हे परमब्रह्म परमेश्वर हे विश्वनाथ रामेश्वर
हम तेरा नाम उचारें वस तेरा नाम पुकारें
न जुल्मों से हम हारें सब खुशियां हम पर वारें
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व्यभिचार झूठ छल चोरी हिंसा और कपट अघोरी
छुएं न प्रभु ये मुझको ये बिनती है मेरी
काम क्रोध मद्य लोभ तृष्णा स्वार्थ और भोग
आएं न मन में हमारे हम तेरा नाम उचारें ।।
हे परमब्रह्म........
ना मान बढ़ाई प्रतिष्ठा,न मन में दूषित इच्छा
अकर्म करूँ ना कभी मैं,है मेरी यही सुभिच्छा
तप, त्याग, प्रेम गुण दो तुम वस ज्ञानरूप की दीक्षा
न चाहूँ धन और दौलत न मांगू बल और शौहरत
वस मात-पिता को पूजूँ हो तेरी यही प्रदीक्षा ।।
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मन वाणी मेरे तन में कर्तापन रहे कभी ना
हास्य,बिलास्य और निंदा हो हो पाए मुझसे कहीं ना
दुःख लाभ हानि और सुख से बिचलित हो पाऊं कभी ना
पशुओं सा जीवन जग में जियूँ में यहां कहीं ना।
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हे परमब्रह्म ......
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मैं चाहूँ सत्य विनय को सेवा सत्संग नियम को
क्षमा,दान,संतोष,तेज तुम दो धैर्य और दम को
वस सदगुण मुझमें आएं ,दुर्गुणों को दूर भगाएं ।
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मेरी नजर बनो वस तुम ही मेरी फ़िकर बनो वस तुम ही
हर स्वांस में मेरी तुम हो आवाज़ बनो प्रभु तुम ही
रग रग में दौड़ रहे हो लहु बनके तुम मेरे
मेरे रोम रोम में तुम हो वस तुम ही हो योगेश्वर ।
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कभी हारूँ मैं न किसी से वस विजय प्राप्त हो मुझको
कर्तव्य करूँ नित डटकर वस सुजय शिद्ध हो मुझको
मेरे मन से तम को मिटाओ दो ज्ञानयोग मधुसूदन ।
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तू अजर अमर अविनासी,तू तेजपुंज सुखराशि
वस सर्वानंद तुम्हीं हो ,मथुरा तुम हो काशी
करूँ कोटि नमन मैं तुझको है अक्षर और अधिवासी
गोपाल,विष्णु गोविंद,श्रीकृष्ण राम अरविंद
मेरी विनती ऐसे सुनना मुझको तुम ऐसा बुनना
हर ओर सफलता मेरी तुझको प्रणाम राधेश्वर ।
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हे परमब्रह्म परमेश्वर......
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