पंछी,तुम देख रहे हो ना,इन बदलती फिज़ाओ को !
लगता जैसे कुछ तो हुआ है , इन हवाओं को !!
पतझड़ के जाते ही फ़िर से,वसुधा में रंग उभर आया !
हृदय के आंगन में फ़िर से इक उपवन है मुस्काया !!
प्रीत-प्रेम,पीताम्बर ओढ़े,थिरक-थिरक रह जाती है !
कोयल भी, आकर मीठा सा, सबको गीत सुनाती है !!
कोयल की,स्वर लहरी सुनकर,मन में भाव उमड़ता है !
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