जो ख़्वाब कभी बापू ने देखा या सुभाष ने पाला था
जिसकी ख़ातिर भगत गुरु आज़ाद हुआ मतवाला था !
ये कैसा माहौल हुआ हुआ अब अपनी तेरी माया में
लगता है शैतान घुस गया आज मनुज की काया में !
मानवता का मोल लगाते लेते लंगर देखे हैं
बचपन बीत गया मस्ती में यौवन बंजर देखे हैं
इन आँखों ने जाने कितने बदले मंजर देखे हैं
एक साथ खेले कूदे जो मित्र बड़े ही प्यारे थे
राजनीति के लिए उन्ही हाथों में ख़ंजर देखे हैं !
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