हिन्द का प्राचीन जीवन चाहते हो क्यों भला अब ?
आधुनिकता के क़फ़स में फँसचुके हो तुम भला जब
छोड़ दो अब तो लगाना तुम मुखौटे पश्चिमी सब
लो बदल ख़ुद को निपुण कर,मुड़ के पीछे देखना क्यों ?
अब इधर के ना उधर के इसलिए भी हैं भटकते
छोड़कर अपने बसन्ती माह को तुम हो तड़पते
श्रृंगार वसुधा का तुम्हें भाता नहीं है
सरस्वती पूजन तुम्हें आता नही है
शिव महोत्सव तुम हो पागल भूल बैठे
प्यार को फूहड़ बनाकर गौरवान्वित हो भला क्यों ?
प्यार होता क्या है पूछो तुम पिता से ?
तुम को सूखे में रखा खुद गीले में सोई
उस माँ से
प्रेम तो दादी की गोदी में पला था
इश्क़ दादा जी की उंगली से चला था
फ़िर मोहब्बत में फ़ना ख़ुद के लिए क्यों ?
प्रेम का उत्सव मनाने जब भी मैं निकला हूँ घर से
डर सहम महबूब मिलता और बचता हूँ नज़र से
है नहीं मंजूर सबको फिर भला ये फ़ितूर कैसा ?
तोड़कर पुरखों की रेखा फ़िर भला हो क़ुसूर भी क्यों ?
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#पंछी
#पाठक
#हरे कृष्ण
#शुभसंध्या आप सभी को मेरा प्रणाम मेरा यह विचार मोहब्बत करने के विरोध में नही है अपितु "मोहब्बत" जीने के उपलक्ष्य में है।
आप किसी से प्रेम करते है तो यह अच्छी बात है और आपके उस प्रेम को परिवार और समाज स्वीकार करे ये उससे भी अच्छी बात है किन्तु मैं उस इश्क़ के बिल्कुल भी पक्ष में नही जिसे आपके अलावा कोई और सम्मान की दृष्टि से न देख पाए ।
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हमारी जीवनशैली पारम्परिक तौर पर एक दूसरे से जुड़ी हुई है ।इसलिए परस्पर उनकी इच्छाओं और भावनाओं का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है ।
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आज के दौर में हम नई जनरेशन में बदलाब देखते है वह किसी भी तरह से स्वयं को स्वतंत्र महसूस करना चाहती है ।इसलिए पश्चिम की ओर दौडती है।उन्ही की तरह जीना चाहती है ।पर उनके पहले की पीढ़ी उन्हें खींचकर अपनी जीवनशैली में ढालने का प्रयास करते है तो परिणाम "संकरण" युक्त होता है जिसे न पश्चिम स्वीकारता है और न पूर्व ही आत्मसात करना चाहता है ।इसी बजह से विरोध होने लगते है ।और समाज विखंडन को प्राप्त होते हैं ।
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मेरा मत है कि या तो हमें पूरीतरह भारतीय बनना चाहिए या फिर पूरी तरह से पश्चिम को ओढ़ लेना चाहिए !
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तब न कोई वेलेंटाइन डे का विरोध कर पायेगा और न ही महाशिवरात्रि को भूल पायेगा !
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जय हिंद जय भारत ..
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कोई न समझे कि मैंने कोई ज्ञान दिया है मैंने अपनी बात लिखी है जरूरी नही आप भी इससे सहमत हों ।
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