ख़ुदा के नूर में डूबी सुबह ले कैफ़ियत निकली
ये बनकर धूप चाहत की सुखा हर दर्द को देगी
फ़ना होकर के ग़म सारे मोहब्बत रंग लाएगी
मेरे लिए किसी ने गुलाब नहीं भेजा
मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं भेजा !
मैं करता रहा इंतजार शिद्दत से उनका
पर उनको न ख़्याल आया न ख़त भेजा !
वादे करने के दिन है और यक़ीन की रातें
पर इन दिनों भी किसी ने पैग़ाम नही भेजा !
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