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खाके रबडी दूध मक्ख़न संतरे
सबके सब बीमार बनते जा रहे !
शुद्ध कुछ ढूंढे यहां मिलता नहीं
मिलाबट के बाज़ार बनते जा रहे !
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देश में समस्याओं का अंबार लगा है किसी एक का हल निकालते हैं तो रक्तबीज बनकर नई नई चुनौतियां सामने आ खड़ी होती है ।
देश बड़ा है और लोग भी बहुत हैं इसलिए समस्याएं भी विकट है इनका समाधान मिलकर हो सकता है पिछले 70 सालों से हम एक दूसरे की टांग खींच रहे हैं इसलिए आज तक कुछ भी बेहतर नहीं कर पाए। पिछली सदियों की अपेक्षा आज के दौर की जनरेशन ज्यादा समझदार और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक दिखती है साथ ही अपने कर्तव्य को भी समझती है किंतु फिर भी कहीं ना कहीं कुछ कुंठा आज भी उनको विचलित करती रहती हैं इन कुंठाओं को खत्म करना होगा तभी हम उभरते इस सांस्कृतिक आतंकवाद से निपट पाएंगे।
क्या हम सभी को यह विचार नहीं करना चाहिए?
दुश्मन कट्टरवाद है?
जातिवाद है?
अशिक्षा है?
बेतरतीब बढ़ती हुई जनसंख्या है?
कानूनों की ढील है?
संविधान का लचीलापन है!
देश में बहुत सारे विद्वान हैं सब अपने-अपने विचार विश्व मंच पर देते रहते हैं पर कभी समस्याओं की जड़ तक क्यों नहीं पहुंच पाते क्योंकि कहीं ना कहीं उनमें भी कुंठा व्याप्त है।
जाति वर्ग धर्म आदि .....
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भारतीय संस्कृति की बात करने वाले लोग जानते हैं कि उनकी संख्या सबसे ज्यादा है फिर भी जो इसका नुकसान करते हैं उनको अलग नहीं कर सकते ।
क्यों ?
जब बात राष्ट्र के सौहार्द को चोट पहुंचाने की हो तो बिल्कुल भी ढील दिए बिना उनका दमन कडाई पूर्वक कर देना चाहिए ।
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अगर ये विषब्रण(फोड़ा) अभी ठीक नही किया तो धीरे धीरे नासूर बनकर कहीं से भी रिसेगा और इसे ठीक करना मुश्किल भी हो जाएगा हो सकता है ये जानलेवा बन बैठे ।
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#पंछी
#पाठक
#हरे कृष्ण
#मेरे निजी विचार हैं किसी को गलत या नीचा दिखाने के लिए बिल्कुल भी नहीं ।
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यह फोड़ा पिछले 1400 बर्षों से पल रहा है इसे दवाकर सारी पीव निकालने का वक़्त आ गया है ।
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जय श्री कृष्ण !
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