सफ़ऱ में मुनासिब सुकूँ कभी होता है क्या ?
ज़िंदगी का हो या जिंदगानी का !
चार क़दम चल कर थक जाते है हमराही जब
जिंदादिली से कुछ होता है क्या ?
सुब्ह की मुलाकात भी ग़नीमत है
तमाम उम्र हर कोई साथ चलता है क्या ?
जो ज़िस्म और ख़्वाहिश की ख़ातिर जी रहे वाइज
इन वाइजों से बुरा कोई होता है क्या ?
चहल कदमी कभी "पाठक" न करना चार क़दमों की
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