मैं अपने ख्वाबों को लेकर, दिन रात अंधेरे चलता हूं
सृष्टि में आते ही उसके, रथ का पहिया बनता हूं !
आसक्ति और इच्छाओं का, मैं आजीवन पथिक बना
हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...
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