धड़कन बढ़ती रहे दिल सम्हलते नही है
तड़पन चढ़ती रहे मन बहलते नही है !
राहें तकती ये अँखियाँ पलकें जम सी गई हैं
हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...
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