बंटवारे का नाम सुनते ही
वेदनाओं के नश्तर चुभने लगे
जो साथ खेले कूदे संग बढ़े पढ़े
अजनबी होने लगे
स्वयं पर आकर अटके जज़्बात
अब स्वयं बोने लगे
अलग तो होना तय है इस दौर में
कौन साथ रहेगा
ये ग़ज़ब है कि अब
भाई भाई भी ज़ुदा होने लगे
महत्वकांक्षी मन तुम्हें
अलग करने को आतुर है
मानता हूं
भाई पर याद रखना
शाखों से जो शोभा थी वृक्ष की
अब ठूंठ होने लगे !
ठूंठ न छांव देती है न फूल न फ़ल
दर्द की इन्तिहा तो ये है कि
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