दर पर आएं
हम मन वांछित फल पाएं
मेरे स्वामी अंतर्यामी
इतनी दया रखना शुभकारी
शिव शंकर नमामि शंकर !
💕😊 सृष्टि कल्याण के स्रोत भगवान शिव के विवाह दिवस #महाशिवरात्रि की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। 💕🌹🌺🌺🌹🌹🌹🌺🌺🌺
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हे शिव शंकर त्रिशूल धारी
हम हैं युगों से तेरे पुजारी
जीवन में कभी हम ना हारें
इतनी दया करना त्रिपुरारी
शिव शंकर नमामि शंकर !

तेरी जटा में गंगा विराजे
सर्पों की माला गले में साजे
हाथ में डम डम डमरू बाजे
तीनो लोक झुके तेरे आगे
तेरी महिमा अजब निराली
शिव शंकर नमामि शंकर !
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हमारे सनातन धर्म में देवों के देव महादेव की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि वही परम पुरुष हैं और प्रकृति के स्वामी।
भगवान शिव ही सूर्य हैं और उनकी जटाएं किरणों के रूप में संपूर्ण जगत को प्रकाशित करतीं हैं ।उन्हीं के मस्तक पर चन्द्र है और आकाश में नज़र आती गंगा भी ।
संध्याकाल में जब आप अकेले बैठे हो आसमान की तरफ देखिए 'sunset' आपको उनकी अनुभूति जरूर होगी वह संपूर्ण ब्रह्माण्ड में समाहित हैं ।
मैं जगत पिता भगवान शिव को प्रणाम करता हूं और
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया !
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् दुख भाग भवेत् !!
की कामना करता हूं ।
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महाशिवरात्रि मनाने के कारणों में से एक शानदार कारण मुझे स्वामी दयानंद सरस्वती का बोध दिवस याद आ गया ।
मित्रों मैंने सुना है और पढ़ा है कि स्वामी दयानंद सरस्वती के माता-पिता बहुत शानदार शिव भक्त थे हर साल की तरह इस वर्ष भी वह महाशिवरात्रि बड़े मनोयोग से मना रहे थे।
वह बड़े खुश थे कि इस बार उनका पुत्र "मूलशंकर" भी महाशिवरात्रि का व्रत एवं जागरण में उनके साथ है।
संध्या कालीन बेला में सभी ने घर के मंदिर में पूजा अर्चना की और रात्रि जागरण हेतु वहीं पर विश्राम करने लगे सभी लोग धर्म चर्चा में लगे हुए थे कुछ वक्त गुजरा और नींद आने लगी धीरे-धीरे करके सभी लोग सो गए लेकिन "मूलशंकर" को अभी भी नींद नहीं आ रही थी ।
वह तो शिवलिंग को एकाग्र होकर देख रहे थे तभी अचानक से एक चुहिया आई और शिवलिंग पर उछलकूद कर प्रसाद को खाने बिगाड़ने लगी ।
मूलशंकर यह देखकर अचंभित हो गए और विचार करने लगे कि पिताजी कहते हैं कि ये शिव सृष्टि के सञ्चालन कर्ता हैं किन्तु एक छोटी सी चुहिया को भगा नहीं सकते ये तो बड़ा अजीब है ।
अब उनके मन में एकसाथ कई प्रश्न उठने लगे ।
हम कैसे भगवान की पूजा करते हैं जो स्वयं एक चुहिया को नही भगा सकता ?
हमारी रक्षा कैसे करेगा ?
सोचते सोचते सुबह हो गई ।इस घटना ने उनके मन में ऐसी छाप छोड़ी जो उनके चिंतन का कारण बन गई ।
तभी परिवार ने मृत्यु भी देखी तो विरक्ति पैदा हो गई और वे घर छोड़कर चल दिये ।
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और इन घटनाओं ने उन्हें वैदिक ज्ञान की ओर अग्रसर कर दिया ।
वो मूर्ति पूजा और उस दौर के पाखण्ड का विरोध करने लगे ।तत्कालीन परिघटनाओं और बिडंबनाओ को देखा समझा और 'वेदों की ओर लौटो' यह वाक्य दिया ।
स्त्रीशिक्षा के स्वतंत्रता के मुद्दे को लेकर भी शानदार प्रयास किये ।
उन्होंने "सत्यार्थ प्रकाश" लिखा और #आर्यसमाज" की स्थापना कर भारतीय मनीषियों में एक और महर्षि दयानंद सरस्वती के रूप में प्रतिष्ठित हुए ।
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मुगलों के बाद अंग्रेज़ो द्वारा परम्पराओं ध्वस्त कर जो कुछ जीवन भारतीय सभ्यता को प्रभावित कर अशिक्षा का प्रभाव बढ़ रहा था मूर्ति पूजा कर्मकाण्ड और अंधविश्वास के पसरते पैरों को स्वामी जी ने अंतिम स्वांस तक काटने का प्रयास किया ।
मैं उनको सत सत नमन करता हूँ ।
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😊
शिव की महिमा अपरंपार है इसलिए समझने की कोशिश करना उस दौर में "मूर्तिपूजा" का विरोध होना आवश्यक था इसलिए स्वामी दयानंद को उन्होंने चुना ।
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😊
मैं आर्यसमाज को स्वीकार करता हूँ तो अपनी संस्कृति और परम्पराओं से भी नेह रखता हूँ।
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😊💕😊💕💕🍁🍁🍁🙏🙏💕🍁🍁🙏🙏💕☕☕
आपको मेरी पोस्ट कैसी लगी बे ज़िझक कहिए क्योंकि मैं जानता हूँ मेरी पोस्ट पर सभी विद्वान लोग ही आते है मंदबुद्धि नही ।
बहुत बहुत स्वागत है ....
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ये जो प्रार्थना की पंक्तियाँ है मेरी नहीं है पर बचपन से ही मैंने इन्हें गुनगुनाया है ।😊
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#पंछी
#पाठक
#हरे कृष्ण

मेरी मातृभाषा

फ़ागुन कौ मतवारो मौसम
मन में पँख लगाइ रह्यो है
कितनी दूर रहै तू छोरी
तुझको आज बुलाय रह्यौ है !

जबसे सुनि लई तेरी बोली
मन मेरौ कटराय रह्यौ है !
तेइ मोटी मोटी आँख को भौंरा
मेरी धुक धुक को खटकाय रह्यौ है !

बंसी वारे अब का होगो
कछु मेरी समझ न आइ रह्यौ है
तू राधा कौ तेरी राधे
कछु ऐसौ ही मोय भाय गयौ है !
💕😊#मातृभाषादिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आपको ।
घर में बने हुए भोजन का स्वाद बहुत ख़ास होता है ना ठीक उतनी ही ख़ासियत अपनी मातृभाषा की होती है।एक अलग तरह का ही आनंद मिलता है । और इसका एहसास तब होता है जब आप अपने गृहनगर या राज्य से बाहर हों और अचानक कोई आपकी बोली बोलता दिख जाए ।
💕😊
:
मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के मध्य में एक छोटा सा राजस्थान का टुकड़ा मेरे गृहजिले का है ।
यहां की भाषा और बोलियां मिश्रित हैं ...हल्की सी बुंदेली थोडी सी राजस्थानी और पूरी तरह ब्रजभाषा के मेल से हमारी बोली में एक अलग ही मिठास और कड़कपन एक साथ नज़र आता है इसलिए इसे हम खड़ी बोली के रूप में जानते हैं ।
आओ भाषाओं के बारे में कुछ पढ़ते हैं-----
:
हमारे देश का प्राचीन नाम आर्यावर्त है इसलिए यहां की भाषाओं को पहले आर्यभाषाओं के रूप में जाना जाता था जो कि 'वैदिक संस्कृत' थी ।
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वैदिक संस्कृत दो भागों में बंट गई ---1.पाली 2. संस्कृत
😊यह पाली भाषा तीन भागों में बंट गई जो हैं-- 1.सौरसेनी,2.मागधी,3. महाराष्ट्री (मराठी)
अब आपको बतादूँ कि यह सौरसेनी भाषा फिर से दो भागों में बंट गई --1. गूजरी,2. सौरसेनी
😊
गूजरी भाषा से ही ---- गुजराती और राजस्थानी भाषा का विकास हुआ है ।
😊
क्योंकि मैं राजस्थानी हूँ तो राजस्थानी की बात करूँगा ।
हमारी राजस्थानी भाषा भी दो भागों में बंट गई-------1.डिंगल (पश्चिमी राजस्थानी), 2. पिंगल (पूर्वी राजस्थानी )
😊
:
डिंगल जो कि हमारे राजस्थान के पश्चिमी भाग में बोली जाती है इसका अपना साहित्य है जिसे डिंगल साहित्य या चारण साहित्य के नाम से जाना जाता है ।
चारण पश्चिमी राजस्थान की एक विशेष जाती है जो साहित्य सृजन करने का काम करती है ।
यह डिंगल साहित्य ही "#मारवाड़ी" गीतों के रूप में सृजित हुआ है।
😊
जालौर के उदोतन सूरी ने आठवीं सदी के ग्रंथ #कुवलयमाला में मरुभाषा का सर्वप्रथम प्रयोग किया !
अकबर के समय अबुलफ़जल ने आईने अकबरी में "मारवाड़ी" का ज़िक्र किया था ।
मारवाड़ी भाषा शुद्ध रूप से तो जोधपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में ही बोली जाती है ।
मारवाड़ी के प्रमुख साहित्यकार
कृपाराम खेड़िया ने राजैरा सौरठा या दोहा लिखे थे ।
इसी तरह---
वेलीकृस्न रुक्मिणी री की रचना पृथ्वीराज राठौर जो कि बीकानेर के थे पर गागरौन झालावाड़ में की ।
😊
लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत को कौन नहीं जानता जो "मूमल" ग्रंथ की रचनाकार हैं ।
:😊आओ अब बताता हूँ आपको पूर्वी राजस्थानी के बारे में जिसे #पिंगल के नाम से जाना जाता है ।
:
पिंगल साहित्य को पूर्वी साहित्य भी कहते हैं इसे #भाट साहित्य के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसका सृजन भाट जाति के लोगों ने किया-----
यही हमारी #ब्रजभाषा है जो छंदों के रूप में संकलित की गई है -- सूरदास, रहीम, रसखान,केशव आदि प्राचीन कवि हुए हैं .....😊
:
तहेदिल से आपका स्वागत करते हैं आप पढ़कर देखिए सायद कुछ उपयोगी जानकारी मिल जाए...😊
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मेरी सुबह हो तुम

उनींदी आँखों से तेरा दीदार करूँ
तुम मुझे चाहो और मैं प्यार करूँ !
हर सुबह का हो यह काम मेरा
युहीं दिन की मैं शुरुआत करूँ !

तेरी ख़ुशबू शामिल हो मेरी साँसों में
तेरी मीठी सी नर्माहट महसूस करूँ
जो भी मुश्किल हो मुझे दिन भर की
हल उसको पलभर में मैं यार करूँ !
प्रातः उठकर सबसे पहले
तुम अपने बाल बनाती हो क्या ?
दरवाज़े के सामने आकर
अब भी तुम मुस्काती हो क्या ?
अपनी नींद भगाने को तुम
तब अंगड़ाई लेती थी !
चाय बनाने के चक्कर में
अब भी बर्तन खनकाती हो क्या ?
जाने कितने लम्हें गुजरे
तुमको याद नही कर पाया !
जाने कितने पल बीते पर
तुमसे बात नही कर पाया !
जीवन की आपाधापी में ये
वक़्त फिसलता जाता है !
जाने कितने अर्से गुज़रे
पर मैं नादां समझ ना पाया !

बदले मंजर देखे हैं

जो ख़्वाब कभी बापू ने देखा या सुभाष ने पाला था
जिसकी ख़ातिर भगत गुरु आज़ाद हुआ मतवाला था !

ये कैसा माहौल हुआ हुआ अब अपनी तेरी माया में
लगता है शैतान घुस गया आज मनुज की काया में !

मानवता का मोल लगाते लेते लंगर देखे हैं
अपने ही आँगन में मैंने फ़िकते कंकर देखे है !
बचपन बीत गया मस्ती में यौवन बंजर देखे हैं
इन आँखों ने जाने कितने बदले मंजर देखे हैं
एक साथ खेले कूदे जो मित्र बड़े ही प्यारे थे
राजनीति के लिए उन्ही हाथों में ख़ंजर देखे हैं !
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क्या ग़ज़ब आसार बनते जा रहे ?

:
खाके रबडी दूध मक्ख़न संतरे
सबके सब बीमार बनते जा रहे !
शुद्ध कुछ ढूंढे यहां मिलता नहीं
मिलाबट के बाज़ार बनते जा रहे !
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देश में समस्याओं का अंबार लगा है किसी एक का हल निकालते हैं तो रक्तबीज बनकर नई नई चुनौतियां सामने आ खड़ी होती है ।
देश बड़ा है और लोग भी बहुत हैं इसलिए समस्याएं भी विकट है इनका समाधान मिलकर हो सकता है पिछले 70 सालों से हम एक दूसरे की टांग खींच रहे हैं इसलिए आज तक कुछ भी बेहतर नहीं कर पाए। पिछली सदियों की अपेक्षा आज के दौर की जनरेशन ज्यादा समझदार और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक दिखती है साथ ही अपने कर्तव्य को भी समझती है किंतु फिर भी कहीं ना कहीं कुछ कुंठा आज भी उनको विचलित करती रहती हैं इन कुंठाओं को खत्म करना होगा तभी हम उभरते इस सांस्कृतिक आतंकवाद से निपट पाएंगे।
क्या हम सभी को यह विचार नहीं करना चाहिए?
दुश्मन कट्टरवाद है?
जातिवाद है?
अशिक्षा है?
बेतरतीब बढ़ती हुई जनसंख्या है?
कानूनों की ढील है?
संविधान का लचीलापन है!
देश में बहुत सारे विद्वान हैं सब अपने-अपने विचार विश्व मंच पर देते रहते हैं पर कभी समस्याओं की जड़ तक क्यों नहीं पहुंच पाते क्योंकि कहीं ना कहीं उनमें भी कुंठा व्याप्त है।
जाति वर्ग धर्म आदि .....
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भारतीय संस्कृति की बात करने वाले लोग जानते हैं कि उनकी संख्या सबसे ज्यादा है फिर भी जो इसका नुकसान करते हैं उनको अलग नहीं कर सकते ।
क्यों ?
जब बात राष्ट्र के सौहार्द को चोट पहुंचाने की हो तो बिल्कुल भी ढील दिए बिना उनका दमन कडाई पूर्वक कर देना चाहिए ।
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अगर ये विषब्रण(फोड़ा) अभी ठीक नही किया तो धीरे धीरे नासूर बनकर कहीं से भी रिसेगा और इसे ठीक करना मुश्किल भी हो जाएगा हो सकता है ये जानलेवा बन बैठे ।
:
#पंछी
#पाठक
#हरे कृष्ण
#मेरे निजी विचार हैं किसी को गलत या नीचा दिखाने के लिए बिल्कुल भी नहीं ।
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यह फोड़ा पिछले 1400 बर्षों से पल रहा है इसे दवाकर सारी पीव निकालने का वक़्त आ गया है ।
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जय श्री कृष्ण !

Tuesday, February 18, 2020

बचपन (जाने कहाँ गए वो दिन )

रोना और मचलना दिनभर
खेल कूद में व्यस्त रहे
कहाँ गए वो दिन बचपन के ?
कितने जिनमें मस्त रहे !

ऊंच नीच का भेद न जाना
सबके साथ प्रेम से खाना
हम हँसने के अभ्यस्त रहे
कहाँ गए वो दिन बचपन के ?
कितने जिनमें मस्त रहे !

सीमा सरहद का भान नही
मन में कोई अभिमान नही
छल कपट हमेसा पस्त रहे
कहाँ गए वो दिन बचपन के ?
जिनमें कितने मस्त रहे !

लड़ते और झगड़ते भी थे
रखते नही कोई भी वैर
पल भर में सब भूल भाल कर
अपने फ़िर हो जाते ग़ैर
दम्भ द्वेष पाखण्ड नही था
भोले भाले भक्त रहे
कहाँ गए वो दिन बचपन के ?
जिनमें कितने मस्त रहे !
बच्चों की किलकारी से जो आँगन चहका रहता है
मेरा ये अनुभव है यारो भगवान वहीं पर रहता है ।
स्वप्न सलोने पापा देखें माँ ममता बरसाती है
ताई चाची दादी दादू फूले नहीं समाते है !
और भीनी सी ख़ुशबू से मन सबका बहका रहता है
बच्चों की किलकारी से जो आँगन चहका रहता है !

तुतलाते तुतलाते हम भी फ़िर से बचपन जी लेते है
छूट गया जो रस जीवन का फ़िर से हम पी लेते है !
घुटने के बल भी होकर हम अपनी अकड़ भूलते है
बाहें फ़ैलाकर हँसते हँसते हम फ़िर से जी लेते है !
यादों के झुरमुट से ख़ुद का बचपन आँखों में आता है
मीठी सी मुस्कान लबों पर और मन महका रहता है
बच्चों की किलकारी से जो आँगन चहका रहता है
मेरा ये अनुभव है यारो भगवान वहीं पर रहता है !
चालाकी के इस दौर में
मैं मासूमियत सहेजना चाहता हूं
ताकि बड़े होने के साथ
बचा रहे थोड़ा सा बचपन
आने वाले बच्चों के लिए !

तकनीकी के इस दौर में
सबको स्मार्ट बच्चों की चाहत है
ताकि करते रहें अपडेट उन्हें भी
वक़्त के साथ नई तकनीकी से
चुका कर क़ीमत मासूमियत की
जीवन को चलाएं यंत्रवत !
मैं सहेजना चाहते हूँ
जीवन के वो पल जो खो गए है
इस आधुनिकता के जंगल में
आने वाले जीवन के लिए
ताकि कह न सकें कभी उदासी से
जाने कहाँ गए वो दिन
बचपन के !

Sunday, February 16, 2020

प्रार्थना(मेरी प्रथम रचना)

हे परमब्रह्म परमेश्वर हे विश्वनाथ रामेश्वर
हम तेरा नाम उचारें वस तेरा नाम पुकारें
न जुल्मों से हम हारें सब खुशियां हम पर वारें
🙏🙏🙏👨🌼🌹
व्यभिचार झूठ छल चोरी हिंसा और कपट अघोरी
छुएं न प्रभु ये मुझको ये बिनती है मेरी
काम क्रोध मद्य लोभ तृष्णा स्वार्थ और भोग
आएं न मन में हमारे हम तेरा नाम उचारें ।।
हे परमब्रह्म........
🙏🙏🙏🙏🙏🙏💐🌺🌷
ना मान बढ़ाई प्रतिष्ठा,न मन में दूषित इच्छा
अकर्म करूँ ना कभी मैं,है मेरी यही सुभिच्छा 
तप, त्याग, प्रेम गुण दो तुम वस ज्ञानरूप की दीक्षा
न चाहूँ धन और दौलत न मांगू बल और शौहरत
वस मात-पिता को पूजूँ हो तेरी यही प्रदीक्षा ।।
🙏😊😊🙏🙏
मन वाणी मेरे तन में कर्तापन रहे कभी ना 
हास्य,बिलास्य और निंदा हो हो पाए मुझसे कहीं ना
दुःख लाभ हानि और सुख से बिचलित हो पाऊं कभी ना 
पशुओं सा जीवन जग में जियूँ में यहां कहीं ना।
🙏🙏🙏🙏🙏🌺🌷
हे परमब्रह्म ......
:
मैं चाहूँ सत्य विनय को सेवा सत्संग नियम को
क्षमा,दान,संतोष,तेज तुम दो धैर्य और दम को
वस सदगुण मुझमें आएं ,दुर्गुणों को दूर भगाएं ।
😊🙏🙏🙏🙏🙏
मेरी नजर बनो वस तुम ही मेरी फ़िकर बनो वस तुम ही
हर स्वांस में मेरी तुम हो आवाज़ बनो प्रभु तुम ही
रग रग में दौड़ रहे हो लहु बनके तुम मेरे
मेरे रोम रोम में तुम हो वस तुम ही हो योगेश्वर ।
👨🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हे परमब्रह्म परमेश्वर.......
कभी हारूँ मैं न किसी से वस विजय प्राप्त हो मुझको
कर्तव्य करूँ नित डटकर वस सुजय शिद्ध हो मुझको
मेरे मन से तम को मिटाओ दो ज्ञानयोग मधुसूदन ।
🙏🙏💐👨🌻🌸🌺
तू अजर अमर अविनासी,तू तेजपुंज सुखराशि
वस सर्वानंद तुम्हीं हो ,मथुरा तुम हो काशी
करूँ कोटि नमन मैं तुझको है अक्षर और अधिवासी
गोपाल,विष्णु गोविंद,श्रीकृष्ण राम अरविंद
मेरी विनती ऐसे सुनना मुझको तुम ऐसा बुनना
हर ओर सफलता मेरी तुझको प्रणाम राधेश्वर ।
🙏🙏🙏🙏🙏🌻🌺🌼🌹
हे परमब्रह्म परमेश्वर......
:

आज तुम मुझको बताओ

अवरुद्ध शब्दों के झरोखे
झांकने में क्यूँ लगे हो
कण्ठ से बोलो जरा तुम
बात मन की तो सुनाओ !

वो लड़कपन की सूनामी
बह चले एक साथ हम तुम
अब मोहब्बत की लहर में
आ फसें हो तो डरो मत
आ मिलो मुझसे गले तुम
मत अभी से डगमगाओ !

जुड़ गए जब तार दिल के
अब कोई तो धुन बजाओ
है अगर उलझन कोई तो
आज तुम मुझको बताओ !

इंतज़ार के पल

धड़कन बढ़ती रहे दिल सम्हलते नही है
तड़पन चढ़ती रहे मन बहलते नही है !
राहें तकती ये अँखियाँ पलकें जम सी गई हैं
"इंतज़ार के पल" थमते बहुत ये निकलते नही है !

ऊँचा आसमान

कह दूं हवाओं से और कर ले ऊँचा आसमान
मेरे बाजुओं में दम है तब तक भर लूंगा मैं उड़ान
हारसे मैंने न समझौता किया है जीतना आता है मुझको
मेरे वतन की इस जमीन पर हिम्मतों के हैं बागान !

धूप कितनी भी प्रखर हो जाये छाया ढूंढ लूंगा
मैं मुसाफ़िर हूँ डगर डगमग न होगी
धर्म मेरा कर्म मेरा अनवरत चलना ही होगा
मैं लगन से राह के प्रतिबन्ध सारे तोड़ लूंगा !

रिश्ते

फ़ूल और फ़ल प्राप्त करने के लिए पौधा लगाना ही पर्याप्त नही है क्योंकि उसके वृक्ष होने तक पोषण और सरंक्षण की सतत ज़रूरत होती है !
रिश्तों की मिठास प्राप्त करने के लिए भी उनको पौधे की तरह संवर्धित करना होता है सींचना पड़ता है और बाढ़ लगाकर आवारा पशुओं से बचना पड़ता है !

बंटवारा

बंटवारे का नाम सुनते ही
वेदनाओं के नश्तर चुभने लगे
जो साथ खेले कूदे संग बढ़े पढ़े
अजनबी होने लगे
स्वयं पर आकर अटके जज़्बात
अब स्वयं बोने लगे
अलग तो होना तय है इस दौर में
कौन साथ रहेगा
ये ग़ज़ब है कि अब
भाई भाई भी ज़ुदा होने लगे
महत्वकांक्षी मन तुम्हें
अलग करने को आतुर है
मानता हूं
भाई पर याद रखना
शाखों से जो शोभा थी वृक्ष की
अब ठूंठ होने लगे !
ठूंठ न छांव देती है न फूल न फ़ल
दर्द की इन्तिहा तो ये है कि
अब ठूंठ के भी हिस्से होने लगे !

सुनो

सुनो
तुमसे ही प्रेम करता हूँ मैं
तुमसे ही नाता है नेह का
भावनाएं स्पंदित होती हैं
तुमसे तुम्हारे होने से मेरी
तुझमें ही लिप्त होता हूँ मैं !
तुम भी तो करती हो ना प्रेम
बिल्कुल मेरी तरह मुझसे
निश्वार्थ भाव से निर्लिप्त हो
फ़िर कैसे होता है संताप तुम्हें
कैसे दुःख जाता है तुम्हारा हृदय
समझाती बहुत हो,नही समझता मैं !
सुनो
तुम जिस मुक्त भाव से मुझे मिली थी
मुझे लगा था यात्री हो तुम भी प्रेम पथ की
साथ चलेंगे हाथ पकड़कर एक दूजे का
पर ये क्या ये तो बन गया है बन्धन मोह का
जो कारण होता है शोक और बस क्रोध का
हे "प्रकृते" क्यों करती हो ऐसा हर बार मेरे साथ
मैं तेरे भावों का नही कर पाता हूं सम्मान
हर बार बार बार बस करता हूँ अपमान
तुम जीती हो अपना स्वाभिमान और मैं तज पाता नहीं अभिमान 
न जाने कब होगा ? "निर्वाण"
जाने कब होगा ? "निर्वाण" !
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Friday, February 14, 2020

ग़ुलाब नही भेजा

ख़ुदा के नूर में डूबी सुबह ले कैफ़ियत निकली
ये बनकर धूप चाहत की सुखा हर दर्द को देगी
फ़ना होकर के ग़म सारे मोहब्बत रंग लाएगी
थी ख़्वाहिश मुद्दतों की जो पूरी हो ही जायेगी !
मेरे लिए किसी ने गुलाब नहीं भेजा
मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं भेजा !

मैं करता रहा इंतजार शिद्दत से उनका
पर उनको न ख़्याल आया न ख़त भेजा !

वादे करने के दिन है और यक़ीन की रातें
पर इन दिनों भी किसी ने पैग़ाम नही भेजा !

अपना बनालो मुझको

मैं झगड़ के तुझसे रुठ जाऊँ तो मनाले मुझको
मैं तड़प के तुझसे दूर जाऊँ तो गले लगालो मुझको
वादा करो आज तुम मुझसे या लेलो कोई भी वादा
जुदा होने के ख़्वाब से डर जाऊँ-
इतना अपना बनालो मुझको !

मैं इश्क़ में तर हो जाऊँ तेरे तू ब-तर करले मुझको
मैं रश्क़ में ज़र हो जाऊँ तेरे तू बि-तर करले मुझको
दर-बदर की तलाश में मैं न रहूँ कभी अब
इस क़दर कुछ अपना सा करले मुझको !
हम अकेले आते है अकेले ही जाते है किंतु आने के बाद और जाने से पहले रिश्ते बन जाते है।
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माता पिता भाई बंधु सगे संबंधियों के साथ हम बढ़ रहे होते है।
सभी रिश्ते अनमोल उपहार स्वरूप हमें मिलते हैं ।
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मित्रता एकमात्र ऐसा रिश्ता है जिसे हम स्वयं बनाते हैं इसलिए इसे निभाने के लिए और बेहतरी की आवश्यकता होती है ।
और अगर आज के दौर में आपका कोई मित्र विपरीत लिंगी है तो विशेष तौर पर सावधानी बरतने की आवश्यकता है ।
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अगर आप अपने माता पिता से अपने विपरीत लिंगी मित्र को मिला सकने की हिम्मत रखते हो तो ही मित्रता करें अन्यथा मित्रता न करने में ही भलाई है ।
क्योंकि आप जब अपने पेरेंट्स को धोखे में रख सकते हो तो ख़ुद को भी वही मिलेगा याद रखना ।
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मैं उन तमाम लड़कियों से कहना चाहता हूं जो अपने पापा से बेइंतहा प्यार तो करती हैं लेकिन अपने प्यार को उनके प्यार में मिलाकर दो गुना नहीं कर सकती।
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यही बात लड़कों पर भी लागू होती है अगर आप अपने प्यार को पेरेंट्स के साथ साझा नहीं कर सकते तो याद रखना तुम वादा तो कर दोगे पर उसे पूरा करने की औक़ात कहाँ से लाओगे ।
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माता पिता के आशीर्वाद से गुरुजनों बुजुर्गों के प्यार से ही वादा निभाने की कुबतें आती हैं ।
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#पाठक
#पंछी
#हरे कृष्ण
#promise day की हार्दिक शुभकामनाएं आपको ............

चूमकर तेरे होठों को मैं

मुझे तुमसे मोहब्बत बहुत है यार
मैं सच में तुमसे बहुत करता हूं प्यार
कर लो कर लो मेरा थोड़ा सा एतबार
लो करता हूं मैं आज तुमसे इजहार !

अब मुझे और कुछ चाहिए भी नहीं
एक तेरा साथ हो तो मुझे क्या कमी
है इस जमीं पर ही जन्नत तुम्हीं से
लो करता हूं मैं आज तुमसे इकरार !

मुझे तुमसे बहुत मोहब्बत है यार
मैं सच में तुमसे बहुत करता हूं प्यार
तेरे साथ जीने की ख्वाहिश है मेरी
चाहत में तेरी मैं मर जाऊं यार !
चूमकर तेरे होठों को में प्यार से
झूमकर तेरी बाहों में खो जाऊंगा
मेरे सिर में तेरी उंगलियां जब चलेंगी
मैं ख़ुद बेखुदी में ही सो जाऊंगा
तेरे आगोश में मैं लिपट कर सनम
मै ख़ुद से जुदा सा भी हो जाऊंगा !
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😊🌺🌹
#पंछी
#पाठक
#प्यार
#हरे कृष्ण
😊🌺🌹 

मेरी सांसे तेरी धड़कन दौनों असल में एक हैं

कैदे हयात ओ बंदे गम दोनों असल में एक है
पर मोहब्बत में कसम से हम दोनों भी एक है !

अब इबादत और इरादे मेरे बिल्कुल नेक है
मेरी धड़कन तेरी सांसे भी जन्म भर एक है !

अब मोहब्बत में जुदाई दिल नहीं सह पाएगा
मौत और बिछुड़न असल में अब तो दौनो एक है !
जिंदगी के इस सफर में तुम हमारे साथ हो
जन्नत की हूर में से तुम सनम भी एक हो !

अब खुदा दोखज़ भी दे तो है मुझे हंसकर कुबूल
मिल करके तुमसे तो गुनाहों का मसीहा नेक हो !

नूर अपने से इलाही ने मोहब्बत को बनाया
तुम फरिश्तों की डगर से आकर मिली वह एक हो !
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🌹
#पंछी
#पाठक
#हरे कृष्ण
#शुभसंध्या
☘🍹😊🌷👻👻😁👌👻

मेरी बात

हिन्द का प्राचीन जीवन चाहते हो क्यों भला अब ?
आधुनिकता के क़फ़स में फँसचुके हो तुम भला जब
छोड़ दो अब तो लगाना तुम मुखौटे पश्चिमी सब
लो बदल ख़ुद को निपुण कर,मुड़ के पीछे देखना क्यों ?

अब इधर के ना उधर के इसलिए भी हैं भटकते
छोड़कर अपने बसन्ती माह को तुम हो तड़पते
श्रृंगार वसुधा का तुम्हें भाता नहीं है 
सरस्वती पूजन तुम्हें आता नही है
शिव महोत्सव तुम हो पागल भूल बैठे
प्यार को फूहड़ बनाकर गौरवान्वित हो भला क्यों ?

प्यार होता क्या है पूछो तुम पिता से ?
तुम को सूखे में रखा खुद गीले में सोई
उस माँ से
प्रेम तो दादी की गोदी में पला था
इश्क़ दादा जी की उंगली से चला था
फ़िर मोहब्बत में फ़ना ख़ुद के लिए क्यों ?
प्रेम का उत्सव मनाने जब भी मैं निकला हूँ घर से
डर सहम महबूब मिलता और बचता हूँ नज़र से
है नहीं मंजूर सबको फिर भला ये फ़ितूर कैसा ?
तोड़कर पुरखों की रेखा फ़िर भला हो क़ुसूर भी क्यों ?
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#पंछी
#पाठक
#हरे कृष्ण
#शुभसंध्या आप सभी को मेरा प्रणाम मेरा यह विचार मोहब्बत करने के विरोध में नही है अपितु "मोहब्बत" जीने के उपलक्ष्य में है।
आप किसी से प्रेम करते है तो यह अच्छी बात है और आपके उस प्रेम को परिवार और समाज स्वीकार करे ये उससे भी अच्छी बात है किन्तु मैं उस इश्क़ के बिल्कुल भी पक्ष में नही जिसे आपके अलावा कोई और सम्मान की दृष्टि से न देख पाए ।
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हमारी जीवनशैली पारम्परिक तौर पर एक दूसरे से जुड़ी हुई है ।इसलिए परस्पर उनकी इच्छाओं और भावनाओं का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है ।
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आज के दौर में हम नई जनरेशन में बदलाब देखते है वह किसी भी तरह से स्वयं को स्वतंत्र महसूस करना चाहती है ।इसलिए पश्चिम की ओर दौडती है।उन्ही की तरह जीना चाहती है ।पर उनके पहले की पीढ़ी उन्हें खींचकर अपनी जीवनशैली में ढालने का प्रयास करते है तो परिणाम "संकरण" युक्त होता है जिसे न पश्चिम स्वीकारता है और न पूर्व ही आत्मसात करना चाहता है ।इसी बजह से विरोध होने लगते है ।और समाज विखंडन को प्राप्त होते हैं ।
😊
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मेरा मत है कि या तो हमें पूरीतरह भारतीय बनना चाहिए या फिर पूरी तरह से पश्चिम को ओढ़ लेना चाहिए !
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तब न कोई वेलेंटाइन डे का विरोध कर पायेगा और न ही महाशिवरात्रि को भूल पायेगा !
😊
जय हिंद जय भारत ..
😊
कोई न समझे कि मैंने कोई ज्ञान दिया है मैंने अपनी बात लिखी है जरूरी नही आप भी इससे सहमत हों ।
😃💕👻😁👻🍬🍬

Wednesday, February 5, 2020

पंछी तुम देख रहे हो ना...

पंछी,तुम देख रहे हो ना,इन बदलती फिज़ाओ को !
लगता जैसे कुछ तो हुआ है , इन हवाओं को !!

पतझड़ के जाते ही फ़िर से,वसुधा में रंग उभर आया !
हृदय के आंगन में फ़िर से इक उपवन है मुस्काया !!

प्रीत-प्रेम,पीताम्बर ओढ़े,थिरक-थिरक रह जाती है !
कोयल भी, आकर मीठा सा, सबको गीत सुनाती है !!

कोयल की,स्वर लहरी सुनकर,मन में भाव उमड़ता है !
कोमल सी पलकों में कोई फ़िर से ख़्वाब घुमड़ता है !!

Monday, February 3, 2020

ये परिंदा

अनबूझ पहेलियों में उलझा जीवन
बूझते बुझाते ख़प जाता है !
कभी ख़ुद को समझाते कभी ख़ुद को समझते
सबकी कहानी एक जैसी लिख जाता है
परिग्रह करते कराते भुनाता निग्रह को
ये परिंदा तन्हा मुसाफ़िर सा लौट जाता है !
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🍬🌷#सुप्रभात🌷🍬💕
मैंने आज भी ख़ुश रहना ही चुना
देखते है ये दर्द कितना सताता है
मैं नादां सा "पंछी" पँखो के बल अपनी
देखना ये रुख़ मोडलेगा या हवाओं में खो जाता है !
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#पंछी
#पाठक
#हरे कृष्ण
#divyansupathak
💕☕😊🌷🍬💕🌷🌷🍬
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दुआओं में उठे हाथों के अलावा कुछ भी साथ नही जाता....
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बिछुड़न

ओझल होते ही आंखों से दिल की धड़कन बढ़ जाती है
सांसो की खुशबू खो जाती तेरी याद बहुत ही आती है !

प्यार भरे दिल को झलका कर मैंने झाला कर डाला
लेकिन फिर भी कुछ लम्हों में तू ही तू दिख जाती है !

तोता मैना के किस्सों को फिर मैं लिखने लगता हूं
शब्दों के बिंबों में तुमको मारू सा लखने लगता हूं !

बोझिल होती इन पलकों पर तेरी छवि अंकित होती है
और बस फिर तो मैं ही खुद को ढोला गढ़ने लगता हूं !
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मुझे तो बिछड़ने की बहुत पुरानी आदत है
जाने जाना फिर भी तुमको मेरी इतनी चाहत है !

देख दूरियों की दस्तक से तुमको कितनी राहत है 
मेरी बातों के बाणों से अब तो ना तू आहत है !
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Saturday, February 1, 2020

प्रेम पर मेरा विचार

शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है
प्रेम प्रेम न रहकर त्याग समर्पण हो गया है!
मोह, ममता, अशक्ति, प्रीति सबकुछ एकजैसे
ऐसा लगता है इन्हीं में प्रेम का तर्पण हो गया है !
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प्रेम.......
सतयुग में हरिश्चन्द्र का बच्चे और पत्नी सहित बिक जाना ।
पता है प्रेम क्या है ?
प्रेम था इसलिए न पत्नी ने सवाल किए न बच्चे ने ।
तुम जो निर्णय लो स्वीकार है
मेरी दृष्टि में यही प्रेम पारावार है ।
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त्रेतायुग में वनवास जाना कोई विरोध नही,सीता का चोरी होना रावण वध राजतिलक
फ़िर से त्याग और पलटकर न पूछना क्यों किया ऐसा ?
हां मेरी नज़र में यही प्रेम अपार है ।
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द्वापरयुग की हठखेलियों की बड़ी बात होती है।
राधा और कृष्ण की बड़ी बिसात होती है ।
प्रेम था कभी सोचा
वंशी के सहारे उम्र गुजार देना मेरी दृष्टि में प्रेम बलिहार है ।
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कलयुग में भी मीराबाई अच्छा पन्ना का अपने बच्चे को बनबीर के हाथों कटवा लेना 
प्रेम नही त्याग था किन्तु "उदय" को बड़ा कर गद्दी पे बिठा देना प्रेम की पराकाष्ठा !
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प्रेम पर बातें करते हैं पर यह सार्थक तब होगा जब हम अपने स्वरूप को ठीक से समझने लगें ।
भौतिक और अभौतिक दोनों का संयोजन जीवन बनाता है ।
मोह ममता अशक्ति राग द्वेष प्रीति ये सारी चीजें हमें बांधती है एक सूत्र में जोड़े रखती है।
किसी से जुड़ते ही जरूरतें बढ़ती है आप अकेले रहते हो कोई दो मित्र और आपके पास आ जाएं तो जरूरत बढ़ेगी ।
भूख भी और उन्हीं की पूर्ति में उम्रभर लगे रहना ।
"प्रेम" की अनुभूति कैसे हो जाएगी ?
यही नियम "ईश्वर" पर भी लागू होता है ।
भौतिकता से परे की वस्तु भौतिकता में प्राप्त होना सम्भव है क्या ?
मिठाई की दुकान पर जूते मांगों भई मिल तो जाएंगे पर 😀😀😀😂😁😁😀😀समझदार हो !
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नास्तिक फट से कह देते है ईश्वर नही है है तो बताओ !
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😁😁😁😂😁😀😀😁
मेरा एक मित्र ऐसे ही बोलता था एकबार मैंने "जमालघोटा" प्रयोग कर दिया ....एक दिन में मान गया कि ईश्वर होता है ।
😀😁😁😀😂😂🙏🙏☕☕☕☕🐦☕🙏😂😀😀
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#पंछी
#पाठक
#हरे कृष्ण
#शुभसंध्या मित्रो.............
आनंद लीजिये मेरा किसी को आहत करने का कोई मन नही है फिर भी अगर होता है तो स्वागत है स्वागत है स्वागत है ...........😊

भावों की मुट्ठी।

 हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...