Saturday, February 29, 2020

आध्यात्म की ओर जाने से पूर्व

जीवन के दो आयाम है भौतिक एवं आध्यात्मिक यदि हम भौतिक रूप से पूरी तरह पुष्ट हैं विकसित हैं तो ही हमें आध्यात्मिक उन्नति का एहसास समझ आता है ।
और यदि नही है तो हम दौनों में उलझ कर रह जाते हैं !
"बुद्ध" जन्म से ही भौतिक उन्नति को देख चुके थे ।
इसलिए उन्होंने सबकुछ त्याग कर आध्यात्मिक मार्ग चुना और सफ़ल भी हुए ।
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इसलिए मैं आपसे भी यही उम्मीद करता हूँ कि आप प्रथम भौतिक उन्नति को प्राप्त करें उसके साथ ही आध्यात्मिक विकास के लिए अग्रसर हों ।
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आपके विचारों में मुझे भविष्य का "बुद्ध" नज़र आता है किञ्चित कहीं न कहीं वर्तमान की पीड़ा भी सताती है ।
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कैसे इस दौर में संत ही असंत बनकर जीवात्मा,परमात्मा, ज्ञान, वैराग्य , सभ्यता,संस्कृति, को तार तार कर देते हैं ।
कोई कृष्ण, कोई कबीर, कोई राधे, कोई शिव बनने के पाखण्ड करते है और बेटा उनका मूल उद्देश्य अध्यात्म के सहारे भौतिक उन्नति का सुख भोगना मात्र होता है ।
इन्ही के कारण हम अपने आपको अपमानित महसूस करते हैं ।
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बुद्धिमान हो जो कहना चाहता हूं समझ लोगे इसी आशा के साथ विदा लेता हूँ ।
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"भौतिक उन्नति के बाद ही आध्यात्मिक उन्नति संभव है 
यदि थोड़ी भी कमी रहती है तो यही आध्यात्म से हमें दूर कर पतन की ओर ले जाती है ।"
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यह मेरे अपने निजी विचार है आपको कहीं भी कोई आपत्ति हो तो बे जिझक कहना आपके साथ आपके पढ़ने वालों को भी कोई आपत्ति हो तो वो भी अपने विचार रख सकते हैं।
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ऋषि मुनियों की पुण्य धरा ये पावन और पुनीत है
भक्ति त्याग और प्रेम समर्पण शौर्य यहाँ अभिनीत है !
समरसता में गुथी हुई ये "सभ्यता" अनमोल सी
भारत माता के आँचल में अद्भुद शक्ति प्रणीत है !

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