Monday, February 3, 2020

ये परिंदा

अनबूझ पहेलियों में उलझा जीवन
बूझते बुझाते ख़प जाता है !
कभी ख़ुद को समझाते कभी ख़ुद को समझते
सबकी कहानी एक जैसी लिख जाता है
परिग्रह करते कराते भुनाता निग्रह को
ये परिंदा तन्हा मुसाफ़िर सा लौट जाता है !
:
🍬🌷#सुप्रभात🌷🍬💕
मैंने आज भी ख़ुश रहना ही चुना
देखते है ये दर्द कितना सताता है
मैं नादां सा "पंछी" पँखो के बल अपनी
देखना ये रुख़ मोडलेगा या हवाओं में खो जाता है !
:
#पंछी
#पाठक
#हरे कृष्ण
#divyansupathak
💕☕😊🌷🍬💕🌷🌷🍬
:
दुआओं में उठे हाथों के अलावा कुछ भी साथ नही जाता....
:
  

No comments:

Post a Comment

भावों की मुट्ठी।

 हम भावों की मुट्ठी केवल अनुभावों के हित खोलेंगे। अपनी चौखट के अंदर से आँखों आँखों में बोलेंगे। ना लांघे प्रेम देहरी को! बेशक़ दरवाज़े खोलेंगे...