कह दूं हवाओं से और कर ले ऊँचा आसमान
मेरे बाजुओं में दम है तब तक भर लूंगा मैं उड़ान
हारसे मैंने न समझौता किया है जीतना आता है मुझको
मेरे वतन की इस जमीन पर हिम्मतों के हैं बागान !
धूप कितनी भी प्रखर हो जाये छाया ढूंढ लूंगा
मैं मुसाफ़िर हूँ डगर डगमग न होगी
धर्म मेरा कर्म मेरा अनवरत चलना ही होगा
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