Wednesday, February 5, 2020

पंछी तुम देख रहे हो ना...

पंछी,तुम देख रहे हो ना,इन बदलती फिज़ाओ को !
लगता जैसे कुछ तो हुआ है , इन हवाओं को !!

पतझड़ के जाते ही फ़िर से,वसुधा में रंग उभर आया !
हृदय के आंगन में फ़िर से इक उपवन है मुस्काया !!

प्रीत-प्रेम,पीताम्बर ओढ़े,थिरक-थिरक रह जाती है !
कोयल भी, आकर मीठा सा, सबको गीत सुनाती है !!

कोयल की,स्वर लहरी सुनकर,मन में भाव उमड़ता है !
कोमल सी पलकों में कोई फ़िर से ख़्वाब घुमड़ता है !!

No comments:

Post a Comment

भावों की मुट्ठी।

 हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...